साक्षात्कारकर्त्ता- महेश वर्मा
हम सब उस दृश्य को भूल नहीं पाते कि किस तरह छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के लिए बेचैन लोग स्वाभिमान रैलियों में उमड़ पड़ते थे। स्व. हरि ठाकुर जैसे चिंतक इन रैलियों की सफलता पर इसके संयोजक श्री भूपेश बघेल की प्रशंसा करते नहीं अघाते थे। डॉ. खूबचन्द बघेल के नेतृत्व में लगातार संघर्ष कर जन जागृति का अलख जगाने वाले बुजुर्ग नेताओं का दल पुन: स्वाभिमान रैलियों में एकजुट होकर प्रथम पंक्ति में आ खड़ा हुआ। विभिन्न समाज के मुखिया, कलाकार, साहित्यकार, रैलियों में शामिल हुए।
श्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में आयोजित रैलियों में अपनी बात रखते हुए श्री अजीत जोगी चमत्कारिक रैली की सफलता पर चकित होते हुए अत्यंत भाऊक स्वर में कहा करते थे कि छत्तीसगढ़िया मन के राज बने चाही। हमर गरीब किसान मजदूर मन के, धरती पुत्र मन के राज आना चाही। बाहिर ले आके हमर हक मारने वाला मन सम्हल जाय। अब हमर राज आही। छत्तीसगढ़ बन के रइही। डॉ. खूबचन्द बघेल के सपना के छत्तीसगढ़ बनाबो। छत्तीसगढ़ राज्य बन भी गया। जोगी जी आज मुख्यमंत्री हैं। स्वाभिमान रैलियों के सफल नेतृत्वकर्ता श्री भूपेश बघेल जी मंत्री हैं। अगासदिया के प्रेरणा स्रोत श्री भूपेश बघेल ने डॉ. खूबचन्द बघेल के सपनों का छत्तीसगढ़ विषय से संदर्भित कुछ प्रश्नों का जवाब दिया। प्रस्तुत है महेश वर्मा द्वारा लिया गया एक संक्षिप्त् साक्षात्कार। - संपादक.
# राज्य के बनने के पूर्व आपके नेतृत्व में बहुत प्रभावी रैलियां हुई। बात वहीं से शुरु करें कि रैली में उठे सवालों के जवाब अब तक क्यों नहीं दिये जा रहे। विशेषकर इस सवाल का जवाब कि छत्तीसगढ़ को छत्तीसगढ़िया ही चलायेगा, बनायेगा, संवारेगा।
भूपेश बघेल : देखिए, हम लोग डॉ. खूबचन्द बघेल के सपनों को सच करने के लिए एक तरह से बतरकिरा की तरह इस आंदोलन में झपा रहे थे। सब कुछ लुटा देने का साहस लेकर लगातार लोग आगे आये। तब हमें केवल काम करने, अपनी धरती के कर्ज को कुछ चुकाने की ही चिंता था। लेकिन प्रश्न सही है। रैलियों में यही बात सब कहते थे कि छत्तीसगढ़ छत्तीसगढ़ियों का बने। यह दायित्व भी है हम सबकाहै । छत्तीसगढ़ में छत्तीसगढ़ियों को वही महत्व मिलना चाहिए जो दूसरे प्रांतों में वहां के लोगों को मिलता है। यह तो सीधी सी बात है । छत्तीसगढ़ में निर्णायक भूमिका छत्तीसगढ़ियों की हो। अभी तो मीठा मीठा गप्प-गप्प, कड़ुवा कड़ुवा थू थू, हो रहा है। कुछ कड़ुवाहट भी ले लोग, तब तस्वीर बदलेगी। यथा स्थितिवाद से इतिहास में बदलाव नहीं होता। और यह तय है कि राय बनाने वाले लोग अपने राज्य को अपने हिसाब से बनायेंगे, चलायेंगे, संवारेंगे। यह उनका हक भी है, कर्त्तव्य भी, सपना भी है, और यही यथार्थ भी है।
# लोग सोचते थे कि छत्तीसगढ़ बनेगा तो इसके निर्माण के लिए जी जान लगा देने वाले लोगों को अधिक महत्व मिलेगा। लेकिन आपको अभी तक उचित नहीं मिला। कारण ?
भूपेश बघेल : मैं दूसरे ढंग से सोचता हूं। लाखों लाख लोग जो राज्य निर्माण के लिए लड़े लगातार लगे रहे उन्हें आदर मिले, चिंता यह होनी चाहिए। व्यक्ति विशेष के महत्व का सवाल नहीं है। मैं तो फिर भी मंत्री बन गया, मगर मेरी शक्ति के रुप में साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी, कलाकार, समाजसेवी सभी जूझे। उन्हें मिले तो बात है। मैं तो उनके आशीर्वाद का प्रसाद पा गया। उनका कर्ज मुझ पर है इसीलिए ईमानदारी से जी जान से छत्तीसगढ़ की सेवा करुं यह प्रति पल सोचता और यथाशक्ति उस पर अमर करता हूं। छत्तीसगढ़ के एक विनम्र सेवक के रुप में पहचाना गया, यही मेरे लिए बहुत है। डाक्टर साहब महामानव थे। हम लोग उनके बताये रास्ते पर चलने का प्रयत्न भर कर रहे हैं।
# दाऊ वासुदेव चन्द्राकर जी का अमृत सम्मान हे। वे ७५ वर्ष के हो गये। कुछ उन पर भी बोलिए ?
भूपेश बघेल : दाऊजी के बारे में सोचते हुए मुझे महाकवि की ये पंक्तियां याद हो आती हैं -
केशव कही न जाई का कहिए,
देखत तव रचना विचित्र यह,
समुझि मनहि मन रहिए।
दाऊजी एक विराट व्यक्तित्व के धनी व्यक्ति हैं। हम लोग उनके विद्यार्थी अनुगामी हैं। हम भला क्या बोल सकते हैं। दाऊ जी में दधीचि, चाणक्य और विश्वामित्र जैसे चरित्रों का गुण हम देखते हैं। उन्होंने लगातार कांग्रेस को अपनी शक्ति दी। कांग्रेस का झंडा बुलंद किया। चाणक्य के रुप में वे चर्चित हैं ही। और जब जिद्द पर आते हैं तो अपनी शक्ति से अपने मन के अनुकूल व्यक्ति के लिए स्वर्ग रचकर उसे वहां स्थापित करने में सफलता प्राप्त् कर लेते हैं। वे अनोखे व्यक्ति हैं। लेकिन मैं एक बात दावे से कह सकता हूं कि दाऊजी को गलत समझा गया। वे बेहद साफ बोलने वाले, साहसी व्यक्ति हैं। फरेब और झूठ से वे दूर रहते हैं। बेहद संवेदनशील हैं। सरल, सीधे और सेवाभावी हैं। बड़े मालगुजार के पुत्र होकर आमजन के लिए सब कुछ छोड़कर राजनीति में उतर गये। जीवन भर कमजोरों के लिए, कृषकों के लिए, छत्तीसगढ़ियों के लिए लड़े। मुझे हंसी आती है कि तीनों शब्द कृषक, कमजोर और छत्तीसगढ़ी को एक शब्द का पर्यायवाची मानने वाले लोग अब हक्के-बक्के हैं। छत्तीसगढ़ी भी अब ...
मार रे थपरा कसके तान,
देख रे आंखी, सुन रे कान।
इस सिद्धांत पर चल पड़ा है। यह आदरणीय दाऊ जी की सीख के कारण हो रहा है। वे स्वाभिमानी के पक्षधर हैं। स्वाभिमान का पाठ पढ़ाते हैं। हमारे अलग अलग शैलियों के दो बुजुर्ग हैं। दाऊ जी और पवन दवान जी। दाऊ जी की मुद्रा गंभीर और उत्प्रेरक है, दीवान जी साहस का पाठ पढ़ाने के लिए अट्टहास करते हैं और संदेश देते हैं कि
साहस का पाठ पढ़ाने के लिए अट्टहास करते हैं और संदेश देते हैं कि छत्तीसगढ़ियों बिना डर के रहो। अपनी धरती में चिंता छोड़ खूब हंसो। अब राज तुम्हारा है। तुम चलाओगे अपना शासन।
# और कुछ ?
भूपेश बघेल : आदरणीय दाऊ जी ने केवल दिया, लिया किसी से नहीं। पुत्र, पुत्री, विष्य, पार्टी, हित्तू अपने जनों और हर किसी को वे देते ही हैं। हम लोग तो दाऊजी की सेवा करने को तरस गये। कठिन यात्राओं में भी वे न कप उठाने देते हैं, न बिस्तर झोला उठाने देते हैं। अपना काम खुद करते हैं। किसी की सेवा लेना उन्हें पसंद नहीं। धन्य है ऐसे बुजुर्ग। सुविधा के बिना भी वे पूरे मनोयोग से काम करते चलते हैं। अगर उनके प्रशिक्षण से प्राप्त् सेवा का कुछ मंत्र हम भी सिद्ध कर लें तो यही सही गुरु दक्षिणा होगी।
है तो यह दोहा किसी और संदर्भ का मगर दाऊ वासुदेव चन्द्राकर का शिष्य होने के कारण शायद यह दोहा मुझे प्रिय है ...
द्वादस अक्षर मंत्र पुनि, जपहिं सदा अनुराग।
वासुदेव पद पंकरुहू, दंपत्ति मन अलि लाग।
- रामचरित मानस (१४३)
प्रस्तुति,
महेश वर्मा
डी.एम.सी. कुम्हारी
०००
Saturday, July 26, 2008
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