दाऊ जी की राजनीति सर्वविदित है। वे पिछड़ों, दलितों, धरतीपुत्रों और आमजन के लिए लड़ने वालों के पक्षधर हैं। उन्होंने साहस के साथ अपनी बात सदा रखी। मूड़ कटाय, भुई धरै यह जो कबीर का कथन है उसी अंदाज के योद्धा हैं दाऊ जी। वे लटर-पटर, झूठ-फरेब, मुंहदेखी पसंद नहीं करते। दाऊजी न होते तो स्थानीयता का रंग जो आज हम देखते हैंवह बहुत फीका रहता। यद्यपि दाऊ जी का प्रयास पूर्णत: सफल नहीं हुआ है। मगर जो प्रयास वे कर रहे हैं कोई अन्य उनके समकक्ष नहीं है। छत्तीसगढ़ सीधे-साधे लोगों का अंचल हैं। यहां बाहरी तत्व सभी क्षेत्रों में प्रभावशाली हैं। वै दौड़ में काफी आगे निकल गये हैं। त्रिटंगी दौड़ चल रही है। एक तगड़े व्यक्ति के पांव के साथ कमजोर को बांधकर दौड़ाया जाय तो गिरेगा कमजोर ही। सजोर तो सदा ही हुद्दा मारकर आगे निकल जाता है। दाऊ जी इस बात से पीड़ित हैं। धन्य है उनकी यह सोच। जो भी उन्हें जानता है वह उनके व्यक्तित्व से प्रभावित होकर रहता है।
वे संगीत प्रेमी ही नहीं संगीत जानकर, संगीतकार भी हैं। दाऊ जी के पास प्रभावी आवाज और बेहद सतर्क कान है। वे बोलते हैं तो लगता है शेर गरज रहा है। सुनते हैं तो लगता है श्रद्धालू गंभीर, ज्ञान व्यक्ति सुन रहा है। उनका परिवार कला, शिक्षा, चिकित्सा, कृषि और राजनीति क्षेत्रों में काम करने के लिए चर्चित हैं।
हमारी पीढ़ी के लोग दाऊ जी के प्रताप से भली भांति परिचित हैं। छत्तीसगढ़ और दुर्ग को उनसे अभी बहुत कुछ प्राप्त् करना है। वे सियान हैं। जिस उम्र में वे जा पहुंचे हैं वहां पार्टी परिवारवाद का महत्व नहीं रहता। वे सन्यास की उम्र में हैं। जहां राग-विराग, ईर्ष्या-द्वेष और हर तरह की लघुता के लिए कोई स्थान नहीं।
मुझे दाऊजी का मूल्यांकन न होना थोड़ा अचरज भरा लगता है। वे बहुत बड़े व्यक्ति हैं। एक शेर के माध्यम से मैं अपनी भावना रखते हुए दाऊ जी को अमृत सम्मान के अवसर पर प्रणाम निवेदित करता हूं।
किसी को हो न सका, उसके कद का अंदाज
वो हिमालय है मगर सर झुकाये बैठा है।
प्रस्तुति,
गजाधर रजक, गोरेलाल गुप्त (विधायक प्रतिनिधि)
०००
Saturday, July 26, 2008
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