Wednesday, November 28, 2007

संत पवन दीवान के प्रवचन की रोचक कथाएं (2)

संत पवन दीवान छत्तीसगढ़ के मंचीय कवियों के आदर्श है। उन्हें सरस्वती सिद्ध है। गायकी का उनका अंदाज निराला है। वे लालकिले में आवाज बुलंद करने वाले छत्तीसगढ़ी के पहले कवि है। अपने प्रवचनों में भी वे कविताआें का ऐसा प्रयोग करते हैं कि श्रोता धन्य हो जाते हैं। जैसे भगवान शंकर के शरीर की विभूति के बारे में बताते हुए वे अपनी प्रसिद्ध छत्तीसगढ़ी कविता राख का पाठ करते हैं। कहते हैं कि -

राखबे त राख अऊ नई राखस ते झन राख
एक दिन तहूं होबे राख, महूं होहूं राख, सबो होही राख
तेकरे सेती भगवान शंकर का चुपर लिस राख

इस तरह राख कविता के माध्यम से वे जीवन की नश्वरता का ऐसा चित्र खींचते हैं कि कुछ क्षणों के लिए श्रोताआें को वैराग्य हो जाता है।

कैलाश पर्वत, वहां चहुं ओर छाया बर्फ। ऐसे में दीवान जी क्यों न अपनी जाड़ कविता का पाठ करें। वे ठंड का वर्णन करते हुए कहते हैं -

ये पइत जिवलेवा परत हवै जाड़
दांत किनकिनावत हे, कान सनसनावत हे।

इस पूरी कविता को आप जेठ में भी सुनें तो आपको ठंड का अहसास होने लगेगा। वे हनुमान जी की लंका से वापसी का प्रसंग छत्तीसगढ़ी रंग में रंग कर सुनाते हैं।

सुग्रीव पूछते हैं - हनुमान, तुम्हें माता सीता का पता भर लगाना था। तुमने बाग में फल भी खा लिया। क्यों ? किसकी आज्ञा से ?

राजन क्या करुं। माँ को देखकर बच्चे को भूख लग जाती है। माता जब दिखी तो मैंने कुछ खाने को मांगा। माता ने कहा, क्या करुं बेटा, घर में होती तो रोटी बेलकर खिलाती। मेवा मिष्ठान देती। जिमीकांदा की सब्जी खिलाती, अम्मटहा भंटा रांधती। भात-दाल देती। यहां तो बड़ी मुश्किल है बेटा। लेकिन तुम चिंता मत करो, तुम्हारी सेवा तुम्हारे मामा करेंगे।

हनुमान ने पूछा - मामा ? यहा कहां मामा है माता ? पेड़ धरती से पैदा हुए। हम दोनों धरती से जन्में। तुम मेरे पुत्र हो तो पेड़ तुम्हारे मामा है। जाओ और उनसे फल मांगो, खाओ।

सुग्रीव ने पूछा - फल खाये तो खाये। पेड़ को उखाड़ दिया। हनुमान ने कहा - राक्षस जब मुझे मारने लगे तब मामा लोग हथियार बने। सुग्रीव हंस पड़े। उन्होंने फिर पूछा कि अक्षय कुमार को मारा क्यों ?
हनुमान ने कहा - मैंने नहीं मारा। राक्षसों के बल की बड़ी कथाएं सुनता था। मुक्का मारकर थाह लेना चाहता था। मर गया तो क्या करुं राजन। जो मोहिं मारा ताहि मैं मारा।

तब सुग्रीव ने कहा कि - सब ठीक है मगर लंका को जला क्यों आये । हनुमान ने मासूमियत से कहा - क्या करुं। वे पूंछ में आग लगा बैठे। आग तो वे लगाये हैं, जबकि आप नाराज मुझ पर हो रहे हैं। करे कोई भरे कोई ?

हनुमान जी की मासूमियत से सुग्रीव हंस पड़े।
बोल सियाबर रामचंद्र की जय।

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