- भूपेश बघेल
डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा छत्तीसगढ के महिता के गायक है और इतने बडे साहित्यकार हैं, इसे मैने धीरे-धीरे जाना । मैं अपने खेत से चारा आदि लेकर विवेकानंद आश्रम रायपुर जाता था । स्वयं ट्रेक्टर चलाकर मैं आश्रम जाता । वहां स्वामी आत्मानंद जी मुझे मिलते । मैं प्रणाम कर लौट जाता । पता नहीं स्वामी जी ने मुझमें क्या पाया कि अपने अनुज डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा की बिटिया मुक्ति के लिए उन्होंने मुझे चुन लिया । मैं तब कृषि कार्य में दक्ष एक शिक्षित युवक भर था । मुझे इस परिवार से जुड़ने का गर्व उस समय भी हुआ । तब मैं डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा जी के संबंध में कम जानता था । केवल स्वामी आत्मानंद जी के व्यक्तित्व की चमक भर देख पाया था । वे महान व्यक्ति थे । लेकिन मुझसे सदैव सहज भाव से मिलते । मैंने उन्हें बालीबाल खेलते, गायों को चारा देते, बच्चों को भोजन कराते पाया । आश्रम में बालक भी पढ़ने के लिए रहते । फिर वाचनालय बना । मैं वहां भी बैठने लगा । कुछ विशिष्ट ग्रन्थों को मैंने वहीं प्राप्त किया । दर्शन के प्रति शुरू से ही मेरी रूचि रही । मैंने आचार्य रजनीश से लेकर प्राय: अनेकों दार्शनिकों को जानने का यत्न किया है । सरल स्वामी आत्मानंद की बातें मुझे अच्छी लगती । उनका स्वर भी मधुर था । भाषा पर उनका अपूर्व अधिकार था ।
विवाह के बाद धीरे-धीरे मेरी दिशा भी बदली । राजनीति में आया । लेकिन छत्तीसगढ़ी भाषा एवं संस्कृति के प्रति जो ललक है वह स्वामी जी की प्रेरणा से ही मेरे भीतर पनपी । सभी जानते हैं कि मैं साहित्यकारों, कलाकारों की बेहद क्रद करता हूँ । यह संस्कार मुझे स्वामी जी से मिला । बाद में सोनहा बिहान मे गाये जाने वाले गीत ३अरपा पैरी के धार४ को और सुनने का अवसर लगा । मैंने उस गीत को पाटन क्षेत्र में आयोजित गांधी विचार यात्रा में छ: दलों से गवाया । वह अविस्मरणीय अवसर था । जहां सोनहा बिहान के पुराने कलाकार भी थे तो कृष्णकुमार पाटिल जैसे सधे हुए नये युवक भी थे । वह प्रसंग सदा सदा के लिए पाटन के मानस पटल पर अमिट हो गया । पाटन ने ही स्वामी आत्मानंद की मूर्ति को मान दिया । जे.एम.नेलसन द्वारा निर्मित भव्यमूर्ति पाटन में विवेकानंद विचारधारा से जुड़े समस्त आगन्तुकों को प्रेरित करती है ।
डॉ. परदेशीराम वर्मा एक जुनूनी व्यक्ति हैं । छत्तीसगढ़ के सपूतों को नमन करने का सुअवसर उनके आयोजनों में जाकर हम भी प्राप्त करते हैं । छत्तीसगढ़ में ३सोनहा बिहान४ का स्वप्न साकार हो, यही कामना है ।
छत्तीसगढ़ी संस्कृति, साहित्य, लोकमंच और धर्म की धरती है जिसकी दूसरी मिसाल नहीं मिलती । सरलता और सहजता यहाँ का विशेष गुण है । गुरू बाबा घासीदास, संत कबीर के शिष्य धर्मदास और स्वामी विवेकानंद ने इस धरती को पावन बनाया । छत्तीसगढ़ में उनके चरण पड़े । छत्तीसगढ़ की संस्कृति और भाषा इसीलिए इतनी समृद्ध है । पंथी और पंडवानी के माध्यम से वह देश देशान्तर तक जा पहुंची है । अगासदिया पत्रिका के डॉ. खूबचंद बघेल, चंदूलाल चंद्राकर, महासिंह चंद्राकर, मिनीमाता, हरि ठाकुर, पवन दीवान, कोदूराम दलित, जे.एम. नेलसल अंक खूब चर्चित हुए । इसी क्रम में डॉ. परदेशीराम वर्मा ने डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा पर केन्द्रित अंक निकालकर एक प्रशंसनीय दायित्व का निर्वाह किया है । मैं इस कार्य के लिए अगासदिया परिवार को बधाई देता हूँ । आशा है, यह सिलसिला जारी रहेगा ।
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