Saturday, July 26, 2008

दाऊ वासुदेव चंद्राकर के यशस्वी शिष्य श्री भूपेश बघेल


कुम्हारी के पास एक गांव है कुरुदडीह। चारों ओर धनहा खेतों के बीच बसा है यह छोटा सा गांव। इस इलाके में बबूल वन आज भी देखते ही बनता है। लोरिक चंदा कथा प्रसंग में बंभरी बन का वर्णन कई कई बार आता है। बबूल वन के बीच बसे गांव कुरुदडीह में आज यह परम्परा धीरे धीरे खत्म हो रही है लेकिन तीस बरस पहले जो भी मेहमान इस गांव में आता उसे बाल्टी भर पानी हाथ मुंह धोने के लिए दिया ही जाता था। साथ में दी जाती थी लोचनी। लोचनी यानी कांटा निकालने का एक देशी औजार। चंूकि बंभरी वन से गुजर कर ही मेहमान गांव में पहुंचता था, जाहिर है कि उसके पांवों में कांटे चुभ ही जाते होंगे। इसलिए बाल्टी भर पानी और लोचनी से उनका स्वागत होता था। चौमासे में गांव की गलियां चलने लायक नहीं रहती थी। बंभरी वन के बीच इस गांव से गुजरते हुए मुझे लोरिक का आख्यान याद हो आता है। लड़ाका और सरल हृदय लोरिक जिसे राजा का चंदा नामक बेटी ने फांस लिया था।

कुरुदडीह में २३ अगस्त १९६१ को जन्में छत्तीसगढ़ के राजस्व मंत्री भूपेश बघेल के स्वभाव में लड़ाकापन भरपूर है। पता नहीं यह विशेषता कांटो से पटे गांव की गलियों में खेलकर जवान होने के कारण आई या दाऊ वासुदेव चंद्राकर के राजनैतिक गुरुकुल में प्रशिक्षण प्राप्त् करने के कारण। मगर लोरिक की तरह बलिस्ठ, सुदर्शन और लड़ जाने के लिए उद्धत भूपेश बघेल जब से मंत्री बने हैं तब से सिधवा हो गयें हैं। इस हिसाब से यह माना जा सकता है कि हमारे लोरिक के जीवन में मंत्री पद रुपी चंदा ने प्रवेश कर उससे स्वाभाविकता छीन ली है।

अब भी भूपेश बघेल अभ्यस्त राजनीतिज्ञों की तरह घाघ और शांत तो नहीं कहे जा सकते मगर फर्क तो पड़ा है। यह परिवर्तन राजनीति के आसमान पर उगने वाले पूर्णिमा के चंदा के आकर्षण के कारण भी हो सकता है। छत्तीसगढ़ बना तब भूपेश बघेल के अनुयायियों, समर्थकों, प्रशंसकों को बड़ी उम्मीद थी कि बहुत महत्वपूर्ण केबिनेट मंत्री वे बनाये जाएंगग। लेकिन वे बने मात्र स्वतंत्र प्रभार वाले राज्यमंत्री। जबकि एकदम नए विधायक को उनकी पैतृक विरासत का लाभ देते हुए सीधे केबिनेट मंत्री बना दिया गया।

बाद में भूपेश बघेल भी केबिनेट मंत्री बने। यह जोगी जी की विशेष शैली है। जिसके कारण उन्हीं के हाथों में पतंगों के धागे कई बार गडड-मडड होने लगते हैं। मगर शीर्ष पर बैठा यह व्यक्ति तमाम अनुभव, उदारता, संज्ञान, समझदारी और विनम्रता के बावजूद ऐसे विचित्र से लगने वाले रंजक किस्म के खेल जरुर खेलता है जिसे देखकर महाकवि की ये पंक्तियां याद आती है ...
देखत तब रचना विचित्र यह, समुझि मनहि मन रहिये।

भूपेश बघेल के समर्थक और विरोधी इन दो बातों से सर्वथा सहमत होंगे कि भूपेश कड़क मिजाज का युवक है, फट-फिट कह देते हैं और उनमें साहस भी भरपूर है। अपनी साहसिकता के कारण ही उन्हें सफलता मिल पाई है। पाटन जैसे क्षेत्र में लगातार दूसरी बार जीत का कीर्तिमान उन्होंने रचा और इसे खेल-खेल में रचा। खोने और पाने के अवसरों पर उनकी तटस्थता देखते ही बनती है।
विचारधारा, जीवन शैली और निर्णयों के संदर्भ में लगभग अराजक दाऊ नंदकुमार बघेल से पिता के प्रभाव से मुक्त रहकर काम करने की अपनी विलक्षणता के कारण भी भूपेश बघेल सराहे गये। जब जो जी में आये वही करने के लिए विख्यात दाऊ नंदकुमार बघेल ने कांग्रेस के युवा नेता अपने पुत्र को कुरुदडीह की परम्परा में लोचनी नहीं दिया, हां अलबत्ता अपनी कार्यशैली के कारण उसके पांवों में दो चार तगड़ा कांटा जरुर ठोंक दिया। भूपेश ने इन्हीं प्रशिक्षणों के दम पर मैदान मारने का करतब दिखाया। आज भी दाऊ नंदकुमार बघेल पत्थर उछालने में कोताही नहीं करते और मजे की बात तो यह है कि भूपेश को अपने बाप, पूत-भतीजों से जितने ढेले मिलते हैं उतने दूसरों से नहीं मिलते। भूपेश इस स्थिति का मजा भी लेते हैं। यह सोचकर ...
आपने प्यार से मारा था जो पत्थर मुझको,
हो गया फूल में तब्दील वो लगकर मुझको।




भूपेश बघेल की पढ़ाई भिलाई-३, गांव बेलौदी और साइंस कालेज में हुई। रायपुर में पढ़ाई के दौरान ही राजनीति का चस्का लगा और उन्हें राजनीति की कला ने आकृष्ट कर लिया। प्रथम वर्ष के बाद वे कला संकाय के विद्यार्थी हो गये और अंतत: निजी विद्यार्थी के रुप में पढ़ते हुए उन्होंने एम.ए. की डिग्री ली।

चाणक्य के रुप में विख्यात दुर्ग जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष दाऊ वासुदेव चंद्राकर जैसे गुरु से कुछ विशेषताएं भूपेश बघेल ने अर्जित कर ली है, उनमें से कुछ ये हैं ...
= पाई हुई बेशकीमती लग रही वस्तु हाथ से निकल जाय तो रंज नहीं करना।
= जब भी जो करना पूरी निष्ठा और प्राणपन से करना।
= शत्रु और मित्र की पहचान एकदम साफ रखना।
= संकट के साथियों की नाफरमानी को सहजता से लेते हुए पुन: साथ में जोड़ने के अवसर पैदा करना।
= चालाक और शातिर प्रतिद्वंदी को चालाकी और शातिराना चालों से धूल चटाना।
= छोटों के लिए स्नेह, मित्रों के लिए यार बासी और बड़ों के लिए अपार श्रद्धा-विनय।
= दुनिया जहान में घटने वाली घटनाओं की यथासंभव प्रामणिक जानकारी रखना।
= आंकड़ों की प्रमाणिकता तपा, सना और डंके की चोट पर उसे अवसर आने पर प्रस्तुत कर देना।
= कुपात्रों से दूरी और सुपात्रों से अंतरंगता।
= छुटपन के संगवारियों, गर्दिश के दिनों के अपनों को सर पर चढ़ाकर रखना।
= राजनीति के साथ ही साहित्य, लोकमंच एवं समाज की गतिविधियों में सदैव सक्रिय लोगों, संस्थाओं का संरक्षण प्रोत्साहन।

= लड़ाई ठन जाये तो हार जीत की चिंता न करते हुए मैदान में निर्णय होने तक डटे रहना।
= एक सीमा के बाद किसी भी शक्ति के आगे नहीं झुकना।

ये कुछ ऐसे चरित्रगत रंग हैं जो भूपेश बघेल की पीढ़ी में सिर्फ गिने-चुने अपने लोगों के पास है।
दाऊजी के पास तो पूरा इन्द्रधनुष है जिसकी चर्चा फिर कभी। लेकिन यह कम संतोष की बात नहीं है कि दाऊजी के स्कूल के इस विद्यार्थी ने अपने गुरुकुल का झंडा बुलंद कर दिया है। दाऊजी को भी अपने इस प्रतापी शिष्य पर नाज कम नहीं है। भूपेश जानही ग, भूपेश बताही ग, भूपेश ल धरव, भूपेश जमाही, भूपेश बिना नई बनय, भूपेश गुसिया गेहे थामहव। ये वाक्य मैं कई कई संदर्भोंा में सुनता हूं और प्रमुदित होता हूं।

छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध कलमकार स्व. नरेन्द्र देव वर्मा की सुपुत्री मुक्तेश्वरी से भूपेश बघेल का ब्याह हुआ। नरेन्द्र देव की बिटिया मुक्तेश्वरी कुरुदडीह आकर मुक्ति बन गई। अपने पिता नरेन्द्र देव वर्मा और ताऊ स्वामी आत्मानंद जी से प्राप्त् शब्द और चिंतन का संस्कार लेकर मुक्तेश्वर भूपेश के जीवन में आई। उस दौर के भूपेश की उग्रता को जिन्होंने झेला है उन्हें आज के भूपेश बघेल रुपया में दू आना बचे हुए भूपेश लगते हैं। शायद मुक्ति पाकर ही भूपेश के भीतर की अग्रता रचनात्मकक ऊर्जा में परिवर्तित रैली के विकट नेतृत्वकर्त्ता के रुप में प्रतिमान गढ़ सके।

सामूहिक विवाह और स्वाभिमान रैलियों का सफल आयोजन की करते रहें तो श्री भूपेश बघेल सदैव याद किये जायेंगे। फिरकों में बटा कुर्मि समाज अब करीब आ रहा है। लेकिन विवाह में शक्ति प्रदर्शन की होड़ से कमजोर हो रहे समाज में सामूहिक विवाह की पहल अब जरुरी है। यह ऐसा जनहित का काम हैं जिसे पूरी जिम्मेदारी से श्री भूपेश बघेल के नेतृत्व और संरक्षण में लगातार किया जा रहा है। तामझाम के साथ पारंपरिक विवाह मंडप पर लोगों को बुलाकर अपनी लोकप्रियता और प्रसिद्धि आंकने के संकुचित दायरे को तोड़कर श्री भूपेश बघेल ने समूह के साथ जुड़कर अपनी कीर्ति बढ़ाने का मार्ग चुना है। इस मार्ग पर चलने का सूफल भी उन्हें मिल रहा है। सफल राजनीतिज्ञ जब भी अपनी अभिरुचि का सूफल भी उन्हें मिल रहा है। सफल राजनीतिज्ञ जब भी अपनी अभिरुचि का रचनात्मक विस्तार कर दीगर क्षेत्र में सक्रिय हुआ है तब सदैव उसके प्रभामंडल का विस्तार हुआ है। उसकी कीर्ति चतुर्दिक फैली है। धीरे-धीरे उसके समर्थक प्रशंसक बन जाते हैं और प्रशंसक भावुक में डूबे भगत के रुप में उससे सदैव के लिए जुड़ जाते हैं।
श्री भूपेश बघेल के स्वाभिमान रैलियों और सामूहिक विवाहों से जुड़े उनके समर्थक अब उनके प्रशंसक हो गये हें। आशा है, यह विकासक्रम जोर शोर से इसी तरह जारी रहेगा।

स्वाभिमान रैलियों की सफलता की अपनी अलग कहानी है जिसे यहां समेट पाना संभव नहीं है। श्री भूपेश बघेल द्वारा संयोजित इन्हीं स्वाभिमान रैलियों के कारण ऐसी ताकत बनी कि छत्तीसगढ़ को श्री अजीत प्रमोद कुमार जोगी जी जैसे प्रतापी मुख्यमंत्री मिले। छत्तीसगढ़ में एक नई शक्ति उभरकर सामने आई। श्री भूपेश बघेल एवं उनकी सोच के लोगों को इसका गहरा संतोष है ...
अब जिसके जी में आये वही पाये रौशनी,
हमने दिया जला के सरे आम रख दिया।।

१९९०-९४ में भपूेश बघेल युवक कांग्रेस के दुर्ग जिला अध्यक्ष रहे। १९९४-९५ में मध्यप्रदेश युवक कांग्रेस के उपाध्यक्ष रहे। भूपेश बघेल ९३ से मध्यप्रदेश विधानसभा प्राक्कलन समिति के सदस्य हैं।
छत्तीसगढ़ी मनवा कुर्मी समाज के संरक्षक भूपेश बघेल छत्तीसगढ़ के चर्चित कई मंचीय कला संगठनों के संरक्षक भी है।

मध्यप्रदेश में जन शिकायत निवारण मंत्री, फिर परिवहन मंत्री रहे, भूपेश बघेल को छत्तीसगढ़ में पहले स्वतंत्र प्रभार का राज्यमंत्री बनाया गया। अब वे केबिनेट मंत्री हैं।

नरेन्द्र देव वर्मा की प्रसिद्ध पंक्ति हैं ...
दुनिया अठवारी बजार हे रे उसल जाही,
दुनिया कागद के पहार रे, उफल जाही।

भूपेश बघेल की विगत दो वर्ष की जद्दोजहद को करीब से देखने पर उपरोक्त पंक्तियों का मर्म समझ में आता है।

उपरोक्त कविता की ये पंक्तियां भी याद आती है ...
अइसन लगे हा इहां के, कछु कहे नहि जाय,
आंखी मां तो झूलत रहिथे, कांही हाथ न आय।

सब अपनी भूमिका अदा कर किनारे लग जाते हैं। आज का दौर भी खत्म हो जाएगा। लेकिन जिस तरह डॉ. खूबचंद बघेल के द्वारा संचालित आंदोलनों की कथाएं लोगों के जेहन में ताजा हैं उसकी तरह भूपेश बघेल के नेतृत्व में संयोजित स्वाभिमान रैलियों में लगाये गये नारे दशकों तक छत्तीसगढ़ के आसमान में गूंजते रहेंगे। वर्ष २००१ का डॉ. खूबचंद बघेल सम्मान इसलिए भूपेश बघेल को दिया गया।

यह सुखद संयोग है कि दाऊ वासुदेव चंद्राकर के अनोखे पालने में झूलकर भूपेश बघेल राजनीति की लोरियां सुनते हुए बड़े हुए। पहला डॉ. खूबचंद बघेल सम्मान दाऊजी को ही सादर भेंट किया गया था। यह छत्तीसगढ़ में दिया जाने वाला ऐसा सम्मान है जिसे देने और पाने वाले डॉ. खूबचंद बघेल के सपनों के छत्तीसगढ़ के लिए सर्वथा समर्पित है।



विदेशों का दौरा कर आये छत्तीसगढ़ के राजस्व मंत्री श्री भूपेश बघेल को छत्तीसगढ़ी भावना से संचालित होते देखना बहुतों को सुहाता भी नहीं। डॉ. खूबचंद बघेल और चंदूलाल चंद्राकर दोनों ने छत्तीसगढ़ की अस्मिता के लिए सतत संघर्ष किया। श्री भूपेश बघेल संयोगवश उसी जाति में जन्में जिस जाति के गौरव ये महापुरुष हैं। अगर वे महापुरुष किसी भी जाति के होते तो भी श्री भूपेश बघेल इनकी वंदना करते। आखिर स्वाभिमान रैलियों में सर्वजातीय स्वरुप की कल्पना तो उन्हीं की थी। सभी जाति प्रमुखों को बकायदा पगड़ी पहनाकर उन्होंने रैली के नेतृत्वकर्ता के रुप में सम्मानित भी किया। उन्होंने पाटन क्षेत्र का गौरव सदैव बढ़ाया है।

पाटन क्षेत्र के इस सपूत की सफलता के संदर्भ में निम्न पंक्तियां याद हो आती है –

लीक छोड़ तीनों चलें, शायर, सिंह, सपूत

पाटन क्षेत्र में किसी व्यक्ति ने लगातार जीतने का इतिहास नहीं रचा। भूपेश बघेल ने यह करिश्मा कर दिखाया है। पाटन क्षेत्र का तीन चौथाई हिस्सा ग्रामीण है और एक चौथाई हिस्सा शहरी। श्री भूपेश बघेल विधायक और मनुष्य के रुप में इसी यात्रों में ग्रामीण और शहरी हैं। आधुनिकतम जानकारी से लैश श्री बघेल ग्रामीण जनों की सोहबत में ही अधिक सुकून पाते हैं। श्री पवन दीवान ने उन्हें जब यूं ही पूछ लिया कि बघेल जैसा कुछ सुनता हूं इधर क्या बात है। दीवान जी का इशारा समझते हुए भूपेश बघेल ने कहा - जो हो रहा है, ठीक ही है महाराज जी। मैं तो सदैव त्रिकोणी संघर्ष में ही बढ़त बनाता हूं। मेरी जीत के लिए त्रिकोणी संघर्ष का इन्तजाम पक्का किया जा रहा है। दीवान जी गम्भीर सवाल के हल्के फुल्के जवाब से प्रमुदित हो अट्टाहास करने लगे।
युवा कांग्रेस से नेतृत्व कौशल सीखकर मैदान में उतरे युवा विधायक भूपेश बघेल के प्राय: अधिकतर कार्यकर्त्ता युवक होते हैं।

पाटन क्षेत्र के गांवों में घरों-घर श्री बघेल की रिश्तेदार है। दोनों बार चुनाव समर में उन्हें अपने निकट रिश्तेदार या कूर्मि समाज के प्रतिद्वंद्वियों से लड़कर जीतना पड़ा। इसलिए भूपेश अपनों के विरोध को सहज भाव से लेते हैं। बहादुरी के साथ विरोध के बीच रास्ता बनाने के लिए चर्चित भूपेश बघेल भी अदम साहब से सहमत है कि –

बकौल डार्विन, बुजदिल ही मारे जायेंगे,
सरकशी यूं ही अदम मीरे कारवां होगी।

+++

श्री बघेल को सभी जाति के छत्तीसगढ़ी जनों का आशीर्वाद मिला। सबने मिलजुल कर उनकी कल्पना के अनुरुप स्वाभिमान रैलियों को अभूतपूर्व सफलता दिलाने का बीड़ा उठाया। कलाकारों, लेखकों, समाजसेवियों, पत्रकारों और विभिन्न जातियों के प्रमुख जनों का जो सम्बल उस दौर में श्री भूपेश बघेल को मिला उसे वे अपने जीवन की असल पूंजी मानते हैं। उन्हीं सफल स्वाभिमान रैलियों का ही प्रभाव था कि गांधी विचार यात्रा लेकर जब वे अपने पाटन क्षेत्र में निकले तो पुन: कलाकारों, साहित्यकारों से उन्होंने सम्बल और आशीर्वाद मांगा। छत्तीसगढ़ भर में विभिन्न क्षेत्रों में जो गांधी विचारधारा का कार्यक्रम बना उन सब में अपनी विशेषता के कारण पाटन क्षेत्र का आयोजन अभूतपूर्व सिद्ध हुआ।

आइये, तनिक विस्तारपूर्वक हम पाटन क्षेत्र में गांधी विचार यात्रा को जानें।




पाटन क्षेत्र में गांधी विचार यात्रा २० से २९ अक्टूबर २००२ : जामुल से पाटन

पाटन क्षेत्र अपनी वैचारिकता के लिए चर्चित है। दुर्ग जिले का सर पाटन क्षेत्र की तेजस्विता के कारण सदा ऊंचा रहा है। इस क्षेत्र ने देश के लिए मरमिटने को सदा तैयार रहने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का जत्था दिया। किसी किसी क्षेत्र में इक्का-दुक्का स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मिल पाते हैं। पाटन क्षेत्र में एक एक गांव में ही कई कई स्वतंत्रता संग्राम सेनानी हुए। पाटन क्षेत्र में ही शिक्षा विद दानीराम वर्मा जैसे समर्पित गुरु हुए जिन्होंने तमाम प्रलोभनों को दरकिनार कर एक गांव मर्रा को साधना के लिए चुना। मर्रा गांव को छत्तीसगढ़ का हर शिक्षा प्रेमी बड़े आदर के साथ याद करता है। पद्मश्री तीजनबाई भी पाटन के पास स्थित अटारी गांव में जन्मीं। सहकारी आंदोलन के अगुवा स्व. उदयराम वर्मा ने इस क्षेत्र का मान बढ़ाया है।

इस क्षेत्र में सेवा का संस्कार है। छत्तीसगढ़ में सेवा और परोपकार की समृद्ध परंपरा है किन्तु पाटन क्षेत्र तो मानो सेवा एवं उपकार का नया नया मार्ग ही तलाशता रहता है। पाटन क्षेत्र का सुनाम है क्योंकि यहां के लोग यश को महत्व देते हैं। पाटन के संबंध में सोचते हुए दलित जी की पंक्तियां अनायास याद हो आती है।

रह जाना है नाम ही, इस दुनिया में यार,
अत: सभी का कर भला, है इसमें ही सार।
है इसमें ही सार, यार तू तज दे स्वास्थ,
अमर रहेगा नाम, किया कर तू परमारथ।
काया रुपी महल, एक दिन ढह जाना है,
किन्तु सुनाम सदा दुनिया में, रह जाना है।

सुनाम के लिए चर्चित पाटन क्षेत्र के कुछ अभिनव कीर्तिमान युवा विधायक श्री भूपेश बघेल, राजस्व मंत्री, छत्तीसगढ़ शासन के नाम दर्ज है।

श्री भूपेश बघेल ही पहले विधायक है जिन्हें लगातार दो बार इस क्षेत्र की जनता ने अपना सिरमौर बनाया।

तर्रा निवासी मेरे कलागुरु श्री गोविन्द तिवारी बताते हैं कि यह कीर्तिमान जो बना उसके पीछे विचारों का हाथ है। वे बताते हैं कि जब वे भूपेश बघेल के किसान नेता पिता श्री नंदकुमार बघेल के साथ लोहियावाद का अलख जगाने गांव गांव की यात्रा कर रहे थे उन दिनों भूपेश बघेल गर्भस्थ शिशु थे। तिवारी जी भावुक होकर बताते हैं कि गांवों की धूल झाड़कर जब नंदकुमार दाऊ के साथ लोहियावादी चिंतक कुरुदडीह आते तो भूपेश की माताजी सबको जलपान करवाती और चर्चा सुनते हुए वही बैठी रहती। तिवारी जी का दावा है कि अभिमन्यु की तरह गर्भ में रहकर ही रणनीति पर होने वाली विलक्षण चर्चा की भूपेश ने खूब सुना। इसीलिए आज चक्रव्यूह के दरवाजों को इस तरह तोड़ पा रहा है।

मैं तिवारी जी के इस दावे पर कुछ कहना नहीं चाहता मगर भूपेश बघेल के लिए ईश्वर से प्रार्थना करते हुए उन्हें आगाह जरुर करना चाहता हूं कि उनके जीवन में जयद्रथ आदि आयें और उन्हें पुचकारे तो वे झट उनकी गोद में न जा बैठें। इकचालीस वर्षीय, स्वाभिमान रैलियों के नायक श्री भूपेश बघेल की सार्थक यात्रा लंबी है। अभी तो तीन बार ही पद यात्रायें हुई हैं उनके द्वारा। तीन पग की तरह तीन यात्रा का भी अपना ही महत्व है। पहली यात्रा तब हुई थी जब वे युवक कांग्रेस के अध्यक्ष थे। दूसरी यात्रा विधायक के रुप में उन्होंने की। मंत्री बनकर वे गांधी जी की छाया में केवल पैदल चले।

प्रसिद्ध गीतकार श्री निर्वाण तिवारी ने इस गांधी विचार धारा को भावना प्रधान पंक्तियों में बांधा है ...
राजघाट का रुठा गांधी, अब जाकर मुस्काया है,
पाटन की पावन धरती पर, पैदल पैदल आया है।

यह एक विलीण संकल्प था। इसका परिणाम भी सुखद रहा। पूरी यात्रा में प्रतिदिन हम सबको अविस्मरणीय अनुभव हुए।

यात्रा की शुरुवात २० अक्टूबर को जामुल से हुई। उद्घाटन के अवसर पर पूर्व सांसद द्वय श्री केयूर भूषण जी, श्री रेशमलाल जांगड़े तथा श्री बालचंद कछवाहा एवं कई बार पदयात्रा का कीर्तिमान बना चुके कवि श्री बसंत दीवान ने श्री भूपेश बघेल की इस पहल का भरपूर स्वागत किया। अतिथियों एवं वक्तागणों का स्वागत गांधी यात्रा स्मृतिचिन्ह एवं दुपट्टे से किया गया। यहां श्रीमती रजनी रजक ने गांधी के प्रिय भजनों का गायन किया। और गांधी विचार यात्री अगले पड़ाव के लिए निकल पड़े। बीच बीच में गांवों में या यात्रियों के अगुवा श्री भूपेश बघेल का महत्वपूर्ण सम्मान हुआ। शाम ६ बजे यात्री जरवाय ग्राम पहुंचे, यहां गुरु घासीदास सम्मान प्राप्त् चिंतक श्री चैनदास बांधव ने उद्बोधन देकर विचार गोष्ठी को दिशा दी। श्री मुरारीलाल साव ने काव्य पाठ किया, उसके पश्चात प्रसिद्ध लोक कला दल छेरछेरा का प्रदर्शन हुआ। २१ को प्रात: दस बजे भिलाई ३ में तथा संध्या मोरिद में कार्यक्रम हुआ। यह दिन चिंतकों एवं मंच के प्रसिद्ध कवियों का दिन था। श्री रवि श्रीवास्तव, बसंत देशमुख, अशोक शर्मा, गजाधर रजक, प्रदीप वर्मा की कविताओं को गांववासियों ने सुना ही नहीं बल्कि कवियों को भरपूर दाद भी मिली। बच्चों ने बड़ी संख्या में कविताओं का रसपान किया। अंतर्राष्ट्रीय ख्याति के पंथी नर्तक देवदास बंजारे ने यहां सत्य की महिमा का गायन कर श्रोताओं को भाव-विहिल कर दिया। श्री रमेश ठाकुर ने अपने भरावदार आवाज में जब गांधी बबा केहे रिहिस, तभे राम राज आही गाया तो गांव के श्रोतागण मंत्रमुग्ध हो गये। देर रात्रि तक कार्यक्रम चला। यहां प्रसिद्ध भजन गायक श्री उत्तम तिवारी द्वारा गाये गये कबीर भजनों से श्रोतागण बेहद प्रभावित हुए। २२ अक्टूबर को चरोदा में शामिल हुए जनकवि श्री बिसंभर यादव मरहा जो अंत तक जिपरहा की तरह संग संग रहे। यहां स्वतंत्रता संग्राम सेनानी श्री जमुना प्रसाद कसार, श्रीमती संतोष झांझी, श्री रामेश्वर वैष्णव, श्री हेमलाल साहू निर्मोही एवं गुरु घासीदास सम्मान प्राप्त् चिंतक श्री नम्मूराम मनहर ने प्रेरक भूमिका अदा की। शाम को हम चलकर नंदौरी पहुंचे। यह पाटन क्षेत्र के मेड़ों में स्थित गांव है अर्थात सीमा रेखा पर स्थित गांव। इसके बाद ही लिमतरा गांव आता है जो धमधा क्षेत्र का गांव है। नन्दौरी में युवा कवि आलोक शर्मा का काव्यपाठ हुआ। रायपुर के प्रसिद्ध कलाकार श्री राकेश तिवारी ने छत्तीसगढ़ पर केन्द्रित गीतों की पूरी श्रृंखला प्रस्तुत कर समा बांध दिया। श्री रमेश ठाकुर ने गांधी गीतों का गायन किया।

तीसरे दिन कुम्हारी में हम पहंुचे। कंडरका के प्रख्यात गायक शेरअली दल का गायन हुआ। श्री अभयराम तिवारी के उद्बोधन के पश्चात परमेश्वर वैष्णव का काव्य पाठ हुआ। शाम की सभा उरला ग्राम में देखते ही बनी, डॉ. ओमप्रकाश वर्मा ने यहां अहिंसा की दिव्य परंपरा पर प्रेरक व्याख्यान दिया। कवि दुर्योधन राव, महेश वर्मा, चिंतामणि साहू ने काव्य पाठ किया। उरला वासी तो मानो गांधी विचार यात्रियों के स्वागत के लिए उमड़ ही पड़े। बड़ी संख्या में गांव के लोग देर रात तक विचार एवं गीतों का आनंद लेते रहे। बघेल दाऊओं के इस चर्चित गांव में पैदल यात्रियों का आत्मीय स्वागत स्वाभाविक भी था। रायपुर से पधारे प्रसिद्ध चिंतक, मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग के पूर्व सदस्य श्री जीवनलाल साव ने यहां अपने उद्बोधन में गांधी विचार यात्रा के महत्व को इतिहास के संदर्भ में समझाते हुए कहा कि यह एक ऐसी विचार यात्रा है जिसकी गूंज प्रदेश से बाहर की सूनी जा सकेगी।

२४.११.०२ का दिन कवि श्री दानेश्वर शर्मा की कविताओं के कारण याद गार बन गया। लक्ष्मी पार्वती संवाद जैसी चर्चित कविता का उन्होंने पाठ किया। अपनी आंखों की सलौनी को सम्हालते हुए जब शर्मा जी ने छत्तीसगढ़ी कविताओं का पाठ किया तो हाथ का देवरिहा काम छोड़कर महिलायें स्थल तक खिंची चली आई। पहंदा में ही श्रीमती रोहणि पाटणकर ने प्रेरक व्याख्यान दिया।

संध्या ग्राम झीठ में रिखी क्षत्रिय एवं प्रसिद्ध गायक सुनील सोनी के दल का प्रभावी मंचीय कार्यक्रम भजन गायन हुआ। यहां प्रसिद्ध गीतकार श्री निर्वाण तिवारी एवं कवि रघुवीर अग्रवाल पथिक का प्रेरक काव्यपाठ हुआ। २५ का दिन विश्राम के लिए निर्धारित था। पद यात्रियों ने झीठ में विश्राम किया।

२६ की सुबह सब पुन: जामगांव के जनसैलाब को साथ लेकर बघेल जी आये। कवि शरद कोकाश ने यहां काव्यपाठ किया। शिक्षाविद श्री तोरन सिंह ठाकुर का व्याख्यान, विनायक अग्रवाल का उद्बोधन, रामप्यारा पारकर का बापू के राम विषय पर सारगर्भित भाषण तथा श्रीमती भाग्यश्री मोडक का जनमन में रमे महात्मा विषय पर व्याख्या हुआ। इन व्याख्यानों की खूब सराहना हुई।
जामगांव से चलकर दल घुघंवा की ओर बढ़ा। शाम ६ बजे यात्रियों का दल घुघंुवा के करीब पहुंचा। जगह जगह मार्ग में ग्रामवासियों ने यात्रियों का स्वागत किया। स्वागत, सम्मान, से निर्लिप्त् युवा मंत्री भूपेश बघेल सभी यात्रियों का स्‍वागत किया। स्वागत, सम्मान, से निर्लिप्त् युवा मंत्री भूपेश बघेल सभी यात्रियों का ख्याल रखते हुए घुघंुवा तक आ पहुंचे थे। भूपेश बघेल ने शुरु में ही मंत्री बनते हुए ऐलान कर दिया था कि जनसंपर्क के लिए वे लालबत्ती गाड़ी में नहीं चलेंगे। छत्तीसगढ़ के विवेकानंद माने जाने वाले स्वामी आत्मानंद महाराज से बेहद प्रभावित बनाया है। इसीलिए पद यात्रा के लिए गांधी के विचार की यात्रा की अहमियत को श्री बघेल ने स्वीकारते हुए चुनिंदा साहित्यकारों एवं चिंतकों को अपने साथ जोड़ लिया। सबको बड़ा आश्चर्य हुआ कि सहसा इस यात्रा में भीड़ कैसे जुटने लगी। स्वत: स्फुर्त लोग पड़ाव दर पड़ाव जुड़ने लगे। एक एक पड़ाव पर तस्वीर बदलती रही।

जामगांव से घुघुवा मार्ग पर झण्डे लिये उत्साहपूर्वक चलते चले आने वाले यात्रियों के दल को देखकर डॉ. आडिल से रहा न गया। वे भी दो किलोमीटर पांव पांव चले। सुशील यदु का गीत घोलघोला बिना मंगलू नई नाचय को श्रोताओं ने खूब सराहा। फरमाइश पर यदु जी ने हमूं होतेन कुकुर चर्चित कविता का पाठ किया। प्रसिद्ध भजन गायक एवं धनुर्विद्या प्रवीण शब्दभेदी बाण चलाने वाले कोदुराम वर्मा का यादगार बहुआयामी कार्यक्रम यहां हुआ।

२७ को प्रात: ११ बजे सेलुद में पुन: रमेश ठाकुर के गायन से कार्यक्रम प्रारंभ हुआ। यहां बख्शी सृजनपीठ के अध्यक्ष श्री सतीश जायसवाल, श्रीमती अनीता कर्डेकर, सुश्री उमा ठाकुर का व्याख्यान हुआ। ग्राम स्वराज एवं पंचायती राज के संबंध में दिये गए व्याख्यानों से ग्रामीणजन बेहद प्रभावित हुए। प्राय: हर गांव में दोपहर एवं शाम का भोजन सतनामी पारा में हुआ। लिपे पुते घरों के आंगन में बैठकर यात्रियों, साहित्यकारों एवं आगन्तुकों ने भोजन किया। सेलूद के बाद शाम को गाड़ाडीह में कार्यक्रम छ: बजे शुरु हुआ। यहां पुन: श्री दानेश्वर शर्मा, श्रीमती संतोष झांझी, श्री रवि श्रीवास्तव, श्री बसंत देशमुख ने काव्यपाठ किया। गाड़डीह पाटन क्षेत्र के यशस्वी पूर्व विधायक स्व. केजूराम वर्मा का गांव हैं। मंच पर ही भूपेश बघेल ने प्राय: हर गांव में त्वरित समस्या का निवारण किया। मांगे रखी गई उस पर निर्णय लिया।

इसके अतिरिक्त भोजन के समय भी चीन पहिचान कर हर छोटे बड़े से मिलकर उन्होंने व्यक्तिगत सुख दुख का जायजा लिया। यह आगन्तुको के लिए अनोखा अनुभव था। कवि मित्रो ने इस शैली की खूब सराहना भी की। सबने कहा कि जनता ने श्री बघेल को जो प्यार दिया है उसके वे सही पात्र हैं। किसी किसी गांव में तो कोई मांग ही नही रखी गई। बल्कि गदगद गांव वालों ने कहा कि आप स्वयं पैदल चलकर हमारे पास आये हैं, तोला पागेंन ग, सब मिलगे। बकौल शायर ...

तुझको मांगू मैं तुझी से, कि सभी कुछ मिल लाए,
सौ सवालों से यही एक सवाल अच्छा है।

२८.१०.०२ को प्रात: ११ बजे प्रसिद्ध गायक एवं शास्त्रीय संगीतज्ञ श्री के.के. पाटील का गायन ग्राम सांतरा में प्रारंभ हुआ। गांधी गीतों का प्रभावी गायन घंटे भर चला, श्री श्यामाचरण बघेल, श्री चैनदास बांधव एवं अशोक त्रिवेदी ने यहां भारत छोड़ो आंदोलन पर व्याख्यान दिया। मेरे पूर्व विभाग के प्रिय सहयोगी एवं विश्वसनीय साथी श्री अशोक त्रिवेदी के कुशल संचालन में यहां वैचारिक कार्यक्रम को ऊंचाई मिली। सांतरा प्रसिद्ध समाजसेवियों एवं स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का गांव है।

भोजन के लिए हम श्री भूपेश बघेल के मामाजी के घर में बैठ ही रहे थे कि उनके एक मामा ने उन्हें प्रणाम करते हुए कहा - सतनाम भांचा। बघेल जी ने जवाब दिया, सतनाम मामा। पास में बैठे गांधी जी ने हंसते हुए कहा, चलो आज भी भोजन सतनामियों के घर मिला। उनकी इस उक्ति पर जोरदार ठहाका लगा।

शाम ६ बजे ग्राम अरसनारा के स्कूल में मुमताज ने कविताओं से वो समा बांधा कि लोग फरमाईश करने लगे। यहां श्रीमती संतोष झांझी ने अपने जीवन का एक ऐसा अनोखा गीत पढ़ा जिसे हम सबने सुना ही नहीं था। श्री भूपेश बघेल के प्रति वात्सल्य प्रकट कर उनके यशस्वी भविष्य की कामना करते हुए झांजी जी ने रचना का पाठ किया। रचना ने सबको छू लिया। सहसा मैं समझ नहीं पाया कि झांजी जी ने इस रचना को गांधी विचार यात्रा के सफल नेतृत्वकर्त्ता श्री भूपेश बघेल से प्रभावित होकर लिखा है कि अपने बेटे रजनीश की कलायात्रा को याद करते हुए। मंच पर उन्हें उस दिन मुग्ध श्रोताओं ने खूब सुना। पूरी यात्रा में जितने भी वक्तागण आये, सभी प्राय: भूपेश बघेल के बुजुर्ग ही थे। भूपेश बघेल छत्तीसगढ़ के यशस्वी रचनाकार स्व. नरेन्द्र देव वर्मा के जामाता हैं, इसलिए रचनाकारों के आगे भूपेश मंत्री बनकर और तनकर रह भी नहीं सकते, रहते भी नहीं। उसी तरह हर बुजुर्ग रचनाकार उन्हें वह कृपांक देता है जो इस रिश्ते से उनका हक भी बनता है। इसीलिए इलाके के दूसरे जन-प्रतिनिधियों की तुलना में साहित्यकारों की ओर से भूपेश बघेल के खातें प्राय: अतिरिक्त अंक जमा होते दिखते हैं।
अंतिम पड़ाव पाटन में था। पाटन के नगर पंचायत अध्यक्ष कवि, खिलाड़ी, पत्रकार, व्यवसायी और समाजसेवी, गरज ये कि हर फन में माहिर, हेमंत देवांगन ने अरसनारा में गांधीवाद पर प्रभावी व्याख्यान दिया।

आखिरी दिन २९.१०.०२ का कार्यक्रम उन्हीं की देखरेख में था। विराट आयोजन। यह पहला ऐसा अनोखा आयोजन था जिसका नेतृत्व राजनीतिज्ञ कर रहे थे मगर जिसमें प्राण फूंक रहे थे साहित्यकार और कलाकार। इस दृष्टि से भी यह आयोजन अनोखा था कि कहीं श्रोताओं को ढोने के लिए गाड़ियों का प्रबंध नहीं था मगर ठठ के ठठ लोग गांवों से चले आ रहे थे। अपार भीड़। मिथिलेश साहू ने सत्यनाम सत्यनाम सत्यनाम सार गाकर पूरे सत्य की परंपरा से श्रोताओं को कुछ इस तरह जोड़ा कि लगातार घंटे भर गायन चला। यहां प्रसिद्ध गायकों का दल एक साथ उपस्थित था। श्री मिथिलेश साहू, रमेश ठाकुर, उत्तम तिवारी, के.के. पाटील ने एक साथ जब स्व. नरेन्द्र देव वर्मा के अमर गीत जय हो जय हो छत्तीसगढ़ मैया का गायन किया तो कलावंत पूर्व साडाध्यक्ष श्री लक्ष्मण चंद्राकर चुप न बैठ सकें। वे मंच पर गये और कलाकारों को दाद देते हुए कुछ सुझाव देने लगे।

यहां मुख्य वक्ता थे संत कवि पवन दीवान, पत्रकार श्री रमेश नैय्यर जी एवं श्री राजनारायण मिश्रा जी। तीनों विद्वान वक्तागणों ने विभिन्न विषयों पर एकाग्र होकर कुछ इस तरह वक्तव्य दिया कि यात्रियों की आठ दिन की थकान ही मिट गई। पहली बार गांधी जी पर इतना विराट बहुआयामी सफल आयोजन इस क्षेत्र में हुआ।

भोजन हेमंत देवांगन के आंगन में हुआ। दीवान जी का ठहाका यहां खूब गूंजा। उन्हें मैं पहली बार काफी दिनों के बाद इस तरह मुक्त देख रहा था। विचार यात्रा के लिए बने दुपट्टे को कंधे पर लहराते हुए वे विभिन्न विषयों पर देर तक अंतरंग बातचीत करते रहे। उन्होंने कहा कि गांधी के नाम पर लगातार इस तरह आठ दिन तक उल्लास बनाये रखा जा सकना निश्चित रुप से प्रशंसनीय है। एक भक्त ने उन्हें टोका कि महराज, आप भी तो छत्तीसगढ़ के गांधी कहाते हैं इसलिए उल्लास का वातावरण बन गया। इस टिप्पणी पर उन्होंने हंसते हुए कहा कि गांधी सिर्फ एक है, वे महामानव, देवतुल्य, चमत्कारपूर्ण व्यक्तित्व के धनी थे। हम तो प्रार्थना ही कर सकते हैं कि हे महात्मा, इस देश को कभी छोड़ना मत। हम सब पर कृपा बनाये रखना। अपने भारत की महिमा की खातिर हम सब में अपनी शक्ति भरते रहना। हमें शांति, एकता, भाईचारा, प्रेम, अहिंसा का संबल मिले और हम दो कदम गांधी के पथ पर चल सकें, यही हमारे जीवन भर की संचित अभिलाषा है। उन्होंने दुख प्रकट करते हुए कहा, सारा देश न जले। भाई भाई न लड़ मरें, यही सोचना है।

गांधी जी ही हमें बचा सकते हैं। यह छत्तीसगढ़ है जहां समानता और प्रेम का विशेष महत्व है। दीवान जी अब अपनी रौ में बोल रहे थे तो मुझे उनकी ही पंक्तियां याद आ रही थी ...

धरती बर तो सबो बरोबर,
का हाथी का चांटी रे भइया,
तोर धरती तोर माटी।

पाटन में समापन के अवसर पर श्री घनाराम साहू जी गुण्डरदेही के विधायक और किसान आयोग के अध्यक्ष ने अपना प्रभावी उद्बोधन देते हुए कलाकारों एवं कवियों को अपने क्षेत्र में ३१.१०.०२ को आमंत्रित किया। उनके आमंत्रण पर हम सब कलंकपुर गये। वहां कलाकारों एवं विद्वान लेखकों ने पुन: विभिन्न बिन्दुओं पर रचनाओं का पाठ किया। श्री त्रिभुवन पाण्डे गांधी विचार यात्रा के रुप में पाटन क्षेत्र की ओर से सम्मानित हुए।

यहां डौंडीलोहरा क्षेत्र तथा खेरथा क्षेत्र के विधायकगण श्री डोमेन्द्र भेड़िया एवं श्रीमती प्रतिमा चंद्राकर ने प्रेरक उद्बोधन दिया। अपने अपने क्षेत्रों में संपन्न गांधी विचार यात्रा के अनुभवों को सबने बांटा। प्रथम दिन धमधा क्षेत्र के विधायक श्री ताम्रध्वज साहू ने जामुल में पहुंचकर अपने साथी श्री भूपेश बघेल की सफलता के लिए भावपूर्ण अंदाज में अपनी ओर से मंगल कामना व्यक्त करते हुए गांधीवाद पर विचार व्यक्त किया। समकालीन संदर्भो से गांधीवाद को जोड़ते हुए उन्होंने कहा कि अब तो पथ यही है।

पदयात्रा के इस पावन प्रसंग में महिलाओं की उल्लेखनीय हिस्सेदारी रही। गांव के कलाकारों ने मंच पर जगह जगह गायन किया। पंथी दल औंरी के कलाकारों ने पाटन में अपना प्रदर्शन दिया। पाटन क्षेत्र में लगातार ९ दिनों तक गुरु घासीदास के संदेश, कबीर के अमृतवचन, गांधी जी के विचार की त्रिवेणी बही। हम सबने इसमें अवगाहन किया। गांधी विचार यात्रा के अनुभवों को संक्षेप में समेटना संभव नहीं है। इस अवसर पर संकेतों में केवल इतना ही। शेष फिर कभी जब विस्तार के लिए अवकाश और अवसर मिले।

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श्री भूपेश बघेल को संत कवि पवन दीवान जी का विशेष स्नेह प्राप्त् है। अगासदिया के आयोजनों में दीवान जी ने भरपूर आशीर्वाद हम सबको दिया। दीवान जी डॉ. खूबचंद बघेल और चंदूलाल जी चंद्राकर को छत्तीसगढ़ राज्य का शिल्पी मानते हैं। शायद इन दो महापुरुषों की कल्पना को साकार करने के लिए भूपेश बघेल की कटिबद्धता ही दीवान जी से उन्हें जोड़ती है। ९ फरवरी २००३ को दीवान जी पाटन क्षेत्र में पधारे। आैंधी और करगा गांवों में उन्हें रात्रि २ बजे तक मुग्ध भाव से श्रोताओं ने सुना। रामकथा यज्ञ के मंचों पर दीवान जी ने भूपेश बघेल के आग्रह पर अपना प्रवचन दिया। इन मंचों पर उन्होंने भरपूर काव्य पाठ भी किया। दीवान जी वर्तमान राजनैतिक परिदृश्य के अनुकूल नई कहानी गढ़ने में भी बेहद प्रवीण है। कमाल यह है कि श्रोता भी उनकी कथाओं के विभिन्न आयामों से जुड़कर रसपान करते हैं। धार्मिक मंचों पर तीक्ष्णता के साथ वे राजनैतिक कुमार्गियों के विरुद्ध भी कथा बुनते हैं। सारी कथायें अगर संकलित की जाय तो नये कथा वाचकों के लिए कथायें अत्यंत उपयोगी सिद्ध होगी।

पाटन क्षेत्र के गांवों में घरोघर दीवान जी के चेले हैं। श्री भूपेश बघेल का घर भी उनके मुग्ध शिष्य का ही घर है। दीवान जी ने विवेकानंद आश्रम रायपुर में भी प्रवचन किया है। स्वामी आत्मानंद को वे बड़े भाई मानते हैं। स्वामी आत्मानंद के अनुज स्व. नरेन्द्र देव वर्मा जब विज्ञान महाविद्यालय रायपुर में व्याख्याता थे तभी दीवान जी ने हिन्दी में एम.ए. किया। इसीलिए पाटन क्षेत्र में प्रवचन के लिए निकलने से पहले बिटिया मुक्तेश्वरी के घर आकर उन्होंने भोजन ग्रहण किया।

बेटी दामाद घर भोजन पा लेने जी, सव चलव ...। उन्होंने भोजनोपरान्त हम सबसे कहा। दीवान जी प्राय: प्रवचन से पहले भोजन नहीं करते लेकिन उस दिन पाटन क्षेत्र के विभिन्न गांवों में वे भोजनोपरांत प्रवचन करने के लिए सहमत हुए। दीवान जी रात्रि ३ बजे राजिम के लिए विदा हुए। उनके अद्भुत प्रवचन से अभिभूत श्री भूपेश बघेल ने घर लौटते समय मुझसे कहा कि महराज जी को भूलवश मैं दक्षिणा ही नहीं दे पाया। दूसरे दिन मैंने दीवान जी को फोन पर जब श्री भूपेश बघेल की भूल का ब्यौरा दिया तो अट्टाहास करते हुए उन्होंने कहा-भुलाय नइये दे डरे हे।
मैं सोचता हूं कि डॉ. खूबचंद बघेल के भ्रातृसंघ के प्रमुख स्तंभ श्री पवन दीवान ने शायद दक्षिणा के रुप में श्री भूपेश बघेल की सजग यात्रा को ही स्वीकार कर लिया है।

छत्तीसगढ़ की व्यथा को दीवान जी ने इन शब्दों में व्यक्त किया है ...
छत्तीसगढ़ में सब कुछ है
पर एक कमी है, स्वाभिमान की,
मुझसे सही नहीं जाती है,
ऐसी चुप्पी वर्तमान की।

वर्तमान की चुप्पी को तोड़ते हुए स्वाभिमानी छत्तीसगढ़ के गौरव के लिए किया जाने वाला प्रयास ही असल दक्षिणा है जिसे अदा करने का भरपूर प्रयास श्री भूपेश बघेल कर रहे हैं।

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