Wednesday, November 28, 2007

संत कवि पवन दीवान को अत्यंत प्रिय नेलसन कलागृह में संत समागम

छत्तीसगढ़ के विधानसभा भवन में महात्मा गांधी की जो विशाल मूर्ति लगी है उसे देखकर बरबस संसद भवन दिल्ली के बापू याद हो जाते है। रायपुर के इस गांधी को छत्तीसगढ़ के गुणी कलाकार बेटे जे.एम. नेलसन ने विधानसभा अध्यक्ष राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल की प्रेरणा से आकार दिया है।

जे.एम. नेलसन के कला जीवन का यह एक अनोखा कीर्तिमान है। किसी किसी कलाकार को ऐसा सौभाग्य प्राप्त् होता है। नेलसन है तो अनोखा कलाकार और उसकी उपलब्धियां भी उल्लेखनीय रही है लेकिन शुक्ल जैसी किसी गुणग्राही उदार पारखी की नजर हर कलाकार पर भला कहां पड़ती है।

नेलसन ने जीवन भर भिलाई इस्पात संयंत्र की नौकरी की। उसने इस्पात भवन के गेट को सजाकर सिद्ध कर दिया कि वह एक बिरला कलाकार है लेकिन मुर्गाचौक की सज्जा हुई तो दिल्ली के कलाकार ने मुर्गा उड़ाया। नेलसन इससे बेहद व्यथित हुआ।
डोंगरगढ़ की पहाड़ी पर स्थापित बुद्ध की प्रतिमा शांति और अहिंसा का संदेश दे रही है। इस प्रतिमा को देखकर जापान के गुणग्राही यात्रियों ने उसे जापान चलकर मूर्ति बनाने का प्रस्ताव दिया। प्रस्ताव बेहद लाभप्रद था। मगर नंदिनी अहिवारा में खेलकूद कर जवान हुआ नेलसन छत्तीसगढ़ में रहकर कीर्तिमान बनाने का सपना देखता रहा। यह सपना अब जाकर पूरा हुआ। भिलाई सेक्टर-९ चौक में पंडित रविशंकर शुक्ल की मूर्ति लगी।

इस मूर्ति को बनाने का अवसर अगर किसी को दिया जाना था तो वह नेलसन ही था। जवाहर लाल नेहरु चिकित्सालय में शहीदों की जीती जागती मूर्तियां लगी है। ये मूर्तियां नेलसन की साधना का जस गाकर आज भी कहती है कि पंडित रविशंकर शुक्ल से जुड़ने का अधिकार उस लौहकर्मी कलाकार ने सबसे पहले बनाया था जिसने जीवन भर इस्पात ढालते हुए कला की साधना की।

भिलाई इस्पात संयंत्र के इतिहास में एमडी संगमेश्वरम् का युग कला और साहित्य के संरक्षण, प्रोत्साहन सम्मान की दृष्टि से लौह नगर का स्वर्णयुग कहा जा सकता है। यह मूर्ति अगर तब लगती तो शायद नेलसन जरुर जल्द याद किया जाता। कहावत यूं ही नहीं बनी है - गुण न हिरानो, गुन गाहत हिरानो है।

नेलसन इस उपेक्षा से और आहत हुआ लेकिन इसी बीच नेलसन कलामय जीवन में बाबूजी अर्थात कवि राजनेता राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल का प्रादुर्भाव हुआ। उन्होंने नेलसन कलागृह में पधारकर चंदूलाल चंद्राकर स्मृति समारोह का शुभारंभ किया। इसी अवसर पर बापू की विशाल मिट्टी की प्रतिमा उन्हें दिखाई गई। कुछ थोड़े से सुझावों के बाद यह तय हुआ कि मूर्ति नेलसन ही बनायेंगे।

यह एक कलाकार के जीवन में ऐसा विलक्षण प्रसंग है जिसकी प्रेरणा उसे उतुंग ऊंचाईयों की ओर ले जाती है।
राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल में विलक्षणता और गुणवत्ता को समझने का माद्दा है। इसे उन्होंने अपने जीवन से अर्जित किया है। इसलिए वे लिख सके ...

कुछ कसक उठे, चमके भीतर,
दीवाना आश डोल उठे,
मेरे बीते सपनों को,
अपने याद, सजा देना।

प्रखर गांधीवादी विचारक शुक्ल जी के सपनों को नेलसन ने सज्जित कर विधान सभा भवन में पूरी गरिमा के साथ प्रतिष्ठित कर दिया।

जे.एम. नेलसन की गांधी जी को जुड़ने की कथा कम रोचक नहीं है। नेलसन की गांधी जी सदा आकर्षित करते रहे हैं।
छुटपन में गांधी जी की कई छोटी-छोटी मूर्तियां भी बनाई लेकिन पहली मूर्ति जो उसकी कीर्ति के अनुरुप बनी वह लगी है गांव कोलिहापुरी में। यह मूर्ति छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के द्वारा स्थापित है। यह पहला मौका था जब नेलसन गाँधी जी के सूखे सूखे से संत्रस्त हुआ। नेलसन इस दृष्टि से गालिब के पक्के भतीजे हैं कि समय, स्थान किसी भी तरह के व्यवधान से मुक्त होकर चचा की पंक्ति के सहारे गिलास लेकर बैठ जाते।

गालिब शराब पीने दे, मस्जिद में बैठकर,
या वो जगह बता दे, जहां पर खुदा नहीं।

भला चचा को कोई बता नहीं सका तो भतीजे को कौन बताता। लेकिन गाँधी बबा ने बता दिया कि बेटा, यह जो नेलसन कलागृह है यहां तुम मेरे साथ रहते हुए पीकर देखो।

और सचमुच नेलसन पर सूफी रंग जा चढ़ा। उसके मित्र चिढ़ाते भी थे कि वे एक सरस आदमी कैसे नीरस होकर अलग थलग पड़ गया है। अलग थलग पड़कर एकाग्र होकर नेलसन ने गाँधी जी की साधना की और आज चारों ओर उसके नाम का डंका बज रहा है।

नेलसन कलागृह में छत्तीसगढ़ के महापुरुषो का कब्जा सा है। कहीं ठाकुर प्यारेलाल सिंह स्वाभिमान का पाठ पढ़ा रहे हैं, तो कहीं डॉक्टर खूबचंद बघेल छत्तीसगढ़ की महिमा का बखान कर रहे हैं। कहीं चंदूलाल चन्द्राकर किसानी के नये तरीकों पर प्रकाश डाल रहे हैं तो कहीं छत्तीसगढ़ के विवेकानंद स्वामी आत्मानंद गीता का मर्म समझा रहे हैं।

नेलसन भिलाई इस्पात संयंत्र से स्वैच्छिक सेवा मुक्ति लेकर संतो और महापुरुषो की सोहबत का सुख उठा रहे हैं। वे एक अत्यंत भावुक और सेवाभावी कलाकार हैं। पैसे का उनके लिए कोई मोल नहीं है। यह जगह-जगह स्वनिर्मित मूर्तियां दान कर देने वाला कलाकार और नगर नंदिनी को १४ नवंबर के दिन पंडित नेहरु की विशाल मूर्ति की यादों से जोड़ने जा रहा है।
अपने पूज्य स्वर्गीय पिता की स्मृति में नेलसन ने पंडित नेहरु की विशाल मूर्ति स्थापित करने का संकल्प लिया है। गाँधी से जुड़े नेलसन के लिए पंडित जवाहरलाल नेहरु से जुड़ने का यह क्रम स्वाभाविक है लेकिन यह सुखद संयोग भी है कि छत्तीसगढ़ शासन द्वारा बाहर से लाई गई राजीव गांधी की मूर्ति की मुखाकृति को भी इन्हीं दिनों नेलसन ने संवारा-सजाया है।

नेलसन की इस विकट साधना में रमन साहनी जैसे उनके सक्षम मित्र का सर्वाधिक योगदान है। नेलसन का पूरा परिवार तो बधाई का पात्र है ही। नेलसन कलागृह में ही गाँधी जी ढले। ठांय-ठांय, ठिकिर-ठिकिर चार माह तक चला। कलाकृतियां बनती हैं और अपने गंतव्य की ओर चल देती है। कला की धारा लिए नेलसन पुन: जुट जाते हैं अपने नये काम में। अरुण कमल ने ठीक ही कहा है -

सारा लोहा उनका, अपनी केवल धार

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