Wednesday, November 28, 2007

छत्तीसगढ़ी संस्कृति का जन-जन तक प्रसार जरुरी # हम घर में भटके हैं, कैसे ठौर ठिकाने पायेंगे

छत्तीसगढ़ी संस्कृति का जन-जन तक प्रसार जरुरी - पवन दीवान

छत्तीसगढ़ राज्य हम सबका सपना था। पंडित सुंदरलाल शर्मा, डॉ. खूबचंद बघेल, ठाकुर प्यारेलाल सिंह, मिनीमाता, श्री चंदूलाल चंद्राकर की विरासत हमारे पास है। हम अपने जीवनकाल में छत्तीसगढ़ राज्य को पा सके, यह हमारी पीढ़ी का सौभाग्य है। बुजुर्ग सपना देकर चले गए। उनके आशीष से हमें हमारा राज्य मिल गया, मगर छत्तीसगढ़ राज्य अपनी विशेषता के साथ आगे बढ़े।

छत्तीसगढ़ कुछ मायनों में अन्य प्रदेशों से एकदम अलग है। हमारी ताकत है भाषा और संस्कृति । छत्तीसगढ़ी संस्कृति की विशेषता है मेल-मिलाप और अतिथि के साथ सत्य का आग्रह। यह गुरुबाबा घासीदास की धरती है। भगवान श्रीराम की माता कौशल्या का मायका है छत्तीसगढ़। कल्पना कीजिए कि माता कौशल्या ने भगवान राम से अपने मायके की भाषा में बात की होगी की नहीं। श्रीराम जब ननिहाल आए होंगे, तो किस भाषा में उनके मामा और अन्य लोग बात करते रहे होंगे ? छत्तीसगढ़ी में ही तो ! तो यह इतनी पुरानी और सार्थक भाषा है। छत्तीसगढ़ हनुमान जी की तरह है। इसे अपनी शक्ति विस्मृत हो जाती है। याद दिलाने पर जागृति भी आ जाती है। छत्तीसगढ़ ने सदैव विलक्षण काम किया है। भगवान श्रीराम के ननिहाल में आप देखें भांजों को। यहां मामा पूछते है - कहा जा रहे हो, भांचा राम। गीत तक में गायक गाते हैं - जय सतनाम भांचा। क्यों यह बात आती है ? सतनाम और श्रीराम पर छत्तीसगढ़ की आस्था, इस पूरे विश्व में अलग मान दिलाती है।

भगवान श्रीराम और माता कौशल्या की प्राचीन मूर्ति ग्राम चंदखुरी के तालाब में स्थित है। यह अकेली मूर्ति इतिहास की साक्षी है। इस जानकारी और इतिहास के सत्य को दुनिया जाने, इसके लिए जरुरी है माता कौशल्या और श्रीराम की भव्य और नई मूर्तियों की श्रृंखला की स्थापना। छत्तीसगढ़ राज्य अभी सजा नहीं है। इसे सजाने का क्रम जारी है। सजाने के संदर्भ में इतिहास और संस्कृति के प्रमाणों को जन-जन तक पहुंचाने का प्रयास होना चाहिए।

माता कौशल्या की गोद में बैठे श्रीराम की भव्य मूर्ति का मॉडल पिछले दिनों छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध मूर्तिकार श्री जे.जे. नेलसन ने बनाकर हम सब को चकित कर दिया। इस मूर्ति अत्यंत सुंदर माडल का अवलोकन छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंहन ने भिलाई में किया। डॉ. परदेशीराम वर्मा के आग्रह पर अगासदिया के आयोजन में भिलाई पधारे डॉ. रमन सिंह ने कुर्मी भवन में इस मूर्ति को देखकर कलाकार की पीठ थपथपाई। वे गुणग्राही और संवेदनशील व्यक्ति हैं, इसलिए छत्तीसगढ़ के यशस्वी इतिहास से जुड़ी उस मूर्ति के माडल को देखकर वे अभिभूत हुए। अगर ऐसी पवित्र मूर्ति किसी पवित्र स्थल में भव्यता के साथ स्थापित हो जाए, जहां लाखों लोगों का मेला लगता हो, तो छत्तीसगढ़ के गौरवशाली इतिहास की जानकारी जन-जन तक प्रभावी ढंग से पहुंचेगी। यह स्थान कुंभ आयोजन के कारण देशभर में चर्चित राजिम भी हो सकता है। एक जगह स्थापना के बाद क्रमश: ऐसी मूर्तियां अन्य जगहों पर भी स्थापित हो सकती है। छत्तीसगढ़ समन्वयवादी है। हिंसा, आक्रामकता पर इसकी आस्था नहीं है। इसने सबको सम्मान दिया है। माता कौशल्या महाराज दशरथ की पटरानी थी।

छत्तीसगढ़ की बेटी अयोध्या गई। श्रीराम का ब्याह जनकपुर में हुआ। इस तरह होता है भू-भाग का समन्वय। यहां संस्कृति का मेल शुरु से ही रहा, लेकिन सब अपनी पहचान के साथ ही मेल चाहते है। हमसे यह उम्मीद नहीं की जानी चाहिए कि हम अपनी पहचान मिटाकर मेल करें। गुजरात में गुजराती, पंजाब में पंजाबी, महाराष्ट्र में मराठी। हर प्रांत की अपनी भाषा है। ऐसे में यह बेहद दुख की बात है कि छत्तीसगढ़ी को भाषा का दर्जा नहीं मिला। छत्तीसगढ़ का मतलब ही है छत्तीसगढ़ी भाषा और संस्कृति। छत्तीसगढ़ी में आदिवासी, दलित, पिछड़ो का बाहुल्य है। वनों की दृष्टि से यह राज्य समृद्ध है। खनिज यहां प्रचुर मात्रा में है। हीरा से लेकर लोहा तक उपलब्ध है। इसकी तरक्की बहुत तेजी से होगी, लेकिन संकट को समझना भी है। आज आवागमन और अन्य सुविधाएं भी बहुत है। छत्तीसगढ़ का सीधापन उसका दुश्मन है। सीधे-सीधे छत्तीसगढ़ी का हक उसे मिलना ही चाहिए। ऐसा न हो कि ताकत और चुस्ती के बल पर अन्य, उसके हकों पर प्रहार कर दें। इससे असंतोष पैदा होगा, इसलिए छत्तीसगढ़ी मानस को समझते हुए इस दिशा में गंभीर काम होना चाहिए। मध्यप्रदेश तथा अन्य राज्यों में साहित्यिक गतिविधियां शासन द्वारा प्रोत्साहित होती है। उसके अनुरुप यहां भी ठोस पहल जरुरी है। छत्तीसगढ़ में एक विशिष्ट पत्रिका जरुरी है, जिसमें हिंदी भी हो, लेकिन उसमें छत्तीसगढ़ की विशेषता दिखे। ऐसा प्रयास होना बाकी है।

बिहनिया पत्रिका की कोई विशेष पहचान इसलिए नहीं बनी, क्योंकि वह नियमित नहीं निकलती। संस्कृति विभाग के पास दस तरह के काम हैं, उसमें पत्रिका भी एक है। इस तरह गंभीर काम नहीं होते। मध्यप्रदेश सरकार की पत्रिका है। उत्तरप्रदेश, पंजाब, हिमाचन प्रदेश सबकी पत्रिकाएं प्रतिष्ठित हो चुकी हैं। छत्तीसगढ़ में जाने क्यों साहित्य का काम उस ढंग से नहीं हो रहा है ? आदिवासी लोककला परिषद भी जरुरी है और जरुरी है छत्तीसगढ़ साहित्य परिषद। इन परिषदों का गठन शीघ्र होना चाहिए, तब छत्तीसगढ़ की विशेषता सामने आएगी। मुझे संतोष है कि छत्तीसगढ़ के लिए मुझसे जो बन पड़ा, उसे करने में मुझे कभी कोई कठिनाई महसूस नहीं हुई। राजनीति मेरी प्राथमिकता नहीं है। भाषा, संस्कृति, धर्म, प्रवचन का क्षेत्र ही मेरा असल क्षेत्र है। छत्तीसगढ़ महतारी की सेवा के लिए मैं राजनीति को भी समझने की कोशिश करता हूं। हमारे जैसे लोगों के लिए यक कठिन क्षेत्र है। फिर भी छत्तीसगढ़ की भावुक और आस्थावान सहृदय जनता ने मुझे स्नेह, आशीष देकर राजनीति में भी काम करने का अवसर दिया। छग के जानकारों, संस्कृति के विशेषज्ञों और सुयोग्य व्यक्तियों की खोज कर दायित्व देने से राज्य की फिजा बदलेगी। सैद्धांतिक असहमति के बावजूद सहीसोच के लोग बड़ा काम कर जाते हैं, जबकि सहमति और निष्ठा का स्वांग भरकर कुटिल लोग नुकसान कर देते हैं। छत्तीसगढ़ में कई धु्रवों को एक ही मंच पर प्रतिष्ठा मिली है। यहां सभी धर्मोंा के महापुरुषों, आचार्य, अवतार और गुरु आए और उन्होंने भरपूर मान पाया। समन्वय की इस धरती में गुण के आधार पर ही व्यक्ति की प्रतिष्ठा होती रही है। यह परंपरा और समृद्ध हो, यही कामना है।

- ईतवारी से साभर

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हम घर में भटके हैं, कैसे ठौर ठिकाने पायेंगे - पवन दीवान

तब ग्यारह साल का था जब राजिम में अपने गांव से पढ़ने आया। तब से राजिम का सम्मोहन मुझ पर लगातार बढ़ता चला गया। पैरी, सोंढूर और महानदी के संगम में स्थित भगवान शंकर और ठीक नदी के किनारे विराजित भगवान श्रीराम। राजीवलोचन भागवान। राजीवलोचन राम चले, तजि बाप को राज बराऊ ने नाई। यह लिखा गया है। वे राजीव लोचन थे जिन्होंने राज को छोड़ दिया। वही राजीवलोचन भगवान श्रीराम छत्तीसगढ़ के भांजे हैं। त्यागी श्रीराम ने छत्तीसगढ़ को अपने संस्कार से धन्य किया है। माता कौशल्या छत्तीसगढ़ की बेटी है। इसीलिए छत्तीसगढ़ में भांजों को प्रणाम किया जाता है। क्योंकि श्रीराम हैं छत्तीसगढ़ के भोंजे। तो हर भांजा श्रीराम की तरह वंदनीय है।

छत्तीसगढ़ पुण्य धरा है। यहां वाल्मिकी का आश्रम है। यहीं माता कौशल्या जन्मीं। मिथिलाकुमारी सीता जी, कौशल पुत्री कौशल्या जी और अयोध्या के कुमार और राजा श्रीराम, इस तरह मिथिला, अयोध्या और छत्तीसगढ़ का आपसी संबंध है। छत्तीसगढ़ केन्द्र में है। माता कौशल्या के पुत्र भगवान श्रीराम और उनका आदर्श छत्तीसगढ़ के कण-कण को प्रभावित करता है। राजिम कई आयोमों का केन्द्र है। यहां विष्णु और शंकर के भक्त एक हो गए। यहां श्रीराम और श्री कृष्ण के भक्त एक हो गये। राजिम माता कृष्ण की भक्तिन थी। राजिम उनके नाम से जुड़ा है। कृष्ण की भक्तिन के नाम से बसा है राजिम और वह हे राजीव लोचन की नगरी। वहां भगवान शिव संगम में प्रगट हुए। धन्य है यह समन्वय की नगरी। यहां लोकश ऋषि का आश्रम है। जहां भागवत प्रवचन चलता है। राजिम का मेला तो सदियों से चर्चित है। लेकिन पिछले कुछ वर्षोंा से इसे और विराट स्वरुप देने का प्रयास किया गया। यह स्तुत्य प्रयास है। छत्तीसगढ़ ही पूरा धर्म प्रांत है। यहां कबीर का प्रभाव है। गुरु बाबा घासीदास का प्रभाव है। जैन मुनियों का प्रभाव है। बौद्धों का प्रभाव है। हर श्रेष्ठ और कल्याणकारी दर्शन को छत्तीसगढ़ ने अंगीकार किया। इसीलिए मैं इसे धर्म प्रान्त कहता हूं। उसमें राजिम तो राजिम ही है। यहां नदियों का पुण्य संगम है। यहां संस्कृतियों का संगम है।
मैं भागवत प्रवचन के मंच से भी महानदी और राजीव लोचन की स्तुति करता हूं-

लहर-लहर लहरावै हो मोर महानदी के पानी
और राजीव लोचन तुम्हें प्रणाम।

ये कविताएं श्रोताओं को कंठस्थ हैं। इन महान से अभिसिंचित राजिम और राजीव लोचन का वर्णन है। राजिम क्षेत्र सदा चर्चा में रहा है। यहां ब्रम्हचर्य आश्रम है। बच्चे वहां रहकर संस्कृत पढ़ते हैं। संस्कृति को समझते हैं। यह क्षेत्र जागृत क्षेत्र है। राजनैतिक जागृति की दृष्टि से भी राजिम चर्चित रहा है।

साहित्य के क्षेत्र में लगातार इस क्षेत्र में साधकों को यश प्राप्त् किया। नई पीढ़ी के रचनाकार इस परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। मैं सोच करता हूं कि जब माता कौशल्या की भव्य मूर्ति राजिम में स्थापित होगी तो इस वैभवशाली धर्मनगरी के यहश और चतुर्दिक फैलेगा। लोग छत्तीसगढ़ के समृद्ध इतिहास को जानने का प्रयास करेंगे। माता कौशल्या की मिट्टी निर्मित एक मूर्ति इस वर्ष लगी है। यह एक महत्वपूर्ण निर्णय है। यह मूर्ति धमतरी के कलाकार शिवकुमार कुंभकार ने बनाई है। एक ऐसी ही सीमेंट की मूर्ति भिलाई के कलाकार जे.एम. नेलसन ने बनाई है।

यह खुशी की बात है कि भिलाई के निषाद समाज द्वारा इस वर्ष नेलसन द्वारा निर्मित माता कौशल्या की मूर्ति लगाई जा रही है। छत्तीसगढ़ भर में ऐसी मूर्तियां लगे यह हम सबकी इच्छा है। धीरे-धीरे यह काम हो भी रहा है। राजिम से इसकी शुरुवात हो रही है। मिट्टी से बनी मूर्ति को इस वर्ष हम सबने सराहा।

यह क्षेत्र कमल क्षेत्र कहलाता है। सभी इसके इतिहास से परिचित है। इस वर्ष मेला महानदी के भीतर लगा था। जो देखते ही बनता था। रोशनी से जगमगा उठा पूरा राजिम।

लोक कलाकारों को भी खूब प्रोत्साहन मिली संगोष्ठी भी हुई। कितना अच्छा हो यदि संगोष्ठी में छत्तीसगढ़ के समन्वयवादी स्वरुप पर और मेल के दर्शन पर भी केन्द्रित विषय हो। संगोष्ठियों में शोधपरक आलेख पढ़े जाय। फिर उनका प्रकाशन हो तो राजिम का यश और फैलेगा।

राजिम मेला के अवसर पर चम्पारण्य में भी उत्सव होता है। पास के सभी मंदिरों एवं महत्वपूर्ण जगहों पर सज्जा होती है। राजिम मेले के समय दूर जा बसे सगे संबंधी अपने घर लौटते हैं। यह मेले का एक पुण्य पर्व है।

मेले से बना है मेला। जहां सब मिले। मेलने का मतलब है भेंटना। भेंट होने पर छत्तीसगढ़ का व्यक्ति पूछता है बने-बने। सामने वाला जवाब देता है - बने बने म भेंट होथे भइया। मतलब मेल होता है।

इसीलिए मेला लगता है। दुष्यंत कुमार ने लिखा है ...
मेले में भटके होते तो कोई घर पहुंचा जाता,
हम घर में भटके हैं, कैसे ठौर ठिकाने पायेंगे।

कवि का सत्य है यह । इशारा है कि घर में मत भटकिये। छत्तीसगढ़ हमारा घर है। इसे यहां भटकाव ठीक नहीं। राह ठीक हो। मेल मिलाप की संस्कृति का विकास हो। शांति एकता हो। तभी छत्तीसगढ़ गौरव के साथ देश का सिरमौर राज्य बनेगा।

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