दाऊजी के साथ संत कवि पवन दीवान का घरोबा है। वे दाऊजी को योद्धा और ज्ञानी राजनेता मानते हैं। राजीव लोचन महोत्सव का आनंद लेने के लिए अपनी नई नवेली कार में भाई रवि श्रीवास्तव २ मार्च २००२ को राजिम निकले तो मैंने उनसे आग्रह कर लिया कि दाऊजी के अमृत महोत्सव के लिए आदरणीय दीवान जी से कुछ बात कही कर आयें। अंक का वजन बढ़ाने के लिए संत कवि दीवान जी का साक्षात्कार जरुरी है। रवि भाई चार दिन बाद लौट आये। अपनी चिरपरिचित मासूमियत और मित्रों को चलते फिरते ठिकाने लगा देने की प्रवीणता का परिचय देते हुए उन्होंने लंबा चौड़ा वृतांत राजीव लोचन महोत्सव का सुनाया। वर्णन में पूर्व मु.म. श्री श्यामा चरण शुक्ल का राजिम क्षेत्र के लिए योगदान, पांच लाख का मुक्ता काशी नदी किनारे का मंच, संस्कृति विभाग छत्तीसगढ़ शासन की उदारता, छत्तीसगढ़ के लेखकों, कलाकारों को मिलने वाले ईनाम-इकराम, सहयोग राशि, प्रकाशित हो रही पत्रिकाओं का इतिहास, बसंत देशमुख का प्रभावी कवि व्यक्तित्व, रायपुर के समर्थ पत्रकारों की बढ़ी हुई हैसियत और मंत्री श्री धनेन्द्र साहू से अपने संबंधों की चर्चा उन्होंने सिलसिलेवार करते हुए नये कार की ड्राइविंग में बेटे गोलू की प्रवीणता और खुद की उस्तादी की चर्चा भी की। मैंने सब सुन लेने के बाद जब प्रार्थना की मुद्रा में हाथ जोड़ते हुए उनसे दीवान जी के साक्षात्कार का संदर्भ पूछा तो वे नाराज हो गये। उन्होंने डपटते हुए कहा की बस यही तुम्हारी बेवकूफी सिद्ध होती है। अरे, तुमने पवन दीवान को जाना ही कितना है। पल में तोला, पल में माशा। मैं गया था साक्षात्कार लेने, वे गुस्साये बैठे थे। कुछ काम कही का बिगड़ा था। मुझे देखते ही डपटने लगे कि रुको जी, अभी सब गड़बड़ सड़बड़ है।
मैं सम्हलता कि खड़ाऊ पहनकर चटचट करते निकल पड़े। ऐसा है बाबू रे, संत कवि पवन दीवान .... बचपन से जानते हैं। भूल जाओ साक्षात्कार ....। मैं भूला तो नहीं अलबत्ता, ७ मार्च को भाई राम प्यारा पारकर एवं भाई देवदास बंजारे को साथ लेकर दीवान जी के सामने उपस्थित हुआ तो वे प्रतिक्षा में खड़े मिले। मैंने प्रणाम कर परसाद प्राप्त् करते ही सबसे पहले श्री रवि श्रीवास्तव प्रकरण का पिटारा खोला। दीवान जी ने कहा -
हाय रे मोर बोरे बरा, किंजर फिर के मोरे करा,
तंय रवि ला नई जानस, मैं बचपन ले जानत हंव ...।
शायद दीवान जी के आगे और रवि महात्म्य पर प्रवचन देते मगर मैंने हाथ जोड़ते हुए कहा, राजिम की गति राजिम जाने और न जाने कोय। महराज जी मुझे उबारिये और छोटा सा साक्षात्कार दे दीजिए। मेरे इस कथन पर लोकप्रसिद्ध अट्टहास का दौरा प्रारंभ हो गया। हम सब भी जब जी भर हंस लिये तब यह साक्षात्कार शुरु हो सका।
... परदेशीराम वर्मा
# श्रद्धेय दाऊ वासुदेव चन्द्राकर पर केन्द्रित पत्रिका के अंक के लिए विचार दीजिए ?
पवन दीवान दाऊ जी मेरे आदरणीय हैं। धर्म में उनकी गहरी आस्था है। रामचरित मानस और गीता के जानकार हैं। व्यक्ति और स्थितियों को समझने में बेहद कुशल हैं। वे मूलरुप में सेवा करने वाले व्यक्ति हैं। माटी का ऋण चुकाना चाहते हैं इसलिए राजनीति में आये और आज भी सक्रिय हैं। अन्यथा वे धार्मिक रुचि के भगवत कथा में रमने वाले व्यक्ति हैं। छत्तीसगढ़ के लोगों के प्रति दायित्व का अहसास उन्हें राजनीति में ले आया। वे जहां रहे धूमधड़ाके से रहे। बिना पद के भी वे सदैव महत्वपूर्ण रहे और रहेंगे। यही दाऊ जी की असल कमाई है। किंग विदाउट क्राउन : दाऊ वासुदेव चन्द्राकर।
# क्राउन के योग्य भी तो हैं ?
पवन दीवान बिलकुल हैं। पचीस वर्षोंा तक उन्होंने जिला अध्यक्ष पद, वह भी देश की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस का जिलाध्यक्ष पद सम्हाला। वे प्रदेश अध्यक्ष पद भी सम्हाल सकने योग्य हैं। प्रदेश क्या, देश के बड़े पदों के योग्य हैं, दाऊ जी।
# इस समय उनकी क्षमता के अनुरुप काम उन्हें शायद नहीं मिला है ?
पवन दीवान यह तो समय समय की बात है। राजनीति में बहुत सारी बातें अंतर्धारा की तरह रहती हैं।
जमीं की गर्त में दबी हूं एक दरिया हूं,
निकल पड़ूंगी जहां से जगह मिलेगी मुझे।
पंक्ति की तरह है राजनीति की दरिया की धारा। कौन कब शीर्ष पर चला जाय और कौन नीचे उतर आये, निश्चित रुप से नहीं कहा जा सकता। लेकिन एक बात निश्चित रुप से कही जा सकती है कि ईमानदार, कर्मठ, जुझारु, समर्पित दाऊजी जैसे लोगों की उपेक्षा हो ही नहीं सकती, उनकी शक्ति से सभी परिचित हैं।
शेर पूंछ फटकार शान से मंजिल पार करेगा,
बूढ़ा है लेकिन अब भी वह टुक्कड़खोर नहीं है।
# दाऊ जी की भूमिका परिवार के बुजुर्ग के रुप में ?
पवन दीवान दाऊजी का परिवार बहुत बड़ा है। उसमें मैं हूं, आप हैं। छत्तीसगढ़ भर के लोग हैं। स्वाभिमान के साथ छत्तीसगढ़ तनकर चल सके सोच कर जीवन भर संघर्ष करने वालों के कुनबे के मुखिया हैं दाऊ जी। जो लोग छत्तीसगढ़ के लिए जीवन भर भारी लड़ाई लड़ते रहे उनमें दाऊ जी अग्रिम पंक्ति के नेता है। आज वे लोग अग्रिम पंक्ति में खड़े होकर मटर-मटर कर रहे हैं जो कल तक छत्तीसगढ़ को गाली देते नहीं अघाते थे। जिन्हें पक्का भरोसा था कि छत्तीसगढ़ बन ही नहीं सकता वे लोग अब छत्तीसगढ़ के शिल्पी, निर्माता का तमगा सीने में टांक कर बड़ी बेशर्मी से गाल बजा रहे हैं। मगर जनता सब देख रही है। छत्तीसगढ़ के लोग धर्मप्राण हैं। उनकी आस्था गहरी है। वे दिल की गहराईयों से सम्मान करते हैं मगर थोड़ी सी भीरुता के कारण हमारे लोग हर क्षेत्र में पिछड़ जाते हैं। मेरा अट्टहास भीरुता के खिलाफ एक शंखनाद ही तो हैं। छत्तीसगढ़ी व्यक्ति भयमुक्त होकर हंस सकता है, यह मैं कहना चाहता हूं। हमारा हक सदैव छीना गया। बनावटी घी को असली घी की तरह परोसकर धोखा सदैव नहीं दिया जा सकता। असली घी की सुगंध से सभी परिचित हैं। यह बातें वक्ती हैं। समय आयेगा और लोग अपनी गलती सुधारेंगे।
# और कुछ बातें ?
पवन दीवान दाऊ जी ने एक बड़ा अच्छा काम किया कि उन्होंने प्रतिमा का लालन पालन बेटे की तरह किया। प्रतिमा उनकी विरासत को आगे बढ़ायेगी। यह राजनीतिज्ञों और समाजसेवियों, कलाकारों का प्रसिद्ध घराना सदैव इसी तरह फले फूले, खुशबू बांटे, सेवा का प्रतिमान गढ़े। मैं यही चाहता हूं। मुझ पर उनका स्नेह सदा रहा, सदा रहे। दाऊ जी की छाया हम पर सदा रहे, यही कामना मैं ईश्वर से करता हूं।
जिसका हृदय जितना निर्मल होता है उसकी कही बात उतनी ही सच्ची उतरती है। दाऊ जी निर्मल हृदय व्यक्ति हैं। उन्होंने अगर किसी को पूरे मन से आशीष दे दिया तो उसका कल्याण हो गया।
ऐसे सद्पुरुष के अमृत सम्मान का जो आयोजन करेगा उसका भी कल्याण होगा, जो शामिल होंगे उनका भी कल्याण होगा।
# अर्जुनसिंह जी की रणनीति और आस्था के अनुकूल दाऊ जी ने भी दलितों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों और पीड़ित जनों के लिए कार्य किया आप भी उन्हीं मूल्यों पर चलते हैं। श्री अजीत जोगी जी सदैव इन्हीं मूल्यों की दुहाई देते हैं। लेकिन आज अर्जुनसिंह जी के समय के तेजस्वी रणधीर किनारे कर दिये गये हैं। इस पर टिप्पणी ?
पवन दीवान हर व्यक्ति अपना आदमी बनाता है। राजनीति में मूल्य तो महत्वपूर्ण हैं, मगर अपने लोग कहीं अधिक जरुरी होते हैं। जैसे आप अपने लोग श्रृंखला की किताबें लिख रहे हैं। वैसे ही सभी अपने लोग पैदा करते हैं। इसीलिए कोई किनारे हो जाता है, कोई किनारे खड़ा व्यक्ति मझधार में आकर उबुक-चुबुक होने लगता है। हा .... हा .... हा .... हा ....
# आखिरी प्रश्न कि आपने किलों को तोड़ा, किलेदारों को धूल चटाया लेकिन आजकल आप भी कहीं नहीं हैं ?
पवन दीवान भागवत प्रवचन, काव्य चर्चा जारी है। पूर्नभूषको भव। भागवत प्रवचन काव्यकर्म से निर्मित हुए और वहीं हमारी असली शक्ति है। अब यह तो सोचने वालों पर है कि वे हमें क्या भूमिका देते हैं। किनारे और मंझोत में आने की बात मैं नहीं सोचता। जब राजनीति में मेरी जरुरत नहीं रह जायेगी तब अपने भागवत प्रवचन और लेखन की दुनिया में पूरी तरह लौट आयेंगे। लोगों ने कहा, लड़ो तो लड़ गये, लोगों ने कहा गांवो तो गाने लगे। छत्तीसगढ़ के लिए जन्मे, जिये और आखिरी सांस तक छत्तीसगढ़ के हित के लिए जो उचित भूमिका होगी वह करेंगे। बस छत्तीसगढ़ में छत्तीसगढ़ियों का राज हो। उन्हें मान मिले। चोर सब बाहरी हैं, सेंधमार डाकू सब बाहरी रहे और छत्तीसगढ़ी लुटता रहे, पिटता रहे, घायल होता रहे, यह मैं कभी बर्दाश्त नहीं कर सका।
छत्तीसगढ़ हो छत्तीसगढ़ियों के लिए, बस यही सपना है। कभी कभी तो लगता है कि छत्तीसगढ़ में ही हम लोग परदेशी न बन जाय। हमारी पहचान के स्रोत चुराकर हमारे दुश्मन ही हमें बेदखल न कर दें। इसलिए बहुत चौकन्नेपन की जरुरत है। भुलवारने, पुचकारने में झट आने वालों का इलाका छत्तीसगढ़ अब और न छला जाय। दाऊजी जैसे नेता हमें यही समझाते हैं । कम लोग हैं जो सह समझाइश दे पाते हैं। छत्तीसगढ़ के बेटों की सरलता, श्रमशीलता, सहिष्णुता, बेटियों की पवित्रता, दया भावना और धार्मिकता की कथा सब जानते हैं। यह कीर्ति सदा रहनी चाहिए।
यावत् स्थास्यंति गिरय: सरितश्च महीतले।
तावद रामायण कथा लोकेर्षु प्रचरिष्यति।।
यह धरती राम के ननिहाल के रुप में पूजी जाती है इसकी महिमा सदा रहेगी। इसके सच्चे पूत सदा वंदित होंगे।
०००
Saturday, July 26, 2008
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