- डॉ. भूधर चंद्राकर
शायद मैं भी गीत संगीत और लोककला की दुनिया का बासिंदा होता अगर मुझे मेरे कलावंत पिता ने परिवार के हित में पढ़ लिखकर दूसरे रास्ते को चुनने का निर्देश न दिया होता ।
मेरी दो बहनें कला के क्षेत्र में अपनी साधना के कारण पिता की कला विरासत की सच्ची वारिस कहलाती हैं । बड़ी बहन प्रमिला को उन्होंने कथक नृत्य की दीक्षा दिलाई । प्रमिला बहन छ: सात वर्ष की उम्र में ही कथक नृत्य की प्रदर्शन मंचों पर करती थी । उस दौर की प्रसिद्ध कलाकार सितारा देवी एवं रोशन कुमारी जिस मंच पर प्रदर्शन देती थी उस मंच पर उत्कृष्ट प्रदर्शन प्रमिला बहन का हुआ । प्रयाग से कथक में डिप्लोमा लेकर प्रमिला बहन ने निरंतर यश के शिखरों का स्पर्श किया लेकिन जब उन्हें कीर्ति का नया आकाश मिल रहा था तभी उनका ब्याह कर दिया गया । इस तरह छत्तीसगढ़ की एक बेहद संभावनाशील कथक कलाकार ने परिवार घर की चारदीवारी में खुद को कैद कर लिया लेकिन दूसरी बहन ममता चंद्राकर ने संगीत महाविद्यालय खैरागढ़ से म्यूजिक में एम.ए. किया । वे छत्तीसगढ़ की राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त गायिका हैं । आकाशवाणी बिलासपुर में उपकेन्द्र निदेशक ममता चंद्राकर को हमारे कलावंत पिता ने निरंतर आगे बढ़ने हेतु प्रेरित किया ।
मैं उनके सपनों के अनुरूप चिकित्सक बना । खेती बाड़ी के काम को देखते हुए मैं अपने चिकित्सकीय कर्त्तव्यों को निभाने की भरपूर कोशिश करता हूँ । मुझे संतोष है कि दाऊ जी के निर्देश के अनुसार मैंने स्वयं को ढ़ाला । उन्हीं के आशीष से मैंने जीवन में उपलब्धियों को प्राप्त किया ।
दाऊ रामदयाल के घर में १९१९ में जन्में श्री महासिंह चंद्राकर का लालन पालन भरे पूरे परिवार के बीच हुआ । दाऊ रामदयाल चंद्राकर की बेटियां सोहद्रा, सोहागा एवं देवकी बाई थी । महासिंह, रामसिंह, वासुदेव एवं गेंदसिंह पुत्र हुए । वासुदेव चंद्राकर पांचवी संतान है । दाऊ महासिंह चंद्राकर का बचपन आमदी गांव में बीता । यह वहीं आमदी गांव है जिसमें जवाहर लाल नेहरू चिकित्सालय, सेक्टर ९ खड़ा है । यहीं दाऊ महासिंह की शिक्षा दीक्षा प्रारंभ हुई । शासकीय विद्यालय दुर्ग से दाऊ महासिंह ने छठवीं कक्षा उत्तीर्ण की । चूंकि वे कला के संस्कार लेकर जन्मे थे इसीलिए आगे पढ़ न सके । भठभेरा नाचा पार्टी बनाकर उन्होंने कला यात्रा प्रारंभ की । भठभेरा साज के अनपढ़ कलाकारों को दाऊजी ने अपने ढ़ंग से प्रशिक्षित किया । वे कलाकारों को पेड़ पर चढ़ा देते थे और अपना पाठ याद करने कहते थे । जब तक कलाकार पाठ कंठस्थ नहीं कर लेता था वे उतरने नहीं देते थे । भठभेरा साज की लोकप्रियता इसी से हम जान सकते हैं कि गांव के लोग एक दिन की बेगारी करने को भी तैयार रहते थे । भठभेरा साज का प्रदर्शन देखने के लिए एक दिन का श्रम वे मुफ्त करने को राजी होते थे ।
महासिंह दाऊ के अनुज दाऊ वासुदेव चंद्राकर भी कलावंत हैं । उस समय के मशहूर सीपत लीला पार्टी में वे छुटपन में गोपी बनते थे और लंबे लंबे बाल रखा करते थे । दाऊजी तबले पर निरंतर रियाज करते थे । एक बार दाऊ महासिंह चंद्राकर के तबले को दाऊ रामदयाल ने तसले के रूप में उपयोग हेतु फोड़वा दिया । दाऊ महासिंह इससे बेहद रूष्ट हुए, उन्होंने अपने पिता के द्वारा पूजित भगवान शालिगराम को यह कहकर उठा लिया कि मेरे आराध्य तबले का अपमान आपने किया है तो शालिग राम आपके आराध्य हैं, मैं उसे फेंक आऊंगा । फिर कभी ऐसी अवमानना संगीत की नहीं होगी, इस आश्वासन के बाद ही भगवान शालिगराम अपने मूल स्थान पर विराज सके ।
दाऊ महासिंह चंद्राकर की कला साधना एवं दिलचस्पी से उनके पिता दाऊ रामदयाल सिंह नाराज रहते थे । दाऊ महासिंह चंद्राकर दिन-दिन भर तबले पर रियाज करते रह जाते । एक बार रामदयाल दाऊ ने महासिंह चंद्राकर तथा वासुदेव चंद्राकर ने महमरा गांव में दाऊ लखन चंद्राकर के यहां दरोगी कर दो वर्ष का निर्वासन का समय काटा ।
पांचवे दशक तक दाऊ महासिंह चंद्राकर मतवारी में नाचा पार्टी चलाते रहे । स्थानीय कलाकारों को संगठित कर उन्होंने वहां नाचा दल बनाया । छठवें दशक में वे दुर्ग आ गये । यहां पंड़ित जगन्नाथ भट्ट के मार्गदर्शन में उन्होंने तबला वादन सीखा । तबला तो वे शुरू से बजाते थे लेकिन शास्त्रीय मानक के अनुरूप पुन: कठोर रियाज उन्होंने पंड़ित जगन्नाथ भट्ट के निर्देशन में किया और अपने कठिन परिश्रम से इस उम्र में भी अगस्त १९६४ में प्रयाग संगीत समिति, इलाहाबाद से तबले में डिप्लोमा की उपाधि प्राप्त की । दाऊ महासिंह चंद्राकर ने सदैव गुणी जनों एवं सिद्ध कलाकारों का सम्मान किया ।
प्रसिद्ध शास्त्रीय गायक श्री जगदीश अपने संकट के दिनों में दाऊ जी के यहां रहे । बाद में उन्हें अपार ख्याति मिली । आज वे शास्त्रीय गायक पंड़ित जगदीश के रूप में देश भर में विख्यात हैं । कटनी के कबीर गुरूजी अपना समय हमारे घर पर बिताए । आरंभ में ममता को उन्होंने गायन सिखाया ।
दुर्ग-भिलाई में कोई भी नामी गिरामी कलाकार अगर आते तो हमारे घर में उनका स्वागत अवश्य होता । शाम को हमारे घर में संगीत की महफिल प्राय: जमती ।
संगीतकार पागलदास भी काफी दिनों हमारे यहां रहे । वे प्रसिद्ध मृदंग वादक थे । गायन में मशहूर हेमलता ने अपने बाल्यकाल का समय बिताया ।
हमारे बाबूजी छत्तीसगढ़ की धरती का अपमान बर्दाश्त नहीं कर पाते थे । इस अंचल में आने वालों ने सदा मान पाया लेकिन यहां रहकर भी जब तब इसके सम्मान को चोट भी पहुँचा जाते हैं । ऐसे तत्वों से छत्तीसगढ़ का जो नुकसान हुआ उससे हमारे कलावंत दाऊजी सदैव दुखी रहा करते थे । कला के माध्यम से अपनी पीड़ा को उन्होंने बेहद प्रभावी ढ़ंग से रखा ।
छत्तीसगढ़ के यशस्वी साहित्यकार डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा लिखित उपन्यास ‘सुबह की तलाश’ खूब चर्चित था । उसमें छत्तीसगढ़ का सुख-दुख, हर्ष, विषाद, जय-पराजय चित्रित है ।
छत्तीसगढ़ के लिए यश, मान समृद्धि का स्वर्ण बिहान चाहने वालों के लिए सोनहा बिहान की प्रस्तुति विलक्षण सिद्ध हुई । लोगों ने इसे हाथों हाथ उठा लिया । खूब चर्चित हुआ ‘सोनहा बिहान ‘ । अपने दौर का यह विलक्षण मंचीय करिश्मा था ।
इसका प्रदर्शन एक बार टाटानगर में हुआ । टाटानगर में छत्तीसगढ़ियों की बस्ती है सोनारी मुहल्ला । इस बस्ती में जब सोनहा बिहान का प्रदर्शन हुआ तो पानी गिरने लगा । रात भर छाता लेकर लोग प्रदर्शन देखते रहे । दूसरे दिन संपूर्ण बस्ती में छुट्टी का वातावरण था, शाम होते ही लोग सोनहा बिहान दल को छोड़ने स्टेशन तक आये ।
यह अद्भूत अनुभव था । डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा ‘सोनहा बिहान ‘ का संचालन करते थे । वे अद्भूत वक्ता थे । छत्तीसगढ़ का दर्द मंच पर साकार हो उठता था । सोनहा बिहान के बाद प्रेम सायमन लिखित ‘लोरिक चंदा’ का मंचीय स्वरूप बाबूजी ने दिया । यह प्रस्तुति भी खूब चर्चित हुई ।
दिल्ली दूरदर्शन पर इसे सिल्वर जुबली कार्यक्रम के अवसर पर देश की चुनिंदा प्रस्तुतियों में से एक के रूप में पुन: टेलीकास्ट किया गया । खड़े साज की शैली को पुष्ट करते हुए लोरिक चंदा को नया स्वरूप और अभिनव आयाम दिया गया । इसकी खूब सराहना देश भर में हुई । दाऊ महांसिंह चंद्राकर का विराट परिवार है । कला साहित्य संस्कृति से जुड़े सभी लोग उनके अपने थे । वे बेहद सरल ह्रदय व्यक्ति थे । अभिमान उन्हें छू न सका । कला साधकों का जो विराट परिवार उनसे जुड़ा उनमें से कुछ नामों का उल्लेख तो लेख में है सिलसिलेवार कुछ और नामों को यहां उल्लिखित करना आवश्यक है ।
नरेन्द्र देशमुख, बसंत चौधरी, गुलाब बाई, सालिगराम देशमुख, प्रमोद शर्मा, कविता वासनिक, पुष्पा कौशिक, ममता चंद्राकर, अनिता गुप्ता, कुलेश्वर ताम्रकार, प्रीतम साहू, भीखम धर्माकर, मिथिलेश साहू, भैयालाल हेड़ाऊ, साधना यादव, दीपक चंद्राकर, पृथ्वी वल्लभ चंद्राकर, विनय चंद्राकर, बृजेश चंद्राकर, लक्ष्मण चंद्राकर, शैलजा, मदन, निषाद, बसंती मरकाम, माया मरकाम, मोहन मरकाम, गणेश मरकाम, चतरूराम साहू, पुसऊ, मनवा, सत्यमूर्ति देवांगन, रामकृष्ण तिवारी, कृष्णकुमार चौबे, पंचराम पिरझा, गिरिजा सिन्हा ।
मुझे सुखद आश्चर्य हुआ जब २००० में छत्तीसगढ़ बनने के बाद ही अगासदिया संस्था के द्वारा मेरे पिता दाऊ महासिंह चंद्राकर पर केन्द्रित कार्यक्रम की भव्य शुरूआत हुई । पाँच हजार की नकद राशि देकर दाऊ महासिंह की परंपरा को सींचने वाले कलाकार का सम्मान प्रतिवर्ष किया जाता है । स्व. देवदास बंजारे को यह सम्मान प्रथम वर्ष में मिला । पिछले वर्ष ग्राम लिमतरा में भव्य समारोह में महामहिम राज्यपाल श्री के.एम.सेठ ने छत्तीसगढ़ की बेहद लोकप्रिय गायिका श्रीमती सीमा कौशिक को सम्मानित किया । मेरी हार्दिक शुभ-कामना ऐसे प्रयासों के लिए है ।
आशा है, छत्तीसगढ़ के लिए हमारे पुरखों ने जो सोचा उसे अपने निरंतर प्रयास से आने वाली पीढ़ी समझेगी । उनके सपनों को धरती पर उतार ले आयेगी । यही उन साधक बुजुर्गो के प्रति, सच्ची श्रद्धांजलि भी होगी ।
हमारा घर वस्तुत: संगीतकार, कलाकार के लिए साधना स्थल कहलाता था । दाऊ महासिंह चंद्राकर कहा करते थे कि हम किसान हैं व्यापारी नहीं । उन्हें उनके पिता रामदयाल दाऊ ने यह मंत्र दिया था कि किसान मधु की मक्खी है, मीठा शहद देना उसका काम है, व्यापारी ततैया है । किसान दाता होता है । इसीलिए दाऊ महासिंह चंद्राकर ने जीवन में केवल देना जाना ।
उनकी सरलता के कारण लोग उनसे जुड़ते और जीवन भर उन्हीं के होकर रह जाते । डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा व्यक्ति होकर उनके पास आये थे । वे छत्तीसगढ़ की उपेक्षा से आहत रहते थे । दाऊजी भी छत्तीसगढ़ महतारी के सच्चे सपूत थे । यह दो सपूतों का मिलन रंग लाया । ३सुबह की तलाश४ के लेखक ने छत्तीसगढ़ लोकमंच के माध्यम से सबेरा लाने का प्रयास कर रहे दाऊ महासिंह को एक लोकमंच के महायज्ञ से जोड़ दिया । दाऊ महासिंह चंद्राकर का नाम सार्थक हुआ इस सिंह गर्जन से लोगों ने ओटेबंद गांव के विराट प्रांगण में प्रदर्शन देखकर कहा कि छत्तीसगढ़ को अब सुलाये रखना असंभव है । ‘सुबह की तलाश’ शुरू हो गई । आज हम छत्तीसगढ़ पा गये हैं लेकिन डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा एवं दाऊ महासिंह चंद्राकर के सपनों का छत्तीसगढ़ यह नहीं है ।
छत्तीसगढ़ में छत्तीसगढ़ी सर्वोपरि हो । छत्तीसगढ़ के बेटे बेटी मान पायें, हक पायें यह कल्पना थी जो अभी पूरी नहीं हो रही । यहां यह भी कहना जरूरी है कि पुस्तकों के यशस्वी लेखक डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा खूब चर्चित थे मगर जन-जन तक अपनी बात पहुंचाने के लिए उन्हें छपे हुए अक्षरों की दुनिया छोटी और प्रभावहीन लगी । जिस छत्तीसगढ़ जन को जगाना था वे तो किताबों से जुड़े ही नहीं है । उन्हें मंच प्रिय है इसीलिए वे मंच के मोहक माध्यम के करीब आये और चमत्कार हुआ भी ।
दाऊ महासिंह चंद्राकर का स्नेह देवदास बंजारे को भरपूर मिला । देवदास बंजारे ने ‘सोनहा बिहान’ के मंच पर प्रदर्शन भी दिया ।
भरथरी की यशस्वी गायिका सुरूजबाई खांडे और कम उम्र में पंडवानी गाकर यश प्राप्त करने वाली रितु वर्मा को भी दाऊजी का भरपूर स्नेह एवं मार्गदर्शन मिला ।
‘चंदैनी गोंदा’ ने स्वाभिमानी छत्तीसगढ़ का स्वरूप मंच पर प्रस्तुत कर एक प्रेरक वातावरण बनाया । दाऊ रामचंद्र देशमुख का यह अभूतपूर्व अवदान सदा उन्हें अमर रखेगा । चंदैनी गोंदा से उपजे छत्तीसगढ़ के प्रति प्रेम एवं समर्पण के भाव को अभिनव रंग देकर सोनहा बिहान का सृजन किया गया ।
उसके बाद छत्तीसगढ़ में लोकमंचीय प्रस्तुतियों का सिलसिला ही चल निकला । आज दाऊ महासिंह चंद्राकर की मंचीय बिरादरी बहुत विशाल है । हम इस समर्पित बिरादरी को नमन कर जागरण की पवित्र परंपरा को याद करते हैं ।
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दाऊ महासिंग चद्राकर क़े मृत्यू कब् होईस
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