एक ही क्षेत्र की सिद्धि से प्राप्त् प्रतिफल से सामान्य मनुष्य परितृप्त् हो जाता है। लेकिन संत कवि पवन दीवान जैसे विलक्षण व्यक्तित्व के लिए एक क्षेत्र की सीमा बहुत छोटी सिद्ध होती है। जिस तरह गांधी जी राजनीति, धर्म, भाषा से लेकर तमाम विविध क्षेत्रों में अपनी छाप छोड़ते चले गए उसी तरह पवन दीवान भी छत्तीसगढ़ी साहित्य, राजनीति, भागवत मंच और काव्य मंच पर अमिट छाप छोड़ सके और इसीलिए उन्हें छत्तीसगढ़ का गांधी कहा गया। वे जीवित किवदंती बन गये।
पिछले दिनों उन्हें हृदयाघात हुआऔर अब वे उससे उबर कर स्वास्थ्य लाभ कर रहे हैं। हृदयाघात हुआ उसके दूसरे ही दिन मुझे उनसे मिलने का अवसर प्राप्त् हुआ। प्रणाम करते ही मेरे मुंह से निकल पड़ा - महराज जी, छत्तीसगढ़ इतना अभागा नहीं है। आपकी छाया उसे अभी आगामी कई दसकों तक मिलेगी। यह सुनकर वे आक्सीजन मास्क के भीतर मुस्कुरा उठे। मुझे भय सा लगा कि कहीं वे नैसर्गिक ठहाके की जद में न आ जायें।
उस दिन मेरे साथ रावघाट के योद्धा विनोद चावड़ा, माई महेश वर्मा और डॉ. मंडरीक भी थे। हम दिल्ली जाने के लिए पूरी तैयारी से गये थे। वहां जाने पर पता चला कि परिवार के लोगों में से दो लोग जाने के लिए तैयार हैं। कन्हैया उनका पुराना सेवक था। जिसे दीवान जी दो वर्ष पहले विदा कर चुके थे। इस समय कन्हैया सहर्ष सेवा के लिए तैयार हो गए। दीवान जी ने भी मेरे आग्रह का मान रखते हुए कन्हैया की सेवा को स्वीकार कर लिया। हम लौटने लगे तब पता चला कि नौ लाख रुपया राज्य शासन ने दीवान जी के इलाज के लिए स्वीकृत किया है। उदार मुख्यमंत्री रमन सिंह जी अपनी कीर्ति के अनुरुप त्वरित प्रबंध कर चुके थे। लेकिन कन्हैया और अन्य साथ जाने वाले घर से नगद राशि लेकर नहीं आये थे। रावघाट के योद्धा भाई विनोद चावड़ा ने जेब से तुरंत नौ हजार रुपया निकाल कर जिला पंचायत, अध्यक्ष अशोक बजाज को दे दिया। और उन्होंने कहा कि जब भी किसी तरह की जरुरत हो आदेशित करें। यही उदारता उन्हें छत्तीसगढ़ के सपूत के रुप में सम्मान के योग्य बनाती है। वे कामयाब वकील हैं। पिछले दिनों ही संत पवन दीवान ने उन्हें सम्मान और आशीष देकर गले से लगाया था। हादसे की खबर से विनोद चावड़ बेहद दुखी हो गए थे।
उन्हीं की तरह छत्तीसगढ़ भर के दीवान जी के प्रशंसक एवं भक्त बेहद व्यथित थे। लेकिन हम सबके सौभाग्य से संत पवन दीवान अब स्वस्थ हो गए हैं।
संत पवन दीवान को सरस्वती सिद्ध हैं। किसी भी मंच पर जब वे होते हैं तो शेष वक्ता या प्रतिभागी श्रीहीन हो जाते हैं।
वे विगत कुछ माह से छत्तीसगढ़ी भाषा की स्वीकृति के लिए चल रहे संघर्ष में शरीक थे। धमतरी के कार्यक्रम में वे गए। उन्होंने कहा कि राज्य पक्षी, राज्य पुष्प, राज्य पशु होता है, उसी तरह छत्तीसगढ़ी ही छत्तीसगढ़ की राज्यभाषा है। राजभाषा जब बने तब बने राज्य भाषा तो बन ही सकती है। जनता जिसे बोले वही है राज्य भाषा।
इसी तरह की अनोखी सूझों के कारण वे चर्चा में रहते हैं। सबका सदैव आदर पाते हैं। छत्तीसगढ़ में वे एक ऐसे निर्विवाद व्यक्ति हैं जिनकी बोली-बानी, सोच और जीवन शैली पूर्णत: छत्तीसगढ़ी है। वे छत्तीसगढ़ के प्रतीक हैं। विरोधाभास तो महान व्यक्तियों में रहता ही है लेकिन तमाम अंतर्विरोध के बावजूद उनके व्यक्तित्व की चमक आलोचना के अंधकार पर भारी पड़ती है। यही दीवान जी के साथ भी है। वे लगातार गो-सेवा आयोग के अध्यक्ष हैं। सत्ता बदल गई लेकिन दीवान जी की गो-सेवा यथावत चलती जा रही है।
वे फकीर हैं मगर धनकुबेरों की बस्ती में उन्हीं का कद इतना ऊंचा है कि उनकी ओर देखने वालों की पगड़ी गिर गिर पड़ती है।
दीवान जी मानवता के अमर गायक हैं। छत्तीसगढ़ के प्रति उनका प्रेम शोषित जन के प्रति प्रेम है। वे क्षेत्रीयतावादी नहीं है। जिस क्षेत्र में वे पैदा हुए उस क्षेत्र में चलने वाले दमन के विरोधी है। छत्तीसगढ़ के हक पर हमला होता है तब वे विचलित होते हैं। वरना सभी के मन में उनके प्रति श्रद्धा है और सभी के लिए उनके मन में अपार स्नेह है।
तोर धरती तोर माटी रे भइया
तोर धरती तोर माटी
लड़ई झगरा के काहे काम
जे झन बेटा ते झन नाव।
धरती बर तो सबो बरोबर,
का हाथी का चांटी रे भइया।
ये पंक्तियां दीवान जी के हृदय की विशालता को प्रतिबिंबित करती है।
राजिम में संस्कृत पाठशाला में पढ़ने वाले बच्चे देश देशांतर में यशस्वी बन रहे हैं। संस्कृत में दीक्षा के साथ एक विलक्षण संस्कार उनके आश्रम में परिचालित स्कूल में मिलता है। भागवत प्रवचन कर जो धनराशि वे अर्जित करते हैं उसे संस्कृत शाला को समर्पित कर देते हैं। अपने दायित्वों के प्रति सजग रहकर ही दीवान जी ने भिन्न-भिन्न क्षेत्रों की यात्रा की है। इमरजेंसी में आश्रम द्वारा संचालित उनकी शाला पर राजनीति की काली छाया न पड़ती तो वे शायद ही ताल ठोक कर तत्कालीन चक्रवर्ती सूरमाआें के खिलाफ खड़े होते। आजाद भारत के इतिहास में राजिम का महासमर अपनी विलक्षण उपलब्धि के लिए चर्चा में आया। लंगोटी धारी साधु ने वंशगद्दी पर विराजित राजनीति के राजकुंवर को परास्त किया यह बड़ी अनोखी घटना घटी।
अब साठ पार कर चुके संत कवि पवन दीवान को पुन: साहित्य, संस्कृति और भागवत प्रवचन के मंचों की ओर लौट आना था। लेकिन वे नतसिर खड़े विनम्र याचकों के आग्रह से अपने को कभी बचा न सके। इसीलिए अपनी शक्ति के श्रोत की ओर न लौटकर प्रतिकूलताओं के महासमर में कूद पड़ते हैं।
अब हम केवल प्रार्थना ही कर सकते हैं कि हे छत्तीसगढ़ के सपनों के शिल्पी अब लौट भी आओ। लौटो और जी भर गाकर हम सबको आश्वस्त करो।
ओ थके पथिक विश्राम करो, मैं बोधिवृक्ष की छाया हूं,
इस महासमर में जीवन का, संदेश सुनाने आया हूं।
- डॉ. परदेशीराम वर्मा
०००
Wednesday, November 28, 2007
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1 comment:
मैं छोटा था तबसे मैंने उनकी कविताये पढी है ,राख और "राजिम लोचन तुम्हे प्रणाम "बहूत पसंद है||पिचले वर्ष जब उनका हमारे गाँव आना हुआ था ,तब उनके मुखारविंद से "राजिम लोचन तुम्हे प्रणाम सुनने का सौभाग्य मिला |वे छत्तीसगढ़ के गौरव है ईश्वर उन्हें प्रसन्न तथा स्वस्थ रखे ,
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