Wednesday, November 28, 2007

सत्ताकुल के जनप्रिय विधायक देवजी भाई पटेल

आलेख -

अगासदिया के विशेष अंकों में छत्तीसगढ़ के चर्चित व्यक्तित्वों के बारे में भरपूर जानकारीपरक लेखों को पाठकों ने पसंद किया है। हर अंक में एक विशिष्ट व्यक्ति पर भरपूर सामग्री दी जाती है। संत कवि पवन दीवान पर केन्द्रित अंक में इस बार धरसींवा विधान सभा क्षेत्र के विधायक श्री देवजी भाई पटेल पर केन्द्रित एक लेख प्रस्तुत है।

श्री देवजी भाई पटेल के क्षेत्र में ही संत पवन दीवान का मामा गांव पथरी स्थित है। पथरी से दीवान जी का अन्य कारणों से भी भावात्मक लगाव है। यह छत्तीसगढ़ी जागरण के अग्रदूत डॉ. खूबचंद बघेल का गांव है। छत्तीसगढ़ी आंदोलन के अगुवा डॉ. खूबचंद बघेल के प्रभावी दस्ते में संत कवि पवन दीवान एक कवि, दार्शनिक और बलिदानी भूमिपुत्र के रुप में यादगार भूमिका निभाते रहे। यही भूमिका आगे चलकर उनकी अविस्मर्णीय यात्राआें की पूर्व पीठिका सिद्ध हुई।

संत पवन दीवान की तरह देवजी भाई पटेल भी अविवाहित हैं । एक बड़े उद्देश्य के लिए जीवन अर्पित करने वाले संत पवन दीवान की तरह देवजी भाई पटेल ने भी जनसेवा का व्रत ले लिया, इसीलिए उन्होंने विवाह नहीं किया।

प्रस्तुत है उनके प्रेरक व्यक्तित्व पर एक आलेख ...

सत्ताकुल के जनप्रिय विधायक देवजी भाई पटेल

देवजी भाई पटेल का जन्म रायपुर में २६ मई १९५८ को हुआ। दो बहन और तीन भाईयों में देवजी भाई मंझले भाई हैं। बहनें छोटी हैं और ब्याह दी गई हैं। उनके बड़े भाई पैतृक व्यवसाय सरस्वती सॉ मील की जिम्मेदारी सम्हालते हैं। छोटे भाई मेडिकल स्टोर चलाते हैं। देवजी भाई ने अपने मित्र सुरेन्द्र के साथ इस मेडिकल स्टोर को ८९ में प्रारंभ किया। और इसे वे ९३ तक चलाते रहे। ९२ में पटवा सरकार ने उन्हें रायपुर मंडी का अध्यक्ष मनोनीत कर दिया, इस तरह वे मेडिकल स्टोर की जिम्मेदारी छोटे भाई को सौंपकर किसानों की दुनियां में चले आये। कृषक जीवन और कृषि मंडी में बीमारियां कम नहीं है। वे एक मेडिकल स्टोर से निकलकर दूसरे में चले आये। यहां भी उन्हें तरह तरह की प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष बीमारियों के लिए दवा मुहैया कराने की जिम्मेदारी दी गई। मंडी में ५०० रु. भी खर्च करने का अधिकार सरकार ने खत्म कर दिया था, वहां देवजी भाई को तरह तरह की व्याधियों से लड़कर जीतना था।
वे एक संकल्प के साथ आये। वे छुटपन से स्वावलंबी रहे। वे मिडिल स्कूल से ही अपने सॉ मिल के आगे ठेला चला रहे थे। यह पान ठेला वे अपने मित्र अमृतलाल राठौर के साथ चलाते थे। इस पान ठेले से दोनों मित्र दिन भर में चालीस रुपया तब कमा लेते थे। यह तब मिडिल स्कूल के बच्चों के लिए बड़ी राशि थी। स्कूल से आकर वे रात्रि नौ बजे तक ठेला चलाते थे । तब जो औरों के मुंह को रंगाने और सुवासित करने का संस्कार उन्हें मिला उसी संस्कार से उन्हें लगातार आगे बढ़ने की शक्ति मिली। इस ठेले में बैठकर देवजी भाई ने जग का मुजरा किया। वे तरह तरह के व्यक्तियों और व्यक्तियों की आकांक्षा, भविष्य चिंता से परिचित हुए। पान ठेले में लोग मुक्त मन से वार्तालाप करते हैं। बातचीत से ही जीवन के अमूल्य सूत्र उन्हें मिले। पान ठेला एक बड़े स्कूल की तरह सिद्ध हुआ। देवजी भाई ने ठेले में सुनी बातचीत से ही जाना कि दुनिया जैसी आदर्शवादी दिखती है उस तरह नहीं है। यहां ईमान, यहां तक कि न्याय भी बिक जाता है। उनके पास कहानियों का अक्षय खजाना है। इन कथाओं में बेरहम दुनिया में पैसे और ताकत ही जीत तथा सत्य की हार के सच्चे किस्से हैं।

वे धरसीवां क्षेत्र के सजग विधायक हैं। विधान सभा में अपने क्षेत्र में स्थापित उद्योगों के कारण उत्पन्न प्रदूषण की जानलेवा समस्या से बेहद चिंतित हैं। उन्होंने क्षेत्र की इस समस्या के निदान के लिए विधान सभा में लगातार आवाज बुलंद किया। लेकिन उन्हें सफलता की किरण भी दिखाई नहीं देती। धरसीवां क्षेत्र की चिमनियां उसी तरह कालिख उगलती हैं। रात को आंगन में साफ सादर बिछाकर सोये लोगों के चेहरों पर सुबह कालिख मली मिलती है। कपड़े दागदार हो जाते हैं। सड़कों पर काली चादर बिछ जाती है। खेतों में कालिमा छा गई है। लोगों की सांसें उखड़ी पड़ रही है। लेकिन न्याय नहीं होता। देवजी भाई पटेल को लगता है कि पान ठेले में बैठकर अन्याय की जीत और न्याय की हार के जो किस्से उन्होंने सुने वही किस्से यथावत आज भी दुहराये जा रहे हैं।

सभी जानते हैं कि देवजी भाई की शिकायत जायज है, उद्योगपतियों का अपराध काले धुवें के रुप में धरसींवा क्षेत्र के आसमान पर घटाटोप के रुप में साफ दिखता है। जांच की बातें भी होती है। मगर ४५ बड़े और सैकड़ों मंझोले, छोटे कारखानेदार साफ बच निकलते हैं और निरपराध जन साफ हवा के लिए तरस कर रह जाते हैं। समस्या को वे पूरी ताकत से उठाते हैं। लेकिन बार बार वही किस्सा वर्ष दर वर्ष दुहराया जाता है और हर बार यही अंदेशा होता है।

फिर आदालत में गवाहों ने दिये झूठे गवाह,
आज फिर कातिल के हक में फैसला हो जायेगा ।

लेकिन फिर भी देवजी भाई पटेल हिम्मत नहीं हारते। वे विधान सभा में सर्वाधिक प्रश्न पूछने वाले सतर्क विधायकों में से एक है। सत्ता पक्ष के विधायक होकर भी वे सरकार को विपक्षी तेवर के साथ घेर लेते हैं। उन्हें अपने विधायकी जीवन में इस बात का गहरा संतोष है कि वे पोषण आहार मामले में एक बड़े भ्रष्टाचार पर नकेल डालने में कामयाब हो गए। यह मामला क्या था, यह समझना दिलचस्प होगा।

सरकार ठेकेदार को चार लाख करोड़ मिलो दलिया सप्लाई का काम प्रतिवर्ष देती थी। सरकारी गेहूं ठेकेदार को ४.६५ किलो के भाव से मिलता था। उसे ही दलकर ठेकेदार ४.६५ को १२.४९ में बदल लेता था। देखिए जादू। बैठे बैठे सरकारी गेहूं पर सीधे ८ रुपये का प्रति किलो लाभ। इस तरह प्रतिवर्ष लगभग २० करोड़ रुपयों का नुकसान सरकार को होता था। देवजी भाई पटेल ने जब लड़ाई शुरु की तब सरकार ने महिला स्व-सहायता समूह को यह काम दिया। यहीं से जीत की शुरुवात हुई और २० हजार महिलायें इससे लाभान्वित हुई। एक महिला स्व-सहायता समूह को प्रतिमाह ८ हजार से ऊपर की आमदनी होने लगी। इस प्रकरण के संदर्भ में तत्कालीन सचिव को कटघरे में खड़ा किया गया मगर अंतत: उसे कोई दण्ड नहीं मिला। लेकिन ठेकेदार के बदले स्व-सहायता समूह की महिलाओं के हाथ में काम आ गया जो आज भी जारी है।

वे २००५ से यह प्रकरण लिए बैठे थे। लगातार विधान सभा में उन्होंने संघर्ष किया। सुप्रिम कोर्ट ने निर्देश दिया फिर भी सरकार ने अपना रवैया नहीं बदला। एक अप्रेल २००७ से यह नई पद्धति लागू हुई। यह एक बड़ी जीत है । अपने दल की सरकार से लड़ने का जिगर कितने विधायकों के पास होता है। कराते खिलाड़ी की तरह चुस्त, दुबले पतले देवजी भाई पटेल जब विधान सभा में प्रश्न करते हैं तो उनकी दलीय संबद्धता से अपरिचित दर्शक उनकी आक्रामकता देख उन्हें विपक्ष का सूरमा समझ बैठता है। सत्ता पक्ष के साथ विधायक उनके यश को देखकर केवल यही कामना कर रह जाते हैं-

तू अपने जैसा अछूता खयाल दे मुझको,
मैं तेरा अक्स हूं, अपना जमाल दे मुझको।

देवजी भाई पटेल शुरु से स्वावलंबी रहे। उन्होंने विद्युत मण्डल में लकड़ी सप्लाई का काम भी किया। वे एक ट्रक के मालिक भी बने, तरह तरह का रोजगार उन्होंने आत्म निर्भरता के लिए किया।

उनकी राजनैतिक यात्रा ९२ में रायपुर मंडी के मनोनीत अध्यक्ष के पद से शुरु हुई। २००१ में वे अकाल पीड़ित धरसींवा क्षेत्र में पदयात्रा पर निकले। ९ अगस्त २००१ से १८ अगस्त २००१ तक वे ९ दिनी यात्रा पर रहे। पाटन क्षेत्र के विधायक भूपेश बघेल भी गांधी विचार यात्रा के चर्चित नेतृत्वकर्ता थे। ठीक उसी तरह धरसींवा क्षेत्र में देवजी भाई पटेल ने यात्रायें कीं। तब वे मंडी के निर्वाचित अध्यक्ष हो चुके थे। २००० के मंडी चुनाव में ७ प्रत्याशियों की जमानतें जप्त् हो गई थी। किसानों ने उन्हें सिर आंखों पर बिठाया। इसीलिए कृतज्ञतावश वे पदयात्रा पर निकल पड़े। इस पदयात्रा में उन्होंने नया अनुभव प्राप्त् किया। देवजी भाई पटेल को रिचर्ड एटीनबरो की फिल्म याद हो आती थी। इस फिल्म में गांधी बने बेन किंग्स्ले रेल में यात्रा कर पूरे देश की धड़कन को करीब से सुनते हैं। जगह जगह वे नए अनुभवों से गुजरते हैं। देवजी भाई पटेल को भी धरसींवा क्षेत्र में पैदल यात्राओं के दौरान विलक्षण अनुभव हुए। और इन्हीं अनुभवों की पूंजी ने रायपुर मंडी के अध्यक्ष को धरसींवा क्षेत्र का जनप्रिय विधायक बना दिया।

वे छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के बाद हुए चुनाव में जीतने वाले सात कूर्मि विधायकों में से एक हैं। ९० विधायकों में आज कूर्मि समाज के मात्र सात विधायक हैं। धरसींवा क्षेत्र में ही अखिल भारतीय कूर्मि समाज के अध्यक्ष पद को गौरवान्वित करने वाले डॉ. खूबचंद बघेल का गांव पथरी स्थित है।
इस चुनाव में उनकी प्रतिद्वंदिता पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष श्रीमती छाया वर्मा से थी। धरसींवा क्षेत्र में मनवा कूर्मि क्षत्रिय समाज के लोगों का प्रभाव है। इस बार दो कूर्मि अलग अलग दलों से चुनाव समर में थे। देवजी भाई पटेल गुजराती कूर्मि हैं। छाया वर्मा छत्तीसगढ़ी कूर्मि। उसमें भी मनवा समाज की बहू-बेटी। लेकिन प्रबुद्ध कूर्मि समाज ने डॉ. खूबचंद बघेल की कल्पना के अनुरुप क्षेत्र और फिरके को तोड़कर देवजी भाई को चुन लिया। डॉ. खूबचंद बघेल जीवन भर भिन्न-भिन्न कूर्मियों को जोड़ने का यत्न करते रहे। धरसींवा के समर में मतदाताओं ने फिरकों की तंग दीवार को महत्व नहीं दिया। इस तरह देवजी भाई पटेल अखिल भारतीय कुर्मीवाद के सपने को पोषित करते हुए विधायक बन गए। वे अखिल भारतीय कूर्मि समाज का चमकदार चेहरा हैं।

डॉ. खूबचंद बघेल के दर्शन से वे बेहद प्रभावित हैं। प्राय: भिलाई रायपुर में आयोजित वैचारिक समारोहों में वे अपनी व्यापक सोच का परिचय देते हैं। देवजी भाई पटेल छत्तीसगढ़ी भाषा की स्वीकृति के लिए चली लड़ाई में भी सदैव आगे रहे। वे यह मानते हैं कि स्वाभिमान के लिए भूपेश बघेल के नेतृत्व में जो रैली निकली और जो भाषा के लिए लगातार सार्थक प्रयास हुए उससे छत्तीसगढ़ का आत्माभिमान बढ़ा है और ऐसे सार्थक आंदोलनों की राजनैतिक नजरिये से न देखकर छत्तीसगढ़ के हित की दृष्टि से देखना समझना चाहिए।

वे यह भी मानते हैं कि छत्तीसगढ़ ने दूसरे प्रान्त से आये सभी जनों को गले से लगाकर उनका मान बढ़ाया किन्तु छत्तीसगढ़ का अन्न खाकर यहीं पल-बढ़ कर भी लोग इस धरती के प्रति अपेक्षित निष्ठा नहीं जताते। वक्त आने पर अपने मूल प्रांत के प्रति अतिरिक्त राग प्रगट हो जाता है। यह ठीक नहीं है। जिस धरती ने हमें सब कुछ दिया वही हमारे लिए सब कुछ है। हमको छत्तीसगढ़ में यश, धन और भविष्य मिला तो हम भी तो उसका ऋण चुकायें। इसी भाव के कारण देवजी भाई पटेल ने केवल अपने क्षेत्र में बल्कि छत्तीसगढ़ के सभी जाति और वर्ग के लोगों में पर्याप्त् लोकप्रिय हैं।
सरस्वती सॉ मिल रायपुर में ही उनका निवास है। यहीं वे लगातार आगन्तुकों से मिलते हैं और यथाशक्ति हर समस्या के निवारण का प्रयत्न करते हैं।

आगामी मई २००८ के महीने में वे पचास के हो जायेंगे। संभवत: इन्हीं दिनों चुनाव का नगाड़ा भी बज रहा होगा। अपनी विशिष्ट जीवन शैली और शर्तो के साथ वे पार्टी के भीतर मर्यादाओं का पालन करते हुए लड़ाके की भूमिका में डटे रहना चाहते हैं।

वे अपनी विशेषताओं से परिचित हैं तो सीमाओं को भी खूब जानते हैं। इसीलिए पूरी विनम्रता से लेकिन दृढ़तापूर्वक वे सत्ता के आगे भी अपनी बात रखते हैं। परिणाम अगर पक्ष में न निकले तब भी देवजी भाई पटेल हताश नहीं होते। वे गहन अंधकार में भी आशा की किरण की कल्पना के सहारे चलते रहे हैं। इसीलिए ...

निकल के दूर अंधेरों से इतना देख सके,
जमीं के चारों तरफ रोशनी का हाला है।

- डॉ. परदेशीराम वर्मा
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