Wednesday, November 28, 2007

छत्तीसगढ़ की पहचान - संत कवि पवन दीवान

- लेखराम मढ़रिया

संत कवि पवन दीवान जी के संबंध में मुझ जैसे अकिंचन के द्वारा कुछ लिखना सूर्य को दीपक दिखाने के समान है। अनयास आज मुझे जो पावन अवसर मिला है, उसे मैं कदापि खोना नहीं चाहता, भले ही आप इसे मेरी घृष्टता ही क्यों न समझें ? पावन सलिला महानदी के अजस्रधारा की कल-कल ध्वनि से ताल मिलाते हुए अपनी उन्मुक्त ठहाकों से सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ अंचल को गुंजायमान करने वाले विराट व्यक्तित्व के कुबेर किन्तु फकीर संत पवन दीवान से छत्तीसगढ़ का ऐसा कौन हतभाग्य व्यक्ति होगा जो परिचित न हो ? दीवान जी का जन्म १.१.४५ को छत्तीसगढ़ का प्रयाग राजिम के पास स्थित ग्राम किरवई के प्रतिष्ठित ब्राम्हण परिवार में हुआ था। उन्की प्रारंभिक शिक्षा गांव में तथा स्कूली शिक्षा फिंगेश्वर में हुई। आपकी उच्च शिक्षा रायपुर में हुई। आपने हिन्दी, संस्कृत एवं अंग्रेजी में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त् की। दीवान जी छात्र जीवन से ही साहित्य सृजन करने लगे थे। हिन्दी और छत्तीसगढ़ी में आप कविताएं तो लिखते ही हैं, मौका-बे-मौका अंग्रेजी में भी कविता करने से नहीं चुकते। भाषा और शब्द आपके अनुगामिनी हैं। दीवान जी की वक्तृत्व कौशल अद्भुत है। वे प्रख्यात सरस भागवत कथा के प्रवचनकर्त्ता है। पृथक छत्तीसगढ़ राज्य के लिये कुशलतापूर्वक जन आंदोलन का भी आपने नेतृत्व किया है। राजनीति में भी आपने उल्लेखनीय भागीदारी निभाई है। किन्तु सच तो यह है कि पहले आप राष्ट्र प्रेमी, मानवतावादी और संवेदनशील कवि हैं।
अध्ययनकाल में ही आप का कवि हृदय दीन दलितों की पीड़ा से व्यथित होता था, इसीलिए आपमें वैराग्य की भावना बलबती होती गई। अंतत: आपने स्वामी भजनानंद जी महाराज से दीक्षा लेकर स्वामी अमृतानंद बन गये। आपने केवल एक गेरुआ गमछा मात्र को अपना वसन चुन लिया। आपके प्रारंभिक रचनाओं में मानवतावादी और असीम राष्ट्र प्रेम के भाव प्रमुखता से उद्गारित हुये हैं। भारत के पवित्र माटी पर आपकी अगाध श्रद्धा है -

माटी से तन माटी से मन, माटी से ही सबका जीवन,
मेरा हर स्वर इसका पूजन चंदन से भी है पावन।

दीवान जी भारत के विशाल संस्कृति और सहिष्णुता के पुजारी हैं अत: भारत भूमि को शांति का सागर निरुपित करते हैं

ओ दुनिया के पापी लोगों, मेरी गंगा में स्नान करो,
मेरे सुख से है जलन अमर, चुल्लु भर जल में डूब मरो।
मेरी माँ-बहनों के सिर पर, यह शांति सत्य की गागर हैख
खारी मीठी नदियां मिलती, मेरा भारत एक सागर है।

राष्ट्र प्रेम और राष्ट्रीयता के भाव निम्न पंक्तियों में तरंगित होती है -

बसा हमारे प्राणों में है प्राण राष्ट्र का,
लिखा हमारे हाथों में निर्माण राष्ट्र का।
पाषाणों में बंधा नहीं भगवान राष्ट्र का,
कोई प्राण न सोयेगा निष्प्राण राष्ट्र का

दीन हीन लोगों की विवशता एवं वर्तमान व्यवस्था से संत कवि का मन व्यथित हो उठता है, मेरा देश कविता में उनकी व्यथा स्पष्ट झलकती है -

सड़कों की नंगी जांघों पर, नारे उछला करते हैं,
सिद्धांतों के निर्मम पंने, कृतियां कुचला करते हैं।
हर भूखा भाषण खाता है, प्यासा पीता है दाऊ,
नंगा है हर स्वप्न यहां पर, हर आशा है बाजारु।

छत्तीसगढ़ के शोषकों के प्रति उनके मन में आक्रोश है वे शोषकों को चेतावनी देते हुये कहते हैं -

घोर अंधेरा भाग रहा है, छत्तीसगढ़ अब जाग रहा है,
खौल रहा नदियों का पानी, खेतों में उग रही जवानी।
गंूगे जंगल बोल रहे हैं, पत्थर भी मुंह खोज रहे हैं,
धान कटोरा रखने वाले, अब बंदूकें तोल रहे हैं।

दीवान जी फुटबाल और बालीबाल के उत्कृष्ट खिलाड़ी भी थे। सस्वर कविता पाठ करने में आपको महारत हासिल है। जब वे अपनी ओजस्वी वाणी से अपनी कविता का फट देते हुए व्याख्यान देते हैं तो सारा जन समुदाय मंत्रमुग्ध हो जाता है। डॉ. खूबचंद बघेल जब दीवान जी की राष्ट्रीय कविताओं का सस्वर पाठन सुने तो वे अत्यधिक प्रभावित हुये। डॉ. बघेल संत पवन दीवान को अपने पृथक छत्तीसगढ़ राज्य के जन आंदोलन में जोड़ने के लिये विस्तृत चर्चा किये। इस आंदोलन में संत कवित तन मन से जुट गये।

जन जागरण हेतु दीवान जी अपने समकालीन छत्तीसगढ़ अचंल के कवियों को भी इस आंदोलन से जोड़ा। उनकी कविताओं में छत्तीसगढ़ की संस्कृति, दीन दलितों की पीड़ा और शोषण के विरुद्ध आक्रोश झंकृत होने लगी। छत्तीसगढ़ियों का स्वाभिमान के प्रति जागरुकता का अभाव उन्हें हमेशा सालती है तभी तो उन्होंने लिखा है -

छत्तीसगढ़ में सब कुछ है,
पर एक कमी स्वाभिमान की।
मुझसे सही नहीं जाती है,
ऐसी चुप्पी वर्तमान की।

संत कवि पवन दीवान छत्तीसगढ़ महतारी की समृद्धि और जन-जन के सुख संजोने के लिए कहां-कहां नहीं भटके ? कभी कवि सम्मेलन के मंच में, कभी भागवत कथा के प्रवचन में, तो कभी राजनीति के गलियारों में। छत्तीसगढ़ के लिये उनके हृदय में भावनाओं का सागर लहराता है -

मेरे बारुदी आंगन में बरसो प्रेम के बादल,
अनखिला न फूल मरे कोई, चमके धरती के तारे।
सब घुल-घुल जाये, गरीबी वर्षा की बौछारों से,
मजबूर न कोई पौधा हो, पट जाये बाग बहारों से।

दीवान जी को जितना मान सम्मान छत्तीसगढ़ की जनता से मिलता है, शायद किसी अन्य को नहीं मिला है। सच है, वे इसके हकदार भी हैं। छत्तीसगढ़ राज्य बनने से उन्हें जो हर्ष का अनुभव हुआ होगा, वैसा हर्ष शायद अन्य को न हुआ हो। वे गायन और भागवत कथा प्रवचन में सिद्ध हस्त हैं जब वे सहज सरस भाषा में भागवत कथा का वाचन करते हैं तो पांच सात हजार जन समुदाय का जुट जाना कोई बड़ी बात नहीं होती है। आप-पास का सारा क्षेत्र कृष्ण मय हो जाता है। भागवत कथा के मंच में भी आपका राष्ट्र प्रेम झलकता है -

तुझमें खेल गौतम गांधी, रामकृष्ण बलराम,
मेरे देश की माटी तुझको, सौ सौ बार प्रणाम।

दीवान जी भागवत कथा के दौरान अपनी मौलिक रचनाओं एवं रोचक प्रसंगों से श्रोताओं का हृदय जीत लेते हैं। राख शब्द की जब वे व्याख्या करते हैं, तो सहज ही मन के तार तार झंकृत हो जाता है, मानव शिशु के जन्म के साथ राख (रखना) शब्द शुरु हो जाता है। पूरा जीवन इसी राख की परिसीमा में बितता है, अन्त में मृत्यु उपरोत नश्वर शरीर राख में परिणित हो जाता है। जन साधारण के लिये भारतीय जीवन दर्शन की इतनी सहज भाषा में विवेचना केवल संत कवि पावन दीवान ही कर सकते हैं।

संत कवि पवन दीवान की राजनीति से कुछ लोग भले ही असकृमत हो सकते हैं मगर उनके विशाल व्यक्तित्व के जादू से कोई अछूता नहीं रह सकता। सामान्य छत्तीसगढ़ियों के समान ही दीवान जी के व्यक्तित्व में सीधवापन है। इसी सरलता का कुटिल राजनीतिज्ञों ने लाभ उठाकर अपना राजनैतिक कद बढ़ा लिये और आपके राजनीति पथ को कंटकाकीर्ण करने में कोई कसर नहीं छोड़े। आप छत्तीसगढ़ के विकास और जन सामान्य के हितों के लिये ही राजनीति के गलियारे में पदार्पण किये।

संत कवि पवन दीवान गांधी जी के सत्य, अहिंसा, ब्रम्हचर्य, अपरिग्रह आदि सिद्धांतों को सही अर्थों में अपने जीवन में उतारा है। इसीलिए उन्हें छत्तीसगढ़ का गांधी भी कहा जाता है। छत्तीसगढ़ में यह नारा गंूजता है - यह पवन नहीं आंधी है, छत्तीसगढ़ का गांधी है। संतो के हृदय को नवजीत के समान माना गया है, जबकि संतों का हृदय तो नवनीत से भी अधिक कोमल और संवेदनशील होता है। नवनीत तो स्वयं आंच मिलने पर पिघलता है, जबकि संतों का हृदय तो पर पीड़ा (आंच) से ही द्रवित हो जाता है। संत कवि पवन दीवान इसी प्रकार साहित्य और अध्यात्म की एकाग्रता स साधना करते हुये छत्तीसगढ़ियों को उनका स्वाभिमान एवं अधिकार दिलायेंगे ऐसा मेरा विश्वास है।

- लेखराम मढ़रिया
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