Saturday, July 26, 2008

कल के लिये : रवि श्रीवास्तव

जमीन से जुड़े रहकर सोचना
इस्पात की तरह और
समझबूझ कर निर्णय लेना
नीबू का पेड़ काटकर
आँगन का बंटवारा/मत करना
मेरे भाई।
हो सके तो कमरा
कुछ छोटा कर लेना
सुविधाओं के स्वर्ग को
कमरे की लम्बाई से क्या आँकना
समय निकालकर अतीत की
झाँकना
या फिर मेरे हिस्से कर लेना
जख्मों को तेज धार से बचाना

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वैसे भी हमने जब-तब
खूब पीटा है
हरे-भरे पेड़ को डंडो से
हमारी पतंग इसी के कॉटो से
तार-तार होती थी/उलझकर
तुम्हें याद है न / तुम्हारे रोने पर
हम दोनों मिलकर
इसकी पिटाई करते थे
और थक जाने पर
शर्बत पीकर बाहर भाग जाते थे

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हर अच्छे से बुरे दिनों में
इस नीबू ने
हमारे भोजन को स्वादिष्ट
बनाया
मुहल्ले वालों को अनेक
दैविक और
भौतिक संकटों से उबारा
शायद तुम्हें याद हो
जादू-टोना और मंतर में
अपना नीबू ही तो काम आया
कृषि प्रदर्शनी में इनाम पाकर
हमने अपना जेब खर्च भी चलाया

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घनघोर बारिश में
इसने हमारा साहस बढ़ाया
जबकि छतों ने टपक-टपक कर
समस्याओ को अम्बार लगाया
तेज आंधी और तूफान में भी
यह अडिग रहा

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एक बार तो मैंने सपने में देखा
सपना क्या ता
समझ लो सच ही देखा
रात के सन्नाटे को चीरती हुई
तेज आँधी आई
पत्ते खड़खड़ाये/बिजली गुल हुई
पक्षियों ने डैने फड़फड़ाए

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टार्च की रोशनी में मैंने
कंपकपाते हुए नीबू को देखा
और क्या देखा -
माँ और बाबूजी
हाथों का सहारा देकर
आँधी के खिलाफ लड़ने के लिए
उसका हौसला बढ़ा रहे हैं
और व पेड़
अपनी
भीतरी घबराहट के बावजूद
तेज झोंको के गुजरते ही
पूरी ताकत से
तैयार हो जाता है मुकाबले के लिए

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यह सब क्षणिक ही रहा
माँ और बाबू जी
उस रुप में मुझे
फिर कभी नहीं दिखे
मुझे लगता है पेड़ के पास
पुरखों का दिया हुआ
अलौकिक सहारा है। इसीलिए
बुढ़ापे के बावजूद
फलों से लदा हुआ
तीसरी पीढ़ी की सेवा में लगा है
फिर भी हमारे निर्णय और
कुल्हाड़ी के आतंक से घिरे है।

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भाई मेरे। इस नीबू का क्या है
कल के लिए
सब कुछ हें सोचना है
किसी दिन
यह स्वयं छोड़कर चला जायेगा
उसके पहले एक पौधा
ऐसी जगह रोपना है
जो किसी बंटवारे की सीमा से दूर
लेकिन
भाई चारे की बहुत करीब हो
मेरे पत्र का आशय
तुम
गंभीरता से समझना
नीबू की गहरी जड़ों को
दीमकों से बचाए रखना

०००

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