- हरिशंकर उजाला –
समय निकल जाता है और बात रह जाती है। बात सन् १९७२ की है। कोआ. बैंक जिला दुर्ग में मैं कार्यरत था। केन्द्रीय तथा राज्य शासन के लगभग ४० संस्थानों ने केन्द्रीय को.आ. बैंक के हड़ताल में भाग लिया। दाऊ वासुदेव जी चन्द्राकर सचिव थे। अर्धशासकीय संस्था होने के कारण कर्मचारियों में स्थानान्तर की परेशानी से बचने के लिए नगर निगम, सहकारी संस्थाओं में काम करते हुए जीविका जीने वाले और प्रशासनिक क्षमता रखने वालों को मनुष्य की मानसिक कमजोरियों को भांपने की क्षमता रहती है। बैंक में कर्मचारी संघ ने राज्य सरकार के मंहगाई भत्रों की वृद्धि के कारण बैंक में भी कर्मचारियों के वेतन वृद्धि के लिए लिखापड़ी की कि १५ दिन में बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स विचार नहीं करते हैं, तब हड़ताल, नारेबाजी, कालीपट्टी, क्रमिक भूख हड़ताल के पैंतरे प्रारंभ होंगे। ४० दिन का क्रमिक हड़ताल प्रारंभ होगा। उस समय कैडर के जनरल मैनेजर चाफेकर और मैनेजर माधवराव किरोलीकर थे। अब जो भी क्रमिक भूख हड़ताल में बैठते थे। उनके नाम से नगर से ६० या ७०, ८० किलोमीटर दूर तबादला आदेश हड़ताल स्थल पर भेज दिया जाता था। इसके पहले दाऊ जी प्रेम से समझाते थे। देखो हड़ताल वालों के चक्कर में मत रहो। जो काम में आएगा वह उन्नति का पद पाएगा सचमुख जो हड़ताल में नहीं गए पदोन्नत हो गए। अब तो मुझे ही स्वेच्छा से सर्विस छोड़े ३१ वर्ष बीत गए। मेरे साथी अभी भी मोटी तनख्वाह प्राप्त् कर रहे हैं। कई सेवा से मुक्त हो गए। कई एक भेड़िया जी की छत्रछाया में सौभाग्य प्राप्त् कर रहे हैं। उस समय जातिवाद का बोलबाला नहीं था। भाईचारा था।
वास्तविक में द्रोणाचार्य जी महाभारत के युद्ध में चार वेद सामने रखते थे। पीछे धनुष बाण रखते थे। प्रशासनिक क्षेत्र में बैठे लोगों के पास गुरु द्रोण की शक्ति काम करती है। यह क्षमता दाऊ द्रोणाचार्य की महानता का सामंजस्य है। तब और अब की उम्र, कार्य पद्धति, चिंतन चरित्र में सबमें अन्तर आता है लेकिन दाऊ जी में प्रशासनिक क्षमता निखरते गई। म.प्र. शासन के समय विधायक, सहकारी संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर प्रशासनिक क्षमता के कारण शुशोभित हुए, छत्तीसगढ़ शासन बनने के बाद राजा जनक की तरह विदेह बन कर रह गए हैं। जिला के किसानों, कार्यकत्ताओं पर जबर्दस्त पकड़ आज भी है। इसका लोहा मुख्यमंत्री और केन्द्रीय राजनैतिक क्षितिज में स्वीकार किया जाता है।
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Saturday, July 26, 2008
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