Saturday, July 26, 2008

भूपेश की जीत का रहस्य

डॉ. परदेशीराम वर्मा

मैंने एक अवसर पर पूछा कि दाऊ जी यह भूपेश कहीं से भी चतुर और घाघ नहीं है। फट-फिट वाला है। कैसे इसे आपने चुना। जब आपने चुना तब तो यह और भी मरखंडा था। जंगली हाथी को आपने पोसवा बनाकर जिले में कांग्रेस की शोभा यात्राओं के लिए सर्वाधिक सक्षम और सज्जित सुपात्र बना दिया। स्वाभिमान रैली, आदिवासी एक्सप्रेस, भाषा की लड़ाई के योद्धाओं का नेतृत्व सब कुछ अनोखा है। कीर्तिमान भी इसने गढ़ दिया। जिस क्षेत्र में लोग रिपीट नहीं होते वहां लगता है कि यह बुढ़ापे तक नेतृत्व करेगा।

दाऊ जी मेरी बात सुनकर खूब हंसे। बोले - उस हाथी को सजाने में तुम्हारी रुचि प्रशंसनीय है। ऐसा कहकर वे देर तक हंसते रहे। मैं सामने रखे मुर्रा चना पर हाथ साफ करता रहा। दाऊजी ने बताया कि राजनीति में वही लोग ऊंचाई तक जाते हैं। जो राजनीति में आना नहीं चाहते। इसके श्रेष्ठतक उदाहरण भारत रत्न राजीव गांधी हैं। सोनिया जी भी परहेज करती थीं। अजीत जोगी भी मुश्किल से राजनीति में आये। यह ईमानदारी का तकाजा है। वक्त ने जब चुनौती दी तब ये लोग राजनीति में आये। भूपेश ऐसा ही बच्चा है। वह राजनीति के लायक स्वाभाव लेकर नहीं जन्मा। स्पष्टवादी है, दुस्साहसी है, ईमानदार है। दोस्त को दोस्त समझता है, दुश्मन को नुकसान पहुंचाने की योजना नहीं बनाता। राजनीति के ये गुण दुखदाई होते हैं। इसीलिए दुख उठाता है। किसी भी व्यक्ति पर भरोसा कर लेता है। पीठ पर छुरा गड़ा रहता है फिर भी चेतता नहीं।
मैं दाऊजी की लंबी बात सुनता रहा। फिर कहा - मैं यह पूछ रहा हूं दाऊजी, कि आपने फिर इसे क्यों चुना ?

मैंने नहीं चुना, उसने मुझे चुना। दाऊजी ने कहा। यह सुनकर मैं अवाक रह गया। दाऊ जी ने फिर सविस्तार बताया कि एक अवसर पर गुण्डरदेही के बदले पाटन से चुनाव लड़ने की सम्भावना पर मैं भी मन बना रहा था। मैंने बहुतों को टटोला। प्राय: पाटन क्षेत्र के छोटे बड़े नेताओं ने कहा कि पाटन में आपनी जीत की संभावना नहीं है। कई लोगों को मेरा पाटन को चुनना ही बुरा लगा। तब केवल भूपेश था जिसने ताल ठोंक कर कहा कि - आप पर्चा भर भरिए जीत हैं दिलाऊंगा।

एक वाक्य से मनुष्य की निष्ठा, ईमानदारी, सब कुछ स्पष्ट हो जाती है। यह ऐसा ही वाक्य था।

यही भूपेश की जीत और लगातार जीत का रहस्य है।


डॉ. परदेशीराम वर्मा
एल.आई.जी.-१८,
आमदी नगर, हुडको-भिलाई

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