Tuesday, April 8, 2008

दाऊ महासिंह चंद्राकर सम्मान २००८ से विभूषित लोक गंध से गमकता व्यक्तित्व : राकेश तिवारी (15)

- डॉ. परदेशीराम वर्मा

मई १९६२ को बेमेतरा के पास स्थित गांव जेवरा में जन्मे राकेश तिवारी ने लोक प्रशासन एवं अर्थशास्त्र में एम.. किया लोकसंगीत एवं चित्रकला में डिप्लोमाधारी राकेश ने छुटपन में जेवरा में ही स्व. लक्ष्मण तिवारी, ठाकुर मनहरण सिंह हगरू गोंड़ स्व. तिहारू निषाद जैसे लोक कलाकारों के साथ नाचा में काम करने का अवसर पा लिया सभी जातियों के कलासाधकों के बीच समता और प्रेम का रिश्त अंचल की विशेषता है राकेश को यह संस्कार भीतर से समृद्ध करता चला गया लोकमंचीय प्रस्तुति ३सोनचिरैया४ में प्रमुख भूमिका निभाते हुए लगातार ५० प्रदर्शनों तक राकेश ने साथ दिया लोक कलाकार नरेश निर्मलकर के इस सोनचिरैया में गायन और वादन की मुख्य जिम्मेदारी राकेश की थी १० वीडियो फिल्म २० टेलीफिल्म तथा १३ कड़ियों के धारावाहिक हमर छत्तीसगढ़ के सृजन में राकेश का अनुभव देखते ही बनता है साक्षरता, स्वास्थ्य नाटक, गीत कार्यशाला का संचालन भी राकेश ने किया ३० हिन्दी तथा छत्तीसगढ़ी नाटकों में राकेश ने संगीत दिया है प्रथम राज्योंत्सव में छत्तीसगढ़ के ११ महापुरूषों पर गीत प्रस्तुत कर राकेश ने यथेष्ट यश अर्जित किया पिछले दिनों स्वामी विवेकानंद पर रचित राकेश की पोस्टर कविता खूब सराही गई फीचर फिल्म जय महमाया एवं मयारूभौजी में राकेश ने अभिनय भी किया है लेकिन राकेश की सर्वाधिक चर्चितकृति है राजा फोकलवा राजा फोकलवा के कथानक का आधार लोककथा है छत्तीसगढ़ में प्रचलित लोककथा को छुटपन में राकेश ने अपनी मां से सुना कहानी राकेश को याद रह गई उसी स्मृति के सहारे राकेश ने राजा फोकलवा का ताना-बाना बुना लेकिन छत्तीसगढ़ी लोककथा से सूत्र लेकर राकेश ने राजा फोकलवा को समसामयिक रंग दे दिया यह हंसी और दिल्लगी का ऐसा पात्र है जो निठल्ला रहता है मां के कहने पर वह जंगल जाता है वहां उसे रक्सा और रक्सिन अर्थात् प्रेत-प्रेतनी मिलते हैं फोकलवा डरता नहीं वह उन पर प्रहार कर देता है प्रहार से घबराकर प्रेतनी अपनी साड़ी और एक पैर का टोंड़ा छोड़कर भागती है टोंड़ा और साड़ी लेकर फोकलवा घर जाता है उसकी दाई साड़ी पहन लेती है साड़ी को देखकर राजकन्या मचल जाती है वह साड़ी या तो दाई पहनेगी या मेरी बाई फोकलवा ने कहा साड़ी पाने का दूसरा रास्ता देख राजकन्या ब्याह के लिए राजी हो जाती है विवाह के बाद फोकलवाके तेवर बदल जाते हैं वह नृशंस और शोषक बनकर प्रजा पर अत्याचार करता है ऐय्यासी और भष्ट्राचार के नित नए रंग उस पर चढ़ते चले जाते हैं ।फोकलवा की बाई अर्थात् रानी एक पांव के टोंड़े को पाकर आग्रह करती है कि दूसरा टोड़ा भी उसे चाहिए फोकलवा पुन: जंगल जाता है वह जंगल में रक्सा और रक्सिन से ताबीज और टोड़ा छीन लाता है ज्यों ही राजा फोकलवा छीनी हुई तावीज धारण करता है और रानी टोंड़ा पहनती है दोनों स्वयं रक्सा और रक्सिन बन जाते हैं इस नाटक में यह अंत बेहद महत्वपूर्ण है

फोकलवा एक बेवकूफ सा दिखने वाला चरित्र है जबकि भीतर से वह सौदे बाज और शातिर होता है वर्ना साड़ी की शर्त पर राजकन्या को वह कैसे पाता फिर राजा बनते ही उसका जो चरित्र सामने आता है वह भी समकालीन राजनीति पर व्यंग्य है अंत तो और भी नाटकीय है राजा अपनी रानी की हवस पूरी करने के लिए जंगल के रक्शा और रक्सिन को मारता है इस तरह स्वंय राजा और रानी रक्शा रक्शिन में तबदील हो जाते हैं

राजनीति आज बेहद लाभकारी धंधा है सेवा से इसका दूर-दूल का नाता नहीं रह गया बेवकूफ से दिखने-दिखाने वाले प्रजातंत्र के राजा गद्दी पर बैठते ही क्या कुछ करने लग जाते हैं यह दिखाने का प्रयत्न किया है राकेश ने साधन अगर अपवित्र हो तो अंतत: उसके उपयोग से साधन अर्जित करने वाले का चरित्र और चेहरा किस तरह विरूपित होता है यह राजा फोकलवा में राकेश ने दिखाने का सफल यत्न किया है

राकेश तिवारी को नाचा के कलाकारों की तरह जरूरत भर सभी विद्या सिद्ध है गाना, बजाना, अभिनय करना सब वे जानते हैं अपने कलावंत दादा स्व. लक्ष्मण तिवारी के साथ मंच पर काम करते हुए राकेश को जो दृष्टि मिली उसी से उसने राजा फोकलवा का सृजन किया हास्य व्यंग्य के माध्यम से समकालीन राजनीति और जीवन मूल्यों में रही गिरावट पर सटीक टिप्पणी देकर राकेश ने राजा फोकलवा को नया आयाम दे दिया है छत्तीसगढ़ में मौलिक छत्तीसगढ़ी नाटकों का अभाव है चूंकि राकेश स्वयं कलाकार है इसलिए इस अभाव को दूर करने का रचनात्मक प्रयास उन्होंने किया

२००३ में पाटन क्षेत्र में आयोजित गांधी विचार यात्रा में राकेश ने चरौदा के

मंच पर अपनी प्रस्तुति देकर सबका ध्यान आकृष्ट कर लिया था छत्तीसगढ़ में छत्तीस ठन गढ़ हे यह गीत खूब प्रभावी सिद्ध हुआ था

सहज सरल से दिखने वाले राकेश तिवारी का व्यक्तित्व परतदार है आसानी से किसी भी गहराई को थहाने का दावा करने वाले असावधान लोगों को तिवारी का व्यक्तित्व गहराई की ओर धकेलता है राकेश तिवारी की उड़ान के लिए अभी उन्मुक्त आकाश है

आशा है, राकेश तिवारी आने वाले दिनों में रंग, शब्द और ध्वनि की त्रिवेणी में डूबकर कुछ अविस्मरर्णीय उपलब्धियों की तलाश कर सकेंगे

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राकेश तिवारी : जीवन परिचय

जन्म : मई सन् १९६२, ग्राम - जेवरा (बेमेतरा) छत्तीसगढ़

शिक्षा : एम.., अर्थशास्त्र एवं लोक प्रशासन (.वि.वि., रायपुर)

लोकसंगीत एवं चित्रकला में डिप्लोमा (...वि.वि., खैरागढ़)

१९७०-८० : ग्राम जेवरा में स्व. लक्ष्मण तिवारी, ठाकुर मनहरण सिंह, हगरू गोंड़, स्व. तिहारू निषाद जैसे खाटी लोक कलाकारों के साथ लोकगीत, नाचा तथा रामलीला मंडली में हिस्सेदारी

१९८१-८६ : प्रसिद्ध लोकमंच सोनचिरैय्या के माध्यम से लोक कलाकार नरेश निर्मलकर के साथ ५० से अधिक प्रस्तुति में गायन वादन तथा अभिनय

१९८७-९९ : प्रसिद्ध हास्य वीडियो फिल्म लेड़गा ममा सहित १० वीडियो फिल्मों मेंे गीत-संगीत तथा अभिनय परबुधिया, चतुरा चोर, लछनी सहित लगभग २० टेलीफिल्मों में अभिनय-गीत-संगीत-पटकथा-संवाद मड़ई, दोसदारी, गनपती मनावं धारावाहिक हमर छत्तीसगढ़ (१३ भाग) का निर्देशन, चित्रोत्पला लोककला परिषद तथा लोक संगीत महाविद्यालय की स्थापना दक्षिण - मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र, भारत भवन भोपाल के नाट्य शिविरों में हिस्सेदारी मध्यप्रदेश, गुजरात तथा छत्तीसगढ़ के राज्य स्तरीय साक्षरता, स्वास्थ्य, नाटक गीत कार्यशाला प्रसिद्ध रंगनिर्देशक, राजकमल नायक के साथ संचालन लगभग ३० हिन्दी एवं छत्तीसगढ़ी नाटकों में गीत संगीत तथा अभिनय दूरदर्शन के भुइंयाँ के गोठ तथा मोर छत्तीसगढ़ कार्यक्रम का लम्बे समय से संचालन आकाशवाणी तथा दूरदर्शन से सस्वर में लगभग ३५ गीतों का प्रसारण

२०००-०२ : प्रथम राज्योत्सव में छत्तीसगढ़ के ११ महापुरूषों के अवदान गीतों की प्रस्तुति सहित राज्य से प्रतिष्ठित शासकीय तथा गैरशासकीय आयोजनों में हिस्सेदारी फीचर फील्म नैना के लिए पटकथा, संवाद लेखन फीचर फिल्म जय महामाया एवं मयारू भौजी में अभिनय फीचर फिल्म जय महामाया, मोर सजना के गाँव तथा मन्टोरा के लिए गीत लेखन गम्मत (नाटक) राजा फोकलवा का लेखन निर्देशन

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