- पवन दीवान
छत्तीसगढ़ के दोनों सपूत एक ही घर में जन्में । धन्य हैं उनके पिता धनीराम जी वर्मा । स्वामी आत्मानंद तथा डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा दोनों अपने अपने क्षेत्र की अविस्मर्णीय अंर्तशक्ति का साक्षात करवाया । स्वामी आत्मानंद अद्भुत वक्ता एवं वंदनीय चिंतक थे । उनके अनुज डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा साहित्य के धूमकेतु बने । मुझे इस परिवार से सदैव स्नेह मिला । अच्छा लगता है यह देखकर कि दोनों सपूतों के द्वारा निर्मित भवनों का श्रृंगार निरंतर नई पीढ़ी कर रही है ।
डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा ने छत्तीसगढ़ की अस्मिता के लिए उम्र भर काम किया । उम्र छोटी मिली मगर काम बड़ा कर गए । ३अरपा पैरी के धार, महानदी हे अपार४ यह गीत जब भी बजता है मैं विहवल हो उठता हूं । माता की ऐसी वंदना किसी दूसरे बेटे से नहीं बन पड़ी । इस गीत को डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा ने ह्रदय के खून से लिखा है । इसके पद पद में छत्तीसगढ़ महतारी की वंदना है । छत्तीसगढ़ की बेटी भगवान श्रीराम की माता कौशल्या का मायका यह छत्तीसगढ़ डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा की अमर कविता में पूरी भव्यता से साकार हमारे सामने आ खड़ा होता है ।
सोनहा बिहान का सपना कोई छत्तीसगढ़ का ऐसा सपूत ही साकार कर सकता था जो छत्तीसगढ़ के लिए सुबह की तलाश करता पल पल कपूर की तरह पार्थिव अस्तित्व को समर्पित कर रहा था । डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा ने घर परिवार, माता-पिता के लिए विवाहित जीवन को कर्त्तव्य भाव से स्वीकार किया । धनीराम जी का केवल यह सपूत ही विवाहित हुआ । उनके शेष चार बेटों में तीन तो सन्यासी हो गए, मगर एक पुत्र अविवाहित रहकर विवेकानंद विचारधारा के लिए समर्पित संस्था को संपोषित करते हुए पंड़ित रविशंकर विश्वविद्यालय में रेक्टर के रूप में भी सेवाएं दे रहे हैं ।
डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा और दाऊ महासिंह चंद्राकर ने सोनहा बिहान के माध्यम से छत्तीसगढ़ मे जागरण का नया इतिहास रच दिया । गीत, संगीत कथा, संचालन, अभियान हर दृष्टि से इस संस्था ने एक आदर्श प्रस्तुत किया । सोनहा बिहान से प्रेरित होकर छत्तीसगढ़ के कलाकारों ने अपनी अपनी संस्थाओं का गठन किया । आज सोनहा बिहान की बिरादरी खूब फैल गई है । यही है सच्ची साधना का असल प्रतिफल ।
छत्तीसगढ़ राज्य बना लेकिन इसे देखने के लिए डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा हमारे बीच नहीं रहे । वे होते तो राज्य में साहित्य-संस्कृति के क्षेत्रों में कुछ ऐसा होता जिसे पूरा राष्ट्र देखता-सुनता और विमुग्ध हो जाता । हम सब मिल जुल कर ऐसे सपूतों के सपनों को साकार करने के लिए काम कर उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि दे सकते है । भाषा के बिना मनुष्य और प्रान्त गूंगा रह जाता है । छत्तीसगढ़ छत्तीसगढ़ी में ही स्वयं को मुखरित कर सकता है । इस दिशा में अब सही पहल हो भी रही है ।
छत्तीसगढ़ी पुन: एम.ए. के पाठ्यक्रम में सम्मिलित है । यह एक प्रशंसनीय पहल है ।
अंत में लोक कलाकार कोदूराम वर्मा द्वारा गाई जाने वाली इन पंक्कियों के माध्यम से में छत्तीसगढ़ी भावधारा को नाम नमन करना चाहता हूँ ....
‘तोर चरन मनावंव ओ छत्तीसगढ़ महतारी ।
तोर महिमा ला गांवव, ओ छत्तीसगढ़ महतारी ।।
तोर कारा म कौंसिला जनम लिस ।
रामचंद्र के दाऊ ओ माता रामचंद्र के दाई ।।
तोर महिमा ला गांवव, ओ छत्तीसगढ़ मोर दाई ।।‘
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