- महासिंह चंद्राकर
यूं तो दुनिया में प्रतिदिन सैकड़ों जीवन पुष्प खिलते हैं, और सूख कर झड़ जाते है फिर कौन किसे, कब तक याद रखता है ? दो-चार दिन बस । फिर लोग सब कुछ भूल जाते हैं । किन्तु कुछ एक व्यक्तित्व ऐसे भी होते हैं, जिन्हें भुला देना असंभव होता है । उनकी महानता, उनके कार्यो के कारण । कुछ ऐसे ही व्यक्तित्व के धनी थे, १स्व. डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा२ । इस अंचल की माटी के प्रति उनके ह्रदय में ममता और श्रद्धा का सागर उमड़ा करता था, उसे उन्होंने कभी अपने अन्दर छिपा कर नहीं रखा ।
अंचल के लोगों को उनका सही स्थान दिलाते, उनमें, उनके स्वाभिमान को जगाने की जो अकुलाहट डॉ. वर्मा के ह्रदय में थी, उसी का परिणाम सोनहा बिहान जैसी संस्था का निर्माण है । उसी संस्था के निर्माण काल से ही वे इससे जुड़े रहे । इसकी नींव पत्थरों को आपके सर्जक हाथों ने सुन्दर, मजबूती के साथ जमाया है । संस्था का मुख्य कथानक आप ही की साहित्यिक कृति - १सुबह की तलाश२ का निखरा हुआ नाट्य रूप है । यही सोनहा-बिहान कहलाया ।
संस्था के प्रत्येक सदस्य से आपका संबंध असीम स्वजन की तरह रहता था । इन सबसे हटकर, प्रभाव डालने वाली वह बात आप में थी, जिसे आपकी मधुर गंभीर आवाज का जादू कहना चाहिेए । यह ऐसी आवाज थी, जिसे सुनकर हजारों दर्शक मंत्र-मुग्ध से बैठे रह जाते थे । ऐसी आवाज जिसके आव्हान पर लोगों के ह्रदय मचल उठते थे, कुछ कर दिखाने को । उनका एक एक शब्द ह्रदय की गहराइयों से निकला हुआ प्रतीत होता था । इनके निधन से इस संस्था की जो क्षति हुई है, उसे कहा नहीं जा सकता । उनका कोई विकल्प नहीं है । संस्था के प्रति उनका लगाव देखते ही बनता था । आज जब वे हमारे बीच नहीं है, हम सभी सोनहा-बिहान परिवार के सदस्य उन्हें अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते है तथा संकल्प करते हैं, कि डॉ. वर्मा के स्वप्नों की ऊंचाई तक इस संस्था को ऊपर उठाने का प्रयत्न करेंगे ।
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