(सन्त-कवि पवन दीवान से खुली बातचीत)
छत्तीसगढ़ अंचल में संत कवि पवन दीवान की लोकप्रियता से इंकार नहीं किया जा सकता। इस लोकप्रियता के पीछे उनके द्वारा सन्यासी बाना धारणा करने का भी हाथ हो सकता है। उनकी लोकप्रियता की बानगी विगत चुनावों के दौरान गूंज इस नारे से मिल सकती है - पवन नहीं, यह आंधी है, छत्तीसगढ़ का गांधी। किन्तु विगत पांच वर्षों की घटनाओं से यह तथ्य उजागर होता है कि राजनीति के मैदान में वांछित राजनीतिक परिपक्वता हासिल करने के लिहाज से उन्हें एक लंबा सफर तय करना है। पवन दीवान एक युवा, विद्रोही और संवेदनशील नेता है, मंच से जनसंग्रहों को बांधने की कला में भी वे दक्ष है, किन्तु उनमें यह खूबी पर्याप्त् प्रतीत नहीं होती है कि कैसे जनाधार को अपनी राजनीतिक यात्रा में सफलतापूर्वक लेकर चला जाये। विगत मध्यावधि चुनाव में असफलता के बाद सार्वजनिक चुनाव में असफलता के बाद सार्वजनिक मंचों पर उनकी उपस्थिति इक्का-दुक्का ही रही। उनकी निष्क्रियता ने, निश्चित ही उत्सुकता और भ्रांतियों को जन्म दिया, उनसे मिलने की पहल या कोशिश पर सदैव यही पता चला कि वे अमुक गांव में कथा भागवत बांच रहे हैं या प्रवचन कर रहे हैं।
चुनाव में पराजय के बाद आप किसी भी स्तर पर सक्रिय नहीं रहे हैं, क्या यह आरोप सही है कि आप पिछले दो वर्षों में निष्क्रियता और जड़ता के शिकार रहे हैं ?
दीवान : मैं न पहले निष्क्रिय था और न ही आज निष्क्रिय हूं, हां सक्रियता का स्वरुप जरुर बदल गया है, अभी तो कोई मंच भी तैयार नहीं है, जहां से काम किया जाये। वैसे आजकल सक्रियता तो अखबारों से ही पता पड़ती है। अखबारों में आपके बयान वगैरह आते रहे तो आप सक्रिय हैं ...
तो फिर आप सक्रियता किसे मानते हैं ?
दीवान : मैं जो कुछ कर रहा हूं उसी को सक्रियता मानता हूं। रही मंच की बात तो मंच बनाने का काम बड़ो-बड़ों ने किया लेकिन सफल नहीं हुये। जैसे फिल्मों में बाबी फेम या शोले फेम होता है, वैसे ही राजनीति में मैं सेवेन्टी सेवेन फेम हूं। आप ही बताइये, आज कौन सक्रिय है। मधुलिमये सक्रिय है या मोरारजी, चरण सिंह, जार्ज फर्नान्डीज। मुझे तो सभी निष्क्रिय मालूम होते हैं। लगता है सभी एकला चलो रे की लीक पर चलेंगे। जो एक जमाने में बहुत महत्वपूर्ण समझे जाते थे, उनका भी क्या हाल है ?
आपने एक तरह से राजनीति छोड़ रखी है, गांव गांव कथा भागवत बांचते फिर रहे हैं ...
दीवान : (टोककर) जबर्दस्ती की नेता-गिरी हमें पसंद नहीं है। चुनाव के चक्कर में हम कर्जे में फंस गये थे, लिहाजा ज्यादा प्रवचन करना पड़ा ...
अभी तक आप कर्जे से उबरे या नहीं ?
दीवान : हां, अब कर्जे से उबर चुका हूं। पिछले दिनों हुये धर्मान्तरण के बारे में आपकी क्या राय है ?
दीवान : आज के जमाने में धर्म बदलना बहस का मुद्दा नही है। ये बातें राजनीति प्रेरित है। संपूर्ण विश्व में एक धर्म होने पर भी अपराध समाप्त् नहीं हो सकते। इसके पीछे राजनीति है। कुछ परिजन नेता यह बताना चाहते हैं कि उनके पास विकल्प भी है। बड़े पैमाने पर धर्म परिवर्तन की लहर मुझे संभव नहीं दीखती। कुछ ईसाई, मुस्लिम भी हिन्दू हुये है : धर्मान्तरण का लाभ भाजपा को मिल रहा है। भाजपा की राजनीति अलग तरीके से चलती है। जो लोग अपने आचरण से समन्वय, सामंजस्य स्थापित कर सकें ऐसे लोगों का आज अभाव है। फूट उपजाने वालों की तादाद ज्यादा है। गोलवलकर, दीनदयालजी, गांधी जी, जेपी को सब लोग मानते थे। आज ऐसे लोग कहां है ? कुपलानी जी खाट पकड़ चुके हैं, विनोबाजी से क्या आशा की जाये ?
पिछले दिनों केसतरा में एक सतनामी परिवार के चौदह लोग मारे गये। आप वहां नहीं गये।
दीवान : केसतरा जाने की इच्छा नहीं हुई। सहानुभूति जताने के नाटक की क्या आवश्यकता है। एक बात और, जातीय या पारंपरिक जड़ता को एक व्यक्ति नहीं तोड़ सकता।
क्या आप यह नहीं मानते कि हरिजनों पर अत्याचार हो रहे हैं ?
दीवान : समाज में किस पर अत्याचार नहीं हो रहे हैं ? हर जगह शोषक व शोषित है न तो सब हरिजन ही दूध के धुले हुये हैं और न ही सब सवर्ण अपराधी है। अधिकांश गलती सरकार की है, अधिकारी लोग मामला निपटाने के बजाय, उकसाते अधिक है। आप ही बताइये, एक पिता के चार बेटे है। एक ही बेटे का नाम बार बार लोगे तो दूसरे बेटों पर क्या गुजरेगी ? जो अपराध हमारे पूर्वजों ने किये उनमें हमारा क्या दोष ?
चुनाव के समय आप लोगों ने पृथक छत्तीसगढ़ राज्य का मुद्दा उठाया था । उस सिलसिले में आगे क्या हुआ ?
दीवान : पृथक छत्तीसगढ़ का मुद्दा हमारा और आपका मुद्दा है। छत्तीसगढ़ राज्य तो अलग बनना ही चाहिये। मूवमेंट होने चाहिये।
आप इस दिशा में पहल क्यों नहीं करते ?
दीवान : जब तक प्रेरित करने वाले न हों, सक्रियता दूभर है। पृथक छत्तीसगढ़ पार्टी, एक पार्टी न होकर जरुरत के तहत एक आवश्यक मंच था, आज कोई भी लंबे भविष्य की रुपरेखा बनाकर काम नहीं करना चाहता। आप रोजगार और रेवेन्यू का हिसाब देख लें या खनिज और वनसंपदा की दृष्टि से, छत्तीसगढ़ को पृथक इकाई होना चाहिये। पृथक छत्तीसगढ़ राज्य की बात खालिस्तान जैसी कोई पृथकतावादी या विखंडन वाली बात तो है नहीं। प्रशासन में सुविधा के लिहाज से भी यह जरुरी है।
क्या आप यह नहीं मानते कि प्रेस और पब्लिक आपके साथ थी ?
दीवान : प्रेस और पब्लिक हमारे साथ थी। प्रेस वाले जिसे चाहें भगवान, बना दें, जिसे चाहे शैतान बना दें। लेकिन धनी हमारे साथ नहीं थे। लिहाजा धनाभाव आड़े आता है। एक बात और पृथक छत्तीसगढ़ राज्य के सिलसिले में बाहर वालों को भगाने की कोई बात नहीं है।
क्या पृथक छत्तीसगढ़ राज्य की आवाज उठाने वाले आप जैसे लोगों की निष्क्रियता का लाभ, मिशनरी और छत्तीसगढ़ी समाज जैसे तत्वों को नहीं मिल रहा है ?
दीवान : मैं मानता हूं कि हमारी निष्क्रियता का लाभ छत्तीसगढ़ी समाज और मिशनरी तत्व उठा रहे हैं लेकिन कल जब हम लोग सक्रिय होंगे, तब ये लोग गौण हो जायेंगे। हम अपनी निष्क्रियता स्वीकार करते हैं।
क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि यदि यह वाकई सही आंदोलन होता तो इस तरह ठंडा नहीं होता।
दीवान : एक व्यक्ति के निष्क्रिय होने से किसी भी आंदोलन को निष्क्रिय नहीं होना चाहिये। यहां शुक्लबंधु नही चाहते कि कोई नेता आगे बढ़े, वे लोगों को आपसी द्वंद में ही उलझाये रखते हैं।
शायद कौशिक जी इस बारे में आपके पास चर्चा हेतु आये थे।
दीवान : यह बात आप कौशिक जी से ही पूछें। कौशिक जी एक बार तोरला ग्राम आये जरुर थे। उनसे २० मिनट बाते हुई। पृथक छत्तीसगढ़ राज्य के सिलसिले में, मगर कोई खास बात नहीं हुई। आप लोग बुद्धिजीवीजन, प्रेस आदि मिलकर ऐसा माहौल बनाइये कि इस दिशा में व्यावहारिक कदम उठाना उचित होगा।
आपके बारे में आपके एक मित्र की राय है कि यदि आप सन्यासी बाना नहीं धारण करते तो नक्सलवादी होते। इस कथन पर आपकी टिप्पणी ...
दीवान : सही है मै नक्सलवादी हूं (अट्टहास) लेकिन छत्तीसगढ़ की मानसिकता नक्सलवादी होने लायक नहीं है। बंगाल और छत्तीसगढ़ में काफी अंतर है। यहां के लोग स्थानीय स्तर पर संघर्ष नहीं कर पाते। छत्तीसगढ़ स्तर पर कैसे करेंगे ? इस दिशा में भारी प्रचार और काम की जरुरत है। बहुतेरे बुद्धिजीवी तो इसे अस्पृश्य विषय मानते हैं जबकि यह मुद्दा हम आप सबसे जुड़ा हुआ है।
आपने कभी छत्तीसगढ़ के तेलगाना बनने का स्वप्न देखा था तो क्या वह स्वप्न खंडित हो गया है।
दीवान : समूचा छत्तीसगढ़ अगर जाग उठे तो छत्तीसगढ़ अभी भी तेलगाना बन सकता है। दुर्भाग्यवश पृथक राज्य के मुद्दे को लोगों ने लोकल ट्रेन बना लिया है। हम तो पृथक छत्तीसगढ़ के खातिर करने को तैयार है, लेकिन जब मरने को तैयार है तो ठीक से मारो।
जब आप जनता शासन के दौरान जेलमंत्री के पद से त्यागपत्र देकर जौंदा ग्राम में आ छिपे थे तब साक्षात्कार के दौरान आपने रहीम का दोहा दोहराया था-रहिमन चप हवै बैठिये देखि दिनन को कर। क्या आप अभी भी इस पर अमल कर रहे थे ?
श्री दीवान इस प्रश्न का उत्तर नहीं देते और केवल अट्टहास करते हैं।
नवभारत से समाचार
४ मार्च १९८२
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Wednesday, November 28, 2007
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