शोषण की रोशनी
कब तलक कठिनाइयाँ झेलेगा आदमी
कब तलक तनहाइयाँ झेलेगा आदमी
जिन्दगी का अब कोई मतलब न रहा
कुछ दिनों में खून से खेलेगा आदमी
महलों के गले काट के कुटियों को पिन्हा दो
शोषण की रोशनी को अँधेरे में मिला दो
जिसने भी नोंच-नोंच के खाया है देश को
उसका कलेजा चीर के कुत्तों को खिला दो
बेटी है शहीदों की वो शोलों में खिलेगी
इस देश की आजादी किस्तों में मिलेगी
मजदूर को, गरीब को रोटी न मिलेगी
तुम ऐसे कटोगे कि बोटी न मिलेगी
आदमी होकर भी जीते नहीं हो क्या
खून को उबाल कर पीते नहीं हो क्या
फट रही है रोज-रोज दर्द की कमीज
बेटी की गर्म सांस सी सींते नहीं हो क्या
कितनी तबाह हो चुकीं मजबूर बेटियाँ
इज्जत खरीदती हैं जेवरों की पेटियाँ
सत्ता की कुर्सियाँ तो लाशों पे खड़ी हैं
पेटों को तुमने कर दिया वोटों की पेटियाँ
बोलो जरा किसने इन्हें मजबूर बनाया
आदमी से आदमी को दूर बनाया
तुम्हीं आदमखोर थे इतिहास के घर में
एक गेहूँ जख्म को तन्दूर बनाया।
०००
जब तक हम जलते हैं
प्यास बुझ गई जनम-जनम की
यह ऐसा पनघट है
मदिरा मृत्यु अजस्त्र छलगती
यह अक्षय मर-घट है
मैंने इतिहासों की रस्सी
लाश युगों की बाँधी
सन्नाटे की सीख रह गई
चली भयानक आँधी
बुझती नहीं चिता जीवन की
हम जब तक जलतें हैं
कटु हुए सब साथ ही गये
दर्द वही पलते हैं
पहले मिट्टी हुए और फिर
बहती नदिया पावन
लहरों की डोली चढ़ मिलने
चली स्वयं से दुल्हन
जंगल भरा हुआ काँटों से
पत्थर-पत्थर रास्ते
धूर-धूल नजरें वृक्षों की
छन्द पड़े हैं खांसते
गर्मी का मौसम तपता है
सपने हुए पसीने
प्यार नहीं बेवजह डाँटते
बादल झीने-झीने
हो न सकी बरसात
रह गई केवल बूंदा-बांदी
अपनी किस्मत में माटी है
उनकी हरदम चाँदी
बहुत जी लिया टीकाओं में
एक मिला है गीत पहर
कटा हुआ महाकाव्य से
बिना नदी की एक लहर।
०००
Wednesday, November 28, 2007
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
सत्वाधिकारी प्रकाशक - डॉ. परदेशीराम वर्मा ।
प्रकाशित सामग्री के किसी भी प्रकार के उपयोग के पूर्व प्रकाशक-संपादक की सहमति अनिवार्य है । पत्रिका में प्रकाशित रचनाओं से प्रकाशक - संपादक का सहमत होना अनिवार्य नहीं है ।
किसी भी प्रकार के वाद-विवाद एवं वैधानिक प्रक्रिया केवल दुर्ग न्यायालयीन क्षेत्र के अंतर्गत मान्य ।
हम छत्तीसगढ के साहित्य को अंतरजाल में लाने हेतु प्रयासरत है, यदि आप भी अपनी कृति या रचना का अंतरजाल संस्करण प्रस्तुत करना चाहते हैं तो अपनी रचना की सीडी हमें प्रेषित करें : संजीव तिवारी (tiwari.sanjeeva जीमेल पर) मो. 09926615707
No comments:
Post a Comment