छत्तीसगढ़ के गांवों में आल्हा गायकी की परंपरा आज भी शेष है। यद्यपि अब यह आल्हा गायन की विद्या लुप्त् प्राय है। मगर आज भी आल्हा के सिद्ध गायक कलाकार मंगतरराम जांगड़े और कुछ चुनिंदा गायक इस विद्या को बचाये रखने का प्रयास कर रहे हैं।
नारायण प्रसाद चंद्राकर एक भाऊक कलाकार हैं। लेखन में भी उनकी गहरी रुचि है। नेशनल बुक ट्रस्ट इण्डिया के पचमढ़ी शिविर में नारायण को पुस्तक लेखन के लिए आमंत्रित किया गया। छत्तीसगढ़ी कहानी लिखकर नारायण ने शिविर में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा लिया।
नारायण चंद्राकर छत्तीसगढ़ के लिए समर्पित सपूत हैं। वे सदा मंचों में जागृति का शंखनाद करते हैं। चंदूलाल चंद्राकर प्रसिद्ध पत्रकार और महत्वपूर्ण राजनेता थे मगर छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के लिए जो उन्होंने काम किया उससे धरतीपुत्रों की त्यागी परंपरा के नक्षत्रलोक में वे बेहद चमकीले सितारे बन गए। पृथक छत्तीसगढ़ आंदोलन का बेहद संघर्षपूर्ण इतिहास १९५५ से डॉ. खूबचंद बघेल के नेतृत्व में शुरु होता है और १९९२ में चंदूलाल चंद्राकर इसके अंतिम सर्वाधिक तेजस्वी सेनानायक के रुप में परिदृश्य पर उपस्थित होते हैं।
इस आंदोलन को छत्तीसगढ़ के त्यागी महापुरुष पं. सुन्दरलाल शर्मा, ठाकुर प्यारेलाल सिंह, मिनीमाता, पदुमलाल, पुन्नालाल बख्शी, मावली प्रसाद श्रीवास्तव, हरि ठाकुर ने संबल प्रदान किया। इनके अतिरिक्त लाखों समर्पित छत्तीसगढ़ियों ने काम किया। तब २००० में राज्य बना और २००७ में छत्तीसगढ़ी को राजभाषा का दर्जा मिला। अब छत्तीसगढ़ की अस्मिता के लिए लड़ाई बची है। छत्तीसगढ़ राज्य में छत्तीसगढ़ी कहां और किस हालत में है, यह जानकर बहुत से हितचिंतक व्यथित हो जाते हैं। सदा बैर रखने वालों को भी छत्तीसगढ़ ने सम्मान दिया। आल्हा में हुंकार का स्वर प्रमुख है। आल्हा में एक सूत्र है –
जाके बैरी सुख से सोवे,
वाके जीवन को धिक्कार।
जबकि छत्तीसगढ़ इसके उलटा यह सोचता है कि बैरी भी सुख से रह सके, ऐसी स्थिति यहां सदा बनी रहे। छत्तीसगढ़ का हर कवि प्राय: यह कहता है कि हे थके पथिक, आओ यहां विश्राम करो। शायद नई पीढ़ी के कवि नारायण चंद्राकर को यह छत्तीसगढ़ी उदारता बहुत रास नहीं आ रही। इसीलिए चंदूलाल जी की जीवनी को युद्ध के लिए ललकारने वाली कृति आल्हा की शैली में उन्होंने लिखने का प्रयास किया है। लड़ने में सक्षम लोग ही शांति और सुम्मत पाठक के अधिकारी बन पाते हैं। आल्हा शैली में लिखित इस कृति को पाकर पसंद करेंगे ऐसी आशा है।
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