Wednesday, November 28, 2007

संपादकीय

अगासदिया संत कवि श्री पवन दीवान पर केन्द्रित यह अंक

आकाशदीप को हम छत्तीसगढ़िया अगासदिया कहते हैं। आज से १२ वर्ष पूर्व जब मैं भिलाई इस्पात संयंत्र के सामुदायिक विकास विभाग में सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रकोष्ठ प्रभारी था तभी अचानक यह शब्द मेरे जेहन में उभरा/कुछ कलाकारों ने छत्तीसगढ़ लोककला महोत्सव के मंच पर विशिष्ट कला साधकों के नाम पर सम्मानों की घोषणा के लिए प्रबंधन पर दबाव बनाया। तब के अत्यंत उदार एम.डी. श्री विक्रांत गुजराल ने पूछा कि जिनके नाम पर हम ये सम्मान देने जा रहे हं वे कौन है। मेरे मुंह से निकल गया - सर वे छत्तीसगढ़ी लोकमंच के आकशदीप है। उन्हें यह उत्तर भा गयाऔर सम्मान शुरु हो गया। दुलार सिंह साव मदरा जी, दाऊ महासिंह चंद्राकर एवं दाऊ रामचंद्र देशमुख सम्मान से कलाकार विभूषित हुए। पिछले दो वर्ष से मेरे अनन्य मित्र स्व. देवदास बंजारे की स्मृति में पंथी साधकों को सम्मानित किया जा रहा है।

ये सचमुच आकाशदीप हैं। इनकी रोशनी में हम राह तलाशते हैं। छत्तीसगढ़ी भाषा चमत्कारिक है। इसने अंग्रेजी, उर्दू, फारसी, हिन्दी के साथ ही देश में बोली जाने वाली प्राय: सभी समृद्ध भाषाओं के शब्दों का छत्तीसगढ़ीकरण किया है। और इस तरह इसका विपुल शब्दकोष विस्तारित होता गया है। छत्तीसगढ़ ने व्यक्तियों, संस्कृतियों और शब्दों के साथ ही लोकगाथाओं को भी छत्तीसगढ़ी रंग में कुछ इस तरह रंगा है कि उसकी मूल पहचान का रंग फीका और छत्तीसगढ़ी रंग बेहद गहरा हो जाता है। यह रंग कुछ इस तरह चढ़ता है कि -

फूटा कुंभ जल जलहि समाना, यह तथ कहियो ज्ञानी।

जैसी स्थिति बन जाती है। इसीलिए छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढ़ी की महिमा को सब सर नवाते हैं। अगासदिया एक ऐसा ही महिमावान शब्द है।

संत कवि पवन दीवान भी हमारे अगासदिया हैं। ऐसे ही अगासदिया की रोशनी में हम विजयपथ पर बढ़े चल रहे हैं। छत्तीसगढ़ अगर हारता है तो योजना कुशल दुष्ट लोगों से। छत्तीसगढ़ की इस कमजोरी का लाभ प्राय: सदियों से किस किस ने नहीं उठाया । संत कवि पवन दीवान भी बार बार ठगे जाते हैं। अपनी सरलता के कारण जतर-कतर चलने पर मजबूर श्री दीवान को जब रास्तों के कांटे अधमरा कर देते हैं तब उन्हें आभास होता है कि वे गलत राह पर चलने का निश्चय कर बैठे। कुछ दूर जाने के बाद फिर नए सिरे से पथ की पहचान शुरु होती है। और फिर नए पथ पर वे सरपट प्रस्थान करते हैं। प्रवचन, कविता, राजनीति की त्रिवेणी बहाने की उनकी विलक्षण क्षमता के कारण लोग हर पथ पर दोनों ओर खड़े होकर मुक्तभाव से उनकी जय जयकार करने पर मजबूर हो जाते हैं। और यह जय जयकार इसलिए होती है क्योंकि वे एक विलक्षण अगासदिया हैं।

उन्हें अगर आलोचना और प्रशंसा से फर्क पड़ता तो वे जीवन भर छत्तीसगढ़ के हित में तरह तरह के प्रयोग नहीं कर पाते। संत पवन दीवान छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढ़ी की उपेक्षा भर से आहत होते हैं। व्यक्तिगत अपमान और उपेक्षा को तो वे गिनते ही नहीं। मगर छत्तीसगढ़ के प्रति हेय दृष्टि वे सहन नहीं कर पाते। जब भी अतिरेक होता है वे आत्मघाती सा दिखने वाला निर्णय लेकर छलांग लगा देते हैं। तब आल-पाल लंका, हनुमान डंका - वाला दृष्य उपस्थित हो जाता है।

उनकी इन्हीं सब विशेषताओं को रेखांकित करते हुए मैंने अगासदिया का पहला विशेषांक निकाला था। अब यह दूसरा विशेषांक आपको सौंप रहा हूं। इसमें उनकी दुर्लभ छत्तीसगढ़ी कविताएं भी हैं। कुछ विशिष्ट लेख हैं जिनकी ताजगी देखते ही बनती है।

आशा है इस अंक से अबूझ संत कवि पवन दीवान को बूझने में थोड़ी सी मदद मिलेगी। आपकी सम्मति की प्रतीक्षा रहेगी।

०००

No comments:

सत्वाधिकारी प्रकाशक - डॉ. परदेशीराम वर्मा

प्रकाशित सामग्री के किसी भी प्रकार के उपयोग के पूर्व प्रकाशक-संपादक की सहमति अनिवार्य हैपत्रिका में प्रकाशित रचनाओं से प्रकाशक - संपादक का सहमत होना अनिवार्य नहीं है

किसी भी प्रकार के वाद-विवाद एवं वैधानिक प्रक्रिया केवल दुर्ग न्यायालयीन क्षेत्र के अंतर्गत मान्य

हम छत्तीसगढ के साहित्य को अंतरजाल में लाने हेतु प्रयासरत है, यदि आप भी अपनी कृति या रचना का अंतरजाल संस्करण प्रस्तुत करना चाहते हैं तो अपनी रचना की सीडी हमें प्रेषित करें : संजीव तिवारी (tiwari.sanjeeva जीमेल पर) मो. 09926615707