Wednesday, November 28, 2007

संत कवि पवन दीवान की बहुचर्चित छत्‍तीसगढी कवितायें

राख

राखत भर ले राख
तहं ले आखिरी में राख
राखबे ते राख
अतेक राखे के कोसिस करिन
नि राखे सकिन
तेके दिन ले
राखबे ते राख
नइ राखस ते झन राख
आखिर में होना च हे राख
तहूँ होबे राख महूँ हों हूँ राख
सब हो ही राख
सुरु से आखिरी तक
सब हे राख
ऐखरे सेती शंकर भगवान
चुपर ले हे राख
मे जौन बात बतावत हौं
तेला बने ख्याल में राख
सुरु से आखिरी तक कइसे हे राख
महतारी असत कोख में राख
जन्म होगे त सेवा जतन करके राख
बइठे मड़ियाये रेंगे लागिस
तौ ओला कांटा खूंटी हिरु बिछरु
गाय गरु आगी बूगी ले बंचा के राख
थोरकुन पढ़े लिखे के लाइक होगे
तब वोला स्कूल में भरती करके राख
ओखर बर कपड़ा लत्ता खाना-पीना
पुस्तक कापी जूता-मोजा सम्हाल के राख
लटपट पढ़ के निकलगे ते
नौकरी चाकरी खोजे बर सहर जाही
दू चार सौ रुपया ला ओखर खीसा में राख
जगा जगा आफिस में दरखास दिस
आफिस वाला मन किहिन
तोर दरखास ला तोरे मेर राख
नौकरी खोजत खोजत सबे पैसा
होगे राख, आखिर में खिसिया के किहिस
तोर नौकरी ला तोरे में राख
लहुट के आगे फेर घर में राख
नानमुन नौकरी चाकरी मिलगे
तौ बिहाव करके राख
घर में बहू आगे तब
तें बारी बखरी खेतखार ला राख
ओमन बिहनिया गरम गरम
चहा पीयत हे त तें धीरज राख
ओमन दस बज्जी गरम गरम
रांध के सपेटत हें, ते संतोष राख
भगवान एकाठन बाल बच्चा दे दिस
बहू बेटा सिनेमा जाथें त तें लइका ला राख
तरीच तरी चुरचुर के होवत जात हस राख
फट ले बीमार पड़गेस
दवई सूजी पानी लगा के राख
दवई पानी में कतेक दिन चलही
फट लेपरान छुट गे
खटिया ले उतार के राख
ओला खांध में राख
लकड़ी रच के चिता बनाके
शरीर ला ओखर ऊपर राख
भर भर ले बर के होगे राख
राखत भर ले राख तहाँ ले आखिरी में राख
०००


जिवलेवा जाड

ये पइत जिवलेवा परत हाबे जाड़
दांत किनकिनावत हे कान सनसनावत हे
देख ले सहरिया मन पहिरे कंटोप
दाई कहे ये टूरी लइका ल तोप
हमन तो सहे हाड़ रहिजाबो उघरा
आय हे चल दीही दू दिन के कुहरा
लाहो अस लेवत हे ये रोगहा जाड़
माथ झनझनावत हे हाथ कुनकुनावत हे
डुबुक-डुबुक डबकत हे चाहा के पानी
अतेक बादुर आये हे अऊ डार दे पानी
शक्कर न दूध दिखे लाला लाल पानी
आेंठ हर भसकत हे फूट कस चानी
गोड़ में पथरा अस बांधत हे जाड़
उहर गनगनावत हे घाट चनचनावत हे
लरम लरम खटिया अउ गरम गरम गोरसी
अइसन में कोन जाही किरवई अऊ बोरसी
हुहु हुहु रद्दा में करत हवे गड़हा
बीड़ी ल चुहकत हे दांत हवे कड़हा
भुर्री ल देख के नई भागत हे जाड़
इही डहर आवत हे जोर से गुरवित हे
बुढ़वा-सांहड़ा मन के नइये ठिकाना
चिरई मन टपकत हे पेड़ कस पाना
बाम्हन कहे अइसन में जौन हर नहाही
तिरिथ बरथ नइ लागे अधरे अधर जाही
नाक डहर चुहत अऊ आंखी डहर ओगरत हे जाड़
पानी चुचुवावत हे तन चरवित हे ...
०००

सांझ

खेत खार बखरी में गहिरागे सांझ
लइका मन धुर्रा में
सने सने घर आगे
चिरई चुरगुन अमली के
डारा में सकलागे
तरिया के पार जैसे झमके रे झांझ
थके हारे मेड़पार
कांसी उंघाये रे
चौंरा में राउत टूरा
बंसरी बजाये रे
संगी रे पैरा ल कोठा में गांज
दिन भर के भूख प्यास
खाले पेट भरहा
सेझियाले हाथ गोड़
लागे अलकरहा
नोनी ओ टठिया ल झट कुन मांज
०००

महानदी

हर लहर लहराये रे मोर महानदी के पानी
सबला गजब सुहाये रे मोर खेती के जुवानी
सुघ्घर सुघ्घर मेड़ पार में
खेती के संसार
गोबर लान के अंगना लिपाये
नाचे घर दुवार
बड़े बिहनिया ले हांसै धरती पहिर के लुगरा धानी
चना ह बनगे राजा भैय्या अरसी बनगे रानी
चमचम चमचम सोना चमके
महानदी के खेत में
मार के ताली नाच रे संगी
हरियर हरियर खेत में
उमड़ घुमड़ के करिया बादर बड़ बरसाये पानी
नरवा ढोंड़गा दोहा गाये चौपाई गाये छानी
झनझन झनझन पैरी बाजे
खनखन खनखन चूरी
हांसौ मिल के दाई ददा
अऊ नाचौ टूरा टूरी
दू दिन के जिनगानी फेर माटी में मिल जानी
बरिस बुताईस सांस के बाती रहिगे राम कहानी
०००

तोर धरती

तोर धरती तोर माटी रे भैय्या तोर धरती तोर माटी
लड़ई झगड़ा के काहे काम
जे ठन बेटा ते ठन नाम
हिंदू भाई ल करौ जैराम
मुस्लिम भाई ल करौ सलाम
धरती बर वो सबे बरोबर का हाथी का चांटी रे भैय्या
झम-झम बरसे सावन के बादर
घम-घम चले बियासी के नागर
बेरा टिहिरीयावत हे मुड़ी के ऊपर
खाले संगी तंय दू कौरा आगर
झुमर-झुमर के बादर बरसही चुचवाही गली मोहाटी रे भइया
फूले तोरई के सुंदर फुंदरा
जिनगी बचाये रे टुटहा कुंदरा
हमन अपन घर में जी संगी
देखो तो कइसे होगेन बसुंधरा
बड़े बिहनिया ले बेनी गंथा के धरती ह पारे हे पाटी रे
हमर छाती म पुक्कुल बनाके बैरी मन खेलत हे बांटी रे भैय्या
तोर धरती तोर माटी
०००

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